Economic Survey 2025: क्या है आर्थिक सर्वेक्षण, क्यों होता है बजट से पहले पेश, मिल जाती हैं अहम डिटेल
Economic Survey: आर्थिक सर्वेक्षण एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है, जो भारत की अर्थव्यवस्था की डिटेल समीक्षा करता है और नीति-निर्माण में भी सहायक होता है. यह पारदर्शिता, जवाबदेही और लॉन्ग टर्म आर्थिक रणनीति का एक महत्वपूर्ण आधार है.
What is Economic Survey 2025: बजट 2025 पेश होने से पहले खूब चर्चा में रहता है क्योंकि सबकी अपनी-अपनी अपेक्षाएं बजट से होती है. लेकिन बजट पेश होने से ठीक एक दिन पहले इकोनॉमिक सर्वे या आर्थिक सर्वेक्षण पेश होता है. इस बार भी इकोनॉमिक सर्वे बजट से ठीक एक दिन पहले यानी शुक्रवार, 31 जनवरी को पेश होगा. ये एक बेहद अहम दस्तावेज है, जो भारत की अर्थव्यवस्था की स्थिति को दर्शाता है और पिछला वित्त वर्ष कैसा रहा इसकी समीक्षा करता है. लेकिन ये दस्तावेज इतना महत्वपूर्ण क्यों हैं? इसे कौन-कौन तैयार करता है? आइए, डिटेल में इसे समझते हैं.
क्या होता है इकोनॉमिक सर्वे? (What is Economic Survey in Hindi)
बजट की तरह ही इकोनॉमिक सर्वे भी वित्त मंत्रालय तैयार करता है. यह एक रिपोर्ट होती है, जो बजट से एक दिन पहले पेश की जाती है. इसमें देश की अर्थव्यवस्था किस ओर बढ़ रही है इसकी तस्वीर देखने को मिलती है और जीडीपी वृद्धि, महंगाई, वित्तीय घाटा, बिजनेस और रोजगार जैसे महत्वपूर्ण पहलुओं की जानकारी दी जाती है.
इसे मुख्य आर्थिक सलाहकार (CEA) की देखरेख में तैयार किया जाता है और बजट से एक दिन पहले वित्त मंत्री द्वारा संसद में पेश किया जाता है. यह देश की आर्थिक दिशा को समझने के लिए एक महत्वपूर्ण जरिया होता है.
इस रिपोर्ट में केवल आंकड़े ही नहीं होते, बल्कि इसमें अर्थव्यवस्था की चुनौतियों, संभावित समाधान और सस्टेनेबल डेवलपमेंट के लिए रोडमैप की भी चर्चा की जाती है.
क्या है इकोनॉमिक सर्वे का महत्व? (Importance of Economic Survey)
यह रिपोर्ट देश की आर्थिक स्थिति का आकलन करने, नीति-निर्माताओं को गाइड करने और बजट के फैसलों को प्रभावित करने में मदद करता है. यह आर्थिक वृद्धि, समस्याओं और अवसरों पर गहरी जानकारी देकर बेहतर फैसले लेने में मददगार साबित होता है.
कब पेश हुआ था भारत का पहला इकोनॉमिक सर्वे? (When did Economic Survey presented for the first time in india)
भारत में पहला इकोनॉमिक सर्वे साल 1950-51 में पेश किया गया था. 1964 तक इसे बजट के साथ ही पेश किया जाता था, लेकिन बाद में इसे अलग से पेश किया जाने लगा. हाल के सालों में, इसे दो भाग में पेश किया जाता है. जैसे साल 2018-19 में पहला भाग भारतीय अर्थव्यवस्था की चुनौतियों और विश्लेषण पर केंद्रित था, जबकि दूसरा भाग पूरे वित्ती वर्ष की डिटेल समीक्षा थी.
अर्थव्यवस्था की होती है डिटेल समीक्षा
इकोनॉमिक सर्वे बीते सालों में देश की आर्थिक स्थिति का विश्लेषण करता है. इसमें जीडीपी वृद्धि, महंगाई दर, रोजगार और वित्तीय घाटे की स्थिति को साफ-साफ बताया जाता है. यह न केवल नीति-निर्माताओं बल्कि रिसर्चर और आम जनता को भी अर्थव्यवस्था के प्रदर्शन को समझने में मदद करता है.
इसमें अर्थव्यवस्था की समस्याओं की समीक्षा भी होता है, समाधान और संभावित विकास के अवसरों पर फोकस किया जाता है. यह सर्वेक्षण केवल ऐसे समाधानों पर फोकस नहीं करता जो केवल आज तक सीमित है, बल्कि लॉन्ग टर्म में आर्थिक रणनीतियों को भी आकार देता है.
पारदर्शिता और जवाबदेही
अच्छे शासन के लिए पारदर्शिता और जवाबदेही जरूरी है, और इकोनॉमिक सर्वे इस पारदर्शिता को सुनिश्चित करता है. यह सरकार की उपलब्धियों, कमजोरियों और भविष्य की चुनौतियों पर खुलकर चर्चा करता है. इसलिए इस रिपोर्ट में सरकार के रेवेन्यू और खर्च के बारे में जानकारी होती है, जीडीपी में किन सेक्टर्स का कितना योगदान रहा, इंपोर्ट-एक्सपोर्ट और फॉरेन एक्सचेंज रिजर्व को लेकर भी डेटा होता है.
यह पारदर्शिता जनता में विश्वास पैदा करती है और जवाबदेही को मजबूत बनाती है, जो किसी भी लोकतंत्र के लिए बेहद जरूरी होती है.
बजट को मिलते हैं जरूरी इनपुट
वैसे तो इकोनॉमिक सर्वे सीधे बजट की भविष्यवाणी नहीं करता, लेकिन यह उसके निर्माण को प्रभावित करता है. इसके निष्कर्ष बजट में लिए जाने वाले महत्वपूर्ण निर्णयों के लिए एक ठोस आधार प्रदान करते हैं. इसमें इन पहलुओं पर ध्यान केंद्रित होता है:
- वित्तीय घाटे की स्थिति
- टैक्स रिफॉर्म की संभावनाएं
- वेलफेयर स्कीम की सिफारिशें
जैसे मान लीजिए अगर सर्वेक्षण में पता चलता है कि इडस्ट्रियल ग्रोथ में गिरावट आई है, तो बजट में मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर को बढ़ावा देने के लिए विशेष प्रोत्साहन दिए जा सकते हैं. इसी तरह, अगर रोजगार के आंकड़ों में गिरावट देखने को मिलती हैं, तो स्किल डेवलपमेंट स्कीम के लिए ज्यादा फंड आवंटित किया जा सकता है.
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इकोनॉमिक सर्वे बनाना जरूरी नहीं?
ऐसा कोई नियम नहीं है जो जिससे पता चलता हो कि इकोनॉमिक सर्वे को पेश करना सरकार के लिए जरूरी होता है. इसी के साथ सरकार के लिए इसे इसमें दी गई सिफारिशों को लागू करना अनिवार्य नहीं होता है. अगर सरकार चाहे, तो वह इसमें दी गई सभी सिफारिशों को पूरी तरह अस्वीकार भी कर सकती है.
जैसे-जैसे भारत 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने की ओर है, इकोनॉमिक सर्वे की भूमिका और भी महत्वपूर्ण होती जा रही है. यह हमें आर्थिक चुनौतियों को समझने, अवसरों का फायदा उठाने और सस्टेनेबल डेवलपमेंट की ओर बढ़ने में मदद करता है.