स्टील, ट्रक-कार नहीं… टाटा ने सबसे पहले बनाया था ये प्रोडक्ट, 21000 से शुरू हुई कंपनी आज अरबों कमा रही

टाटा समूह का इतिहास डेढ़ सौ साल से भी अधिक पुराना है. इस समूह की सफलता में लगे चार चांद में से एक चांद रतन टाटा ने भी लगाया है. लेकिन टाटा समूह की पहली कंपनी कौन सी थी और सबसे पहले उसने क्या बनाया था.

टाटा समूह की शुरुआत की कहानी. Image Credit: Getty image

देश की सबसे बड़े कारोबारी समूह टाटा के मानद चेयरमैन रतन टाटा ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया है. पूरा देश उन्हें याद कर रहा है और साथ ही याद कर रहा उन कामों को भी, जिन्हें समाज को बेहतर बनाने के लिए रतन टाटा ने किया. अपने शांत नेतृत्व से रतन टाटा ने 5 बिलियन डॉलर के समूह को 100 बिलियन डॉलर की कंपनी में बदल दिया. हर कारोबारी पहल में उन्होंने भारत को सबसे पहले रखा. वे अपनी कारोबारी सूझबूझ और परोपकारिता से चमके. टाटा समूह का इतिहास डेढ़ सौ साल से भी अधिक पुराना है. इस समूह की सफलता में लगे चार चांद में से एक चांद रतन टाटा ने भी लगाया है. लेकिन टाटा समूह की पहली कंपनी कौन सी थी और सबसे पहले उसने क्या बनाया था.

1868 में रखी गई नींव

टाटा समूह की नींव साल 1868 में रखी गई थी. तब 29 वर्षीय जमशेदजी नुसरवानजी टाटा ने 21,000 रुपये की पूंजी से एक ट्रेडिंग कंपनी शुरू की. यह उसी कंपनी की शुरुआत थी जो आगे चलकर टाटा के नाम से विख्यात होने वाली थी, लेकिन उसे अभी कई हिचकोले खाने थे. कई असफलताओं की आग की आंच में तपना था. फिर सफलता की सुगंध अपने भीतर भरनी थी और आखिर में कामयाबी के असामान में सितारों की तरह चमकना था.

…तो जमशेदजी नुसरवानजी अपनी ट्रेडिंग कंपनी के कारोबार के जरिए ब्रिटेन पहुंचे. वहां उन्होंने कपड़े का कारोबार देखा. जमशेदजी को विश्वास था कि भारतीय कंपनियां कपड़ा उद्योग में ब्रिटिश कंपनियों के दबदबे को चुनौती दे सकती हैं. कपड़े के कारोबार में उतरने के जुनून ने जमशेदजी नुसरवानजी टाटा को 1869 में बॉम्बे में एक दिवालिया तेल मिल को एलेक्जेंड्रा मिल में बदलने के लिए प्रेरित किया.

जमशेदजी टाटा- फोटो- Tata.com

दो साल बाद बेच दी मिल

हालांकि, दो साल बाद जमशेदजी ने मिल को एक स्थानीय कपास व्यापारी को बढ़िया मुनाफा पर बेच दिया. इसके बाद उन्होंने इंग्लैंड की एक लंबी यात्रा की. लंकाशायर कॉटन बिजनेस का गहरा अध्ययन किया. इस प्रवास के दौरान जमशेदजी ने मशीनरी और प्रोडक्शन देखे. ऐसे लोगों से मिले जो इस कारोबार में काफी प्रभावशाली थे. इसके बाद जमशेदजी को यकीन हो गया था कि अपने देश में भी यही कहानी दोहराई जा सकती है. जमशेदजी का मानना ​​था कि वे औपनिवेशिक आकाओं को उसी खेल में हरा सकते हैं, जिसे उन्होंने अपने फायदे के लिए रचा था.

अलग सोचते थे जमशेदजी

उस समय, बॉम्बे कपड़ा उद्योग के लिए पसंदीदा जगह थी. लेकिन जमशेदजी की दूरदर्शिता पारंपरिक ज्ञान से परे थी. अपने कपड़े के कारोबार के लिए जगह का चयन करते समय उन्होंने कई चीजों के बारे में सोचा. जैसे- कपास उगाने वाले क्षेत्रों की निकटता, रेलवे की पहुंच और अन्य संसाधनों पर विचार किया. इन तमाम फैक्टर्स की वजह से एक साहसिक कदम उठाते हुए जमशेदजी ने बॉम्बे की बजाय नागपुर में कपड़ा मिल स्थापित की, जो भारत का कपड़ा केंद्र था. एम्प्रेस मिल्स का प्रयोग एक शानदार प्रयोग साबित हुआ.

नागपुर जमशेदजी की सभी जरूरतों पर खरा साबित हुआ. आसपास कपास उगाए जाते थे. कोयला और पानी आसानी से उपलब्ध था. तैयार प्रोडक्ट के लिए तैयार बाजार था. जमीन सस्ती थी. हालांकि, इसमें कोई संदेह नहीं कि मिल की शुरुआत बहुत मुश्किलों भरी रही.

कारोबार में हुआ बड़ा नुकसान

1874 में जमशेदजी ने 1.5 लाख रुपये की शुरुआती पूंजी के साथ सेंट्रल इंडिया स्पिनिंग, वीविंग एंड मैन्युफैक्चरिंग कंपनी शुरू की थी. नई कंपनी की पूंजी बचाने के लिए जमशेदजी ने इंग्लैंड में सस्ती मशीनें खरीदीं, जो एक महंगी गलती साबित हुई. इसका असर प्रोडक्ट और प्रोडक्शन दोनों पर पड़ा. इससे भी बुरी बात यह रही कि आग लगने से लूम शेड तबाह हो गया. उम्मीदें धूमिल हो गईं. नुकसान बड़ा हो गया.

एम्प्रेस मिल्स, फोटो- Tata.com

समय से आगे रहना

यह जमशेदजी का इनोवेशन में विश्वास ही था जिसने आपदा में अवसर तलाश लिया. जब एम्प्रेस मिल्स के तकनीकी एक्सपर्ट जेम्स ब्रूक्सबी ने अमेरिका में रिंग फ्रेम का इस्तेमाल होते देखा, तो उन्होंने उन्हें टेस्टिंग के लिए नागपुर की मिल में वापस भेज दिया. जमशेदजी ने रिंग स्पिंडल के साथ प्रयोग को सपोर्ट किया, भले ही तब तक लंकाशायर की मिलों में फ्रेम की टेस्टिंग नहीं हुई थी. लेकिन रिंग फ्रेम के नतीजे जोरदार थे. मुनाफा 16 प्रतिशत तक बढ़ गया.

शानदार यात्रा की शुरुआत

तीन साल बाद जमशेदजी का वेंचर अपनी भविष्य की कहानी को आगे बढ़ाने लिए तैयार था. एक जनवरी 1877 को नागपुर में एम्प्रेस मिल्स अस्तित्व में आई. 37 वर्ष की आयु में जमशेदजी ने अपनी शानदार यात्रा की शुरुआत की.

शुरुआती सफलताओं से उत्साहित होकर जमशेदजी ने 1886 में एक ऐसी मिल खरीदने का फैसला किया, जो कई प्रतिष्ठाओं का कब्रिस्तान साबित हुई. 47 साल की उम्र में जमशेदजी ने एक ‘बीमार’ मिल की सेहत को सुधारने की चुनौती ले ली. बंबई के कुर्ला में धरमसी मिल चार साल से बंद थी, जो संभावित खरीदारों के लिए दुर्भाग्य का प्रतीक बन गई थी.

स्वदेशी मिल

इससे जमशेदजी विचलित नहीं हुए. उन्होंने एक तैयार मिल खरीदने के फायदों पर विचार किया, जो अपनी मूल कीमत के छठे हिस्से पर उपलब्ध फ्रीहोल्ड भूमि पर थी. इसे बदलने की अपनी क्षमता पर भरोसा करते हुए उन्होंने इसे खरीद लिया. उन्होंने स्वदेशी आंदोलन की शुरुआत को देखते हुए इसका नाम बदलकर स्वदेशी मिल रख दियाय. यह एक राष्ट्रीय आंदोलन था, जिसे भारतीय शेयरधारकों का भारी समर्थन प्राप्त था.

हालांकि, मिल का प्रबंधन करना बहुत ही कठिन काम साबित हुआ. जमशेदजी को मजदूरों की कमी, खराब उपकरणों की समस्या और लगातार शिकायतों से जूझना पड़ा. शिपमेंट वापस कर दिए गए. दो साल बाद, मिलें मुनाफा देने में फेल हो गईं. शेयर की कीमतें मूल की एक चौथाई तक गिर गईं.

दांव पर लगा टाटा का नाम

टाटा का नाम दांव पर था. जमशेदजी ने हार नहीं मानी. पैसे हासिल करना आसान नहीं था, उन्होंने अपनी सारी संपत्ति मिल में लगा दी. अपने निजी संसाधनों को दांव पर लगा दिया. उन्होंने ट्रस्ट को रद्द कर दिया, अपनी पूंजी फ्री कर दी. एम्प्रेस मिल के कुछ शेयर बेच दिए और स्वदेशी मिल्स में और पूंजी लगाई. उन्होंने नए इंजन, नए बॉयलर, नए शेड बनवाए. व्यक्तिगत ऊर्जा के अद्भुत प्रदर्शन के जरिए और नागपुर की मिल्स से अपने सर्वश्रेष्ठ कर्मचारियों को लाकर, जमशेदजी ने स्वदेशी यूनिट को कपड़ा उद्योग की टॉप कैटेगरी में स्थापित कर दिया.

लाखों लोग करते हैं काम अरबों डॉलर का टर्नओवर

आज अगर बात करें, तो टाटा समूह में 10 लाख से अधिक कर्मचारी काम करते हैं. टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज में 6 लाख से अधिक कर्मचारी काम करते हैं. टाटा की वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार, 1,028,000 कर्मचारी काम मौजूदा समय में काम करते हैं. दुनिया भर के कई देशों में कंपनी कारोबार करती है. टाटा समूह में 30 से अधिक कंपनियां शामिल हैं, जो कई सेक्टर में कारोबार करती हैं. 2023-24 में टाटा कंपनियों का कुल रेवेन्यू 165 बिलियन डॉलर से अधिक था. 21000 रुपये से शुरू हुआ कारोबार आज दुनियाभर में अपनी सफलता का डंका बजा रहा है. भारत की अर्थव्यवस्था को गढ़ने में टाटा समूह का अहम योगदान है.