S&P ने दिया झटका, घटाया GDP ग्रोथ का अनुमान; क्‍या होगा इसका असर?

भारत की जीडीपी वृद्धि दर साल 2028 तक 7 फीसदी तक बढ़ने का अनुमान है. वहीं रेटिंग एजेंसी S&P ग्लोबल ने जीडीपी ग्रोथ रेट के अनुमान को घटा दिया है. दरअसल ऐसा माना जा रहा है कि वैश्विक चुनौतियां आर्थिक वृद्धि को धीमा कर सकती हैं.

अमेरिका की ट्रेड पॉलिसी एशिया-पेसिफिक की वृद्धि दर को धीमा कर सकती है. Image Credit: Freepik

S&P Global Ratings ने भारत की आर्थिक वृद्धि के अनुमान को वित्त वर्ष 2025-26 और 2026-27 के लिए घटा दिया है. रेटिंग एजेंसी का कहना है कि ऊंची ब्याज दरें और कम सरकारी खर्च शहरी से आने वाली मांग को कमजोर कर रहे हैं. जानें क्या है जीडीपी को लेकर ताजा अनुमान? यह भी जान लें कि एस एंड पी ग्लोबल दुनिया की बड़ी फाइनेंस और इंश्योरेंस कंपनी है.

S&P Global Ratings के मुताबिक, अब भारत की ग्रॉस डॉमेस्टिक प्रोडक्ट (GDP) वृद्धि दर 2025-26 के लिए 6.7 फीसदी और 2026-27 के लिए 6.8 फीसदी रहने का अनुमान है, जो पहले 2025-26 के लिए 6.9 फीसदी और 2026-27 के लिए 7 फीसदी थी.

S&P का यह भी कहना है कि सितंबर तिमाही में निर्माण क्षेत्र पर असर के कारण विकास की गति में कुछ अस्थायी कमी आई है. हालांकि, पर्चेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स यानी PMIs अभी भी आने वाले समय में सुधार का संकेत देते हैं.

एशिया-पेसिफिक पर अमेरिका की नीतियों का असर

S&P का मानना है कि एशिया-पेसिफिक क्षेत्र, विशेष रूप से चीन, अमेरिका की बिजनेस से जुड़ी नीतियों से प्रभावित होगा. चीन की साल 2024 की विकास दर 4.8 फीसदी रहने का अनुमान है, लेकिन 2026 तक यह 3.8 फीसदी तक गिर सकती है. अमेरिका के संभावित टैरिफ बढ़ोतरी और बदलती ब्याज दरों के कारण यहां की अर्थव्यवस्था पर दबाव रह सकता है.

S&P के मुख्य एशिया-पेसिफिक अर्थशास्त्री, लुइस कुइज, ने कहा कि इस क्षेत्र में केंद्रीय बैंक अपनी नीतियों में सावधानी बरतेंगे और ब्याज दरों को जल्दी घटाने से बचेंगे.

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चीन की स्थिति पर खास नजर

चीन की सरकार द्वारा लाए गए आर्थिक पैकेज कुछ राहत देंगे, लेकिन अमेरिकी टैरिफ के कारण निर्यात पर दबाव बना रहेगा. वैश्विक मांग में कमी और अमेरिका की ट्रेड पॉलिसी एशिया-पेसिफिक की वृद्धि दर को धीमा कर सकती है.

क्या है आगे का रास्ता?

भारत की जीडीपी वृद्धि दर साल 2028 तक 7 फीसदी तक बढ़ने का अनुमान है. हालांकि, एशिया-पेसिफिक क्षेत्र के लिए, कम ब्याज दर और कम महंगाई दर से खर्च करने की क्षमता में सुधार हो सकता है. फिर भी, वैश्विक चुनौतियां आर्थिक वृद्धि को धीमा कर सकती हैं.