8000 कंपनियों का रिपोर्ट कार्ड, अनलिस्टेड कंपनियों का जलवा; रेवेन्यू-प्रॉफिट में लिस्टेड कंपनियों को छोड़ा पीछे

अनलिस्टेड कंपनियां लिस्टेड कंपनियों के मुकाबले तेजी से बढ़ रही हैं. इनका रेवेन्यू और प्रॉफिट भी लिस्टेड कंपनियों के मुकाबले बेहतर है. ये कंपनियां ज्यादा फ्लेक्सिबल हैं और भविष्य के लिए ज्यादा निवेश कर रही हैं. हालांकि, लिस्टेड कंपनियों के अपने फायदे हैं. दोनों के अपने मॉडल अलग-अलग चुनौतियों और अवसरों के साथ काम करते हैं.

रेवेन्यू और प्रॉफिट में अनलिस्टेड कंपनियों का जलवा, लिस्टेड कंपनियों को पीछे छोड़ा Image Credit: Canva

Listed vs Unlisted Companies: रिलायंस से लेकर इंफोसिस और न जाने कितनी ही कंपनियां चर्चा में रहती हैं क्योंकि हर दिन बाजार की उठापटक इन्हें सुर्खियों में लाता है. लेकिन कई कंपनियां ऐसी भी हैं जो शेयर बाजार की चमक-दमक से दूर हैं. इन्हें अनलिस्टडेट कंपनियां कहते हैं जो अपने शेयर, बाजार में नहीं बेचती. लेकिन हाल की एक रिपोर्ट बताती है कि ये कंपनियां शानदार काम कर रही हैं और तेजी से बढ़ रही हैं. ऐसी कंपनियों पर भी नजर बनाए रखें क्योंकि हो सकता है आने वाले समय में वह भी बाजार में कदम रखें.  

लेकिन यहां आपको बताएंगे कि अनलिस्टेड कंपनियां इन लिस्टेड कंपनियों से बेहतर प्रदर्शन कर रही है. सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी यानी CMIE ने 4,231 अनलिस्टेड कंपनियों और 3,575 लिस्टेड कंपनियों का एनालिसिस किया. इसमें पता चला कि वित्त वर्ष 2024 में:

  • अनलिस्टेड कंपनियों का रेवेन्यू लगभग 8% बढ़ा है, जबकि लिस्टेड कंपनियों का रेवेन्यू सिर्फ 1.7% ही बढ़ा.
  • मुनाफे की बात करें तो, अनलिस्टेड कंपनियों का प्रॉफिट 29% बढ़ा, जबकि लिस्टेड कंपनियों का प्रॉफिट 27%.  

मुनाफे के आधार पर अंतर ज्यादा बड़ा नहीं है लेकिन इससे ये पता चलता है कि अनलिस्टेड कंपनियां ज्यादा फ्लेक्सिबल होती हैं, वो बड़े रिस्क उठा सकती हैं, और तेजी से फैसले ले सकती हैं क्योंकि उन्हें डिविडेंड के लिए शेयरहोल्डर्स को खुश करने की जरूरत नहीं होती.

रिपोर्ट के अनुसार, अनलिस्टेड कंपनियों के नेट फिक्स्ड एसेट्स, जैसे मशीनरी और इक्विपमेंट्स, में 7.5% की बढ़ोतरी हुई है, जबकि लिस्टेड कंपनियों का ये आंकड़ा 6.4% रहा. अनलिस्टेड कंपनियां भविष्य के लिए भारी निवेश भी कर रही हैं, जैसे नए फैक्ट्री प्रोजेक्ट्स. इसे capital work in progress (CWIP) कहते हैं. रिपोर्ट के अनुसार, अनलिस्टेड कंपनियों का CWIP लगभग 7% बढ़ा है, जबकि लिस्टेड कंपनियों में यह 0.3% ही रहा.  

अनलिस्टेड कंपनियां का इंट्रेस्ट कवरेज रेशियो 3 है, जो 30 साल में सबसे अच्छा है. इससे पता चलता है कि वे अपने कर्ज का ब्याज कितनी आसानी से चुका सकती हैं. इनका डेट टू इक्विटी रेशियो भी 1.1 के साथ अच्छा जो बताता है कि कंपनी अपने पैसों के मुकाबले कितना कर्ज ले रही है.

तो क्या कंपनियों को अनलिस्टेड ही रहना चाहिए?  

नहीं, लिस्टेड कंपनियों के अपने फायदे हैं. जैसे:

  • लिस्टेड कंपनियां अपनी वित्तीय स्थिति, कॉर्पोरेट गवर्नेंस, और हर फैसले को नियमित रूप से साझा करती हैं. इससे निवेशकों को कंपनी की हर हरकत के बारे में पता चलता है.
  • लिस्टेड कंपनियां आमतौर पर बड़ी होती हैं और मुश्किल समय में टिकने की ताकत रखती हैं.  
  • फंड जुटाने में आसानी होती है, शेयर बेचकर या बॉन्ड जारी करके आसानी से पैसा जुटा सकता है.
  • लिस्टेड कंपनियां जब जैसे निफ्टी या सेंसेक्स जैसे प्रमुख इंडेक्स में शामिल होती है तो संस्थागत निवेशक भी निवेश के लिए आते हैं.
  • यही नहीं लिस्टेड कंपनियां अनलिस्टेड कंपनियों को खरीदने की क्षमता रखती है.

ये सही है कि फिलहाल अनलिस्टेड कंपनियां अच्छा कर रही है लेकिन आखिर में तो यही देखा जाता है कि कौन सी कंपनी आर्थिक उतार-चढ़ाव के बीच कैसा प्रदर्शन करती है.