मनमोहन-बुश का परमाणु समझौता, मोदी दौर में चढ़ेगा परवान ! समझिए अमेरिकी NSA का दौरा क्यों बना अहम

अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन दो दिनों की यात्रा पर भारत आए थे. इस दौरान उन्होंने पीएम मोदी सहित कई लोगों से मुलाकात की. जेक सुलिवन ने कहा कि भारतीय परमाणु संस्थाओं और अमेरिकी कंपनियों के बीच सिविल न्यूक्लियर डील में आ रही बाधाओं को जल्द ही खत्म कर दिया जाएगा.

पीएम मोदी और जेक सुलिवन Image Credit: money9live.com

अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) जेक सुलिवन पांच और छह जनवरी को भारत दौरे पर थे. इस दौरान उन्होंने विदेश मंत्री एस. जयशंकर, अजीत डोभाल और कई अन्य अधिकारियों से मुलाकात की. अपनी यात्रा के दौरान सुलिवन ने सोमवार को कहा कि अमेरिका उन पुराने नियमों को हटाने के लिए जरूरी कदमों को अंतिम रूप दे रहा है, जो भारतीय परमाणु संस्थाओं और अमेरिकी कंपनियों के बीच सिविल न्यूक्लियर सहयोग को प्रभावित करते हैं. IIT दिल्ली में US-India Critical and Emerging Technology (iCET) पर बोलते हुए सुलिवन ने कहा कि सिविल न्यूक्लियर पार्टनरशिप शुरू करने के लिए औपचारिक कागजी कार्रवाई जल्द ही पूरी हो जाएगी.

क्या होगा फायदा

अमेरिकी NSA जेक सुलिवन ने कहा कि वाशिंगटन उन लंबे समय से चले आ रहे नियमों को हटाने का अंतिम रूप दे रहा है, जो भारत की प्रमुख परमाणु संस्थाओं और अमेरिकी कंपनियों के बीच सिविल न्यूक्लियर सहयोग में बाधा बन रहे थे. जानकारी के अनुसार, भाभा एटोमिक रिसर्च सेंटर (BARC), इंदिरा गांधी एटोमिक रिसर्च सेंटर (IGCAR) और इंडियन रेयर अर्थ लिमिटेड (IREL) को सिविल न्यूक्लियर सहयोग की प्रतिबंधित लिस्ट से बाहर किया जाएगा.

कहां है अड़चन

भारत-अमेरिका परमाणु सहयोग को आगे बढ़ाने में फिलहाल दो बड़ी कानूनी बाधाएं हैं.

अमेरिकी बाधा

अमेरिकी पक्ष में मुख्य बाधा ‘10 CFR 810’ ऑथराइजेशन है. यह अमेरिकी न्यूक्लियर वेंडर्स को सख्त सुरक्षा उपायों के तहत भारत जैसे देशों को उपकरण एक्सपोर्ट करने की अनुमति तो देता है, लेकिन उन्हें भारत में परमाणु उपकरण बनाने या डिजाइन का काम करने की अनुमति नहीं देता.

भारतीय बाधा

भारतीय पक्ष में मुख्य बाधा है “परमाणु उत्तरदायित्व कानून”. इस कानून के तहत सप्लायर कंपनियों को दुर्घटना के हालात में नुकसान के लिए जिम्मेदार ठहराने का प्रावधान है. इस कानून के कारण बड़े रिएक्टर सप्लायर भारत में काम करने से कतराते हैं.

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2006 में हुआ था समझौता

2005 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अमेरिका दौरे पर गए थे. इस दौरान उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश को परमाणु समझौते के लिए राजी किया. इसके लिए अमेरिका ने भारत के सामने दो शर्तें रखीं, जिन्हें भारत ने स्वीकार कर लिया. इसके बाद, 2006 में अमेरिकी राष्ट्रपति भारत आए और यह समझौता हुआ. हालांकि, इस डील के तहत नए रिएक्टर लगाने को लेकर जो समझौता हुआ था, वह अब तक लागू नहीं हो सका है.