100 साल पुरानी Keventers क्या करती है, जहां पहुंचे राहुल गांधी, अंग्रजों ने किया था सपोर्ट

सोशल मीडिया पर कांग्रेस के सांसद राहुल गांधी ने एक वीडियो शेयर किया. उसमें वह 100 साल पुराने केवेंटर्स के एक स्टोर पर पहुंचते हैं. इस आर्टिकल में हम आपको केवेंटर्स की पूरी कहानी बताएंगे. आखिर अंग्रेजों के समय से शुरू हुई कंपनी की कहानी क्या है.

केवेेटर्स की क्या है पूरी कहानी? Image Credit: @Money9live

कांग्रेस के सांसद राहुल गांधी ने गुरुवार, 9 जनवरी को सोशल मीडिया पर एक वीडियो शेयर किया. इसमें वह 100 साल पुराने केवेंटर्स के एक स्टोर पर पहुंचते हैं. जारी वीडियो में राहुल ने कहा कि वह केवेंटर्स में निवेश के अवसरों की तलाश कर रहे हैं. हालांकि उन्होंने ये भी कहा कि वह बाजार की स्थिति को लेकर सतर्क भी हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि जिस दुकान पर राहुल गांधी गए थे असल में वह करती क्या है. आइए जानते हैं 100 साल पुरानी इस कंपनी की कहानी जो अंग्रेजों की सरकार से जुड़ी हुई है.

क्या करती है Keventers?

केवेंटर्स को आइसक्रीम के बेस्ट डिजाइन के लिए जाना जाता है. डेयरी प्रोडक्ट के आ जाने के बाद केवेंटर्स अपने फ्रेश डेयरी प्रोडक्ट्स जैसे दूध, मक्खन, पनीर और दूसरी चीजों के लिए पॉपुलर होता चला गया. 2021 तक, कंपनी के पास भारत में कुल 200 से अधिक स्टोर्स थे. वहीं दुबई, UAE, नैरोबी, केन्या और नेपाल में भी इसकी उपस्थिति है.

100 साल पुरानी कंपनी की क्या है कहानी?

भारत में कंपनी की आधिकारिक शुरुआत 1925 में हुई. एडवर्ड केवेंटर ने केवेंटर्स ब्रांड को एक औपचारिक रूप दिया था. एडवर्ड केवेंटर को ब्रिटिश सरकार ने 1889 में भारत के डेयरी बिजनेस को आधुनिक बनाने के लिए भर्ती किया था. केवेंटर 1889 में भारत चले गए और 1894 में यूनाइटेड प्रोविंस में अलीगढ़ डेयरी को खरीद लिया. इसका विस्तार करते हुए एडवर्ड केवेंटर्स ने दिल्ली के चाणक्यपुरी में प्राइवेट लेबल डेयरी प्रोडक्ट कंपनी की स्थापना की. एक दशक के अंदर ही केवेंटर ने दिल्ली, अलीगढ़, कलकत्ता और दार्जिलिंग में इसी नाम से प्लांट स्थापित किए थे.

केवेंटर्स के पुराने स्टोर्स (फोटो क्रेडिट: keventers.com)

एडवर्ड की मौत के बाद भारतीय ने संभाली कंपनी

1937 में एडवर्ड केवेंटर की मृत्यु हो गई जिसके बाद कंपनी की जिम्मेदारी एक भारतीय ने ली. 1940 में एडवर्ड के भतीजे ने देश के प्रमुख उद्योगपतियों में से एक राम कृष्ण डालमिया को ब्रांड बेच दिया. उस वक्त देश अंग्रेजों से खुद को आजाद करने की जतन में संघर्ष कर रहा था. उसके बावजूद केवेंटर्स का धंधा अच्छे से चलता रहा. उस दौरान दिल्ली के फेमस स्पॉट कनॉट प्लेस सहित शहर में 48 से अधिक केवेंटर्स के आउटलेट खुल गए थे. आजादी के बाद कंपनी ने अपने प्रोडक्ट्स में शेक से लेकर मिल्कशेक जैसी तमाम चीजों को जोड़ दिया था.

सेना को पहुंचाया था दूध पाउडर

1960 की बात है. देश में उस समय दूध की काफी कमी हुआ करती थी. दूध के लिए आयात पर निर्भर रहना पड़ता था. उस वक्त केवेंटर्स ने भारतीय सेना को दूध पाउडर पहुंचाने की शुरुआत की थी. इस दौरान कंपनी के मालिक राम कृष्ण डालमिया बनें रहे थे. तभी भूमि के पुनः अधिग्रहण के कारण कंपनी के मालचा मार्ग वाला आउटलेट बंद कर दिया गया था.

2015 में फिर बदली कंपनी की सूरत

कंपनी की मेन यूनिट बंद होने के कारण मैनेजमेंट ने ब्रांड में रुचि खोनी शुरू कर दी जिसके कारण केवेंटर्स का नाम नीचे जाने लगा. कुछ साल तक यूंही चलता रहा. फिर आया साल 2015 जब राम कृष्ण डालमिया के पड़पोते अगस्त्य डालमिया ने अपने कॉलेज के दोस्त अमन के साथ मिलकर ब्रांड को खड़ा करने की ठानी. उसे उसकी खोई हुई पहचान और उसके विरासत को वापस जीवित रखने का फैसला लिया.

(फोटो क्रेडिट: keventers.com)

कितना है Keventers का रेवेन्यू?

दोनों ने मार्च 2015 में दिल्ली के सेलेक्ट मॉल में अपना पहला आउटलेट खोला. अगले साल जनवरी, 2016 तक कंपनी के चार आउटलेट्स खुल चुके थे. डालमिया एक बात को लेकर सजग थे कि कंपनी के विस्तार के लिए फ्रैंचाइजी वाले रास्ते का चुनाव करना होगा. राहुल गांधी से बातचीत के दौरान डालमिया ने बताया कि 65 शहरों में हमारी करीब 200 स्टोर हैं. अगले 4 से 5 सालों में हम 500 स्टोर तक इसका विस्तार करना चाहते हैं. मार्च 2024 तक, कंपनी का वार्षिक रेवेन्यू 96.9 करोड़ रुपये दर्ज किया गया है. वहीं 31 मार्च, 2024 तक कंपनी के कर्मचारियों की कुल संख्या 624 दर्ज की गई.