RIL KG Gas Dispute: 10 साल से रिलायंस और सरकार में झगड़ा, जानें क्या है गैस चोरी का मामला
RIL KG Gas Dispute: रिलायंस इंडस्ट्रीज ने मंगलवार को कहा कि पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय ने लंबे समय से चल रहे कृष्णा गोदावरी (KG) गैस माइग्रेशन विवाद मामले में 2.81 अरब डॉलर की मांग की है. सरकार और रिलायंस के बीच लंबे समय से यह विवाद चल रहा है.

RIL KG Gas Dispute: रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (RIL) और देश के पेट्रोलियम एवं नेचुरल गैस मंत्रालय के बीच फिर से विवाद पनपता हुआ नजर आ रहा है. पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय और रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड के बीच विवाद का फिर से उभरना, कंपनी के ग्रोथ की राह में मुश्किलें खड़ी कर सकता है. हालांकि, यह विवाद कोई नया नहीं है. इस विवाद की पृष्ठभूमि करीब ढाई दशक पुरानी है. 14 फरवरी को दिल्ली हाई कोर्ट की एक बेंच ने देश के पूर्वी तट पर कृष्णा गोदावरी बेसिन में भारत के केजी डी6 ब्लॉक में एक गहरे पानी के क्षेत्र में गैस निकालने से संबंधित विवाद में रिलायंस और उसके साझेदारों के खिलाफ फैसला सुनाया था.
एक दशक से चल रहा मामला
कृष्णा-गोदावरी (KG) बेसिन में गैस माइग्रेशन को लेकर RIL के साथ लंबे समय से चल रही कानूनी लड़ाई में केंद्र सरकार के लिए एक महत्वपूर्ण जीत है. यह एक ऐसा मुद्दा है जो एक दशक से अधिक समय से भारत की एनर्जी एक्सप्लोरेशन और और प्रोडक्शन लैंडस्केप का सेंटर रहा है.
इस फैसले से सरकार के लिए RIL और उसके विदेशी साझेदारों के खिलाफ लगभग 1.7 अरब डॉलर के क्लेम को लागू करने का रास्ता साफ हो गया है, जबकि कंपनी के पास अब इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने का विकल्प है.
ढाई दशक पहले हुई शुरुआत
इस विवाद की जड़ें 2000 के दशक से देखी जा सकती हैं. अप्रैल 2000 में RIL के नेतृत्व वाले एक संघ ने केंद्र सरकार के साथ एक प्रोडक्शन शेयरिंग कॉन्ट्रैक्ट (PSC) पर हस्ताक्षर किए, जिसके तहत उसे आंध्र प्रदेश के तट पर स्थित KG बेसिन से नेचुरल गैस की खोज और निकासी का अधिकार दिया गया. कॉन्ट्रैक्ट में शामिल पक्षों के बीच जिम्मेदारियों, अधिकारों और रेवेन्यू-शेयरिंग व्यवस्था का विस्तृत डिटेल्स दिया गया था.
रिलायंस के पास कितनी हिस्सेदारी
2006 और 2007 के बीच RIL ने कथित तौर पर चार डेवलपमेंट वेल्स (कुआं) की खुदाई की और 1 अप्रैल 2009 को कमर्शियल उत्पादन शुरू किया. इसका केजी-डी6 ब्लॉक ONGC की गोदावरी पेट्रोलियम और माइनिंग लीज (PML) और केजी-डीडब्ल्यूएन-98/2 ब्लॉक के बगल में स्थित है. RIL के पास केजी-डी6 ब्लॉक में 60 फीसदी हिस्सेदारी है, जिसमें बीपी पीएलसी के पास 30 फीसदी और निको रिसोर्सेज के पास शेष 10 फीसदी हिस्सेदारी है.
ONGC पहुंच गई कोर्ट
जुलाई 2013 में ONGC ने हाइड्रोकार्बन महानिदेशालय (DGH) को अपने क्षेत्रों और RIL के ब्लॉक के बीच गैस पूल की लेटरल निरंतरता का सुझाव देने वाले साक्ष्यों के बारे में बताया. हालांकि, दोनों कंपनियां शुरू में जांच के लिए एक स्वतंत्र सलाहकार नियुक्त करने के लिए सहमत हो गईं, लेकिन ONGC ने 15 मई 2014 को दिल्ली हाई कोर्ट में एक रिट याचिका दायर की, मामले में सरकार, DGH और RIL का नाम लिया गया.
गैस माइग्रेशन की जांच के लिए RIL और ONGC ने संयुक्त रूप से अमेरिका बेस्ड सलाहकार डीगोलियर और मैकनॉटन (डीएंडएम) को नियुक्त किया. नवंबर 2015 में फर्म ने अपनी रिपोर्ट पेश की, जिसमें निष्कर्ष निकाला कि 11,000 करोड़ रुपये से अधिक की नेचुरल गैस ONGC के निष्क्रिय क्षेत्रों से RIL के केजी-डी6 ब्लॉक में चली गई थी.
रिपोर्ट के बाद सरकार ने दिसंबर 2015 में दिल्ली हाई कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश ए.पी. शाह की अध्यक्षता में एक समिति गठित की, जिसका उद्देश्य ‘अनुचित संवर्धन’ के मुद्दे की जांच करना और क्षतिपूर्ति उपायों की सिफारिश करना था. समिति ने निष्कर्ष निकाला कि RIL को सात वर्षों में ONGC के क्षेत्रों से निकाली गई गैस के लिए सरकार को हुए नुकसान की भरपाई करनी चाहिए.
डिमांड नोटिस
नवंबर 2015 में पेट्रोलियम मंत्रालय ने RIL, बीपी और निको को लगभग 1.5 अरब डॉलर और अतिरिक्त 174 मिलियन डॉलर ब्याज की मांग करते हुए एक डिमांड नोटिस जारी किया. RIL और उसके साझेदारों ने 2016 में मध्यस्थता की शुरुआत की. सिंगापुर बेस्ड मध्यस्थ लॉरेंस बू के नेतृत्व में तीन सदस्यीय मध्यस्थता पैनल ने 2018 में 2:1 का फैसला सुनाया. इसमें RIL के नेतृत्व वाले संघ के पक्ष में फैसला सुनाया गया. पैनल ने निष्कर्ष निकाला कि PSC ने प्राकृतिक रूप से माइग्रेट होने वाली गैस को निकालने पर रोक नहीं लगाई. इसने सरकार को मध्यस्थता लागत के रूप में 8.3 मिलियन डॉलर का भुगतान करने का भी आदेश दिया.
सरकार ने फैसले को दी चुनौती
मध्यस्थता के नतीजे से नाखुश सरकार ने हाईकोर्ट में इस फैसले को चुनौती दी, जिसमें कहा गया कि यह सार्वजनिक नीति के खिलाफ है. सरकार ने आरोप लगाया कि RIL ने 2003 से कनेक्टिविटी के बारे में जानकारी होने के बावजूद, बिना किसी जानकारी के ONGC के क्षेत्रों से धोखाधड़ी से गैस निकाली.
HC के फैसले
मई 2023 में दिल्ली हाई कोर्ट की सिंगल बेंच ने मध्यस्थता अवार्ड को बरकरार रखा, जिसमें कहा गया कि RIL ने अपने अनुबंध क्षेत्र में काम किया था और सरकार को पेट्रोलियम के लाभ का उचित हिस्सा दिया था. RIL ने सार्वजनिक विश्वास सिद्धांत का उल्लंघन नहीं किया है. सरकार ने बाद में डिविजन बेंच में अपील की, जिसने अब सिंगल पीठ के फैसले को पलट दिया है.
क्या है कृष्णा-गोदावरी बेसिन?
कृष्णा-गोदावरी तलछटी बेसिन कृष्णा और गोदावरी नदी घाटियों में 50,000 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है, जो आंध्र प्रदेश तट के साथ-साथ भूमि और ऑफशोर है. धीरूभाई-6 (डी6) वह स्थान है जहां रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड ने 2002 में भारत में सबसे बड़ी गैस भंडार की खोज की थी. मई 2008 में कच्चे तेल और अप्रैल 2009 में नेचुरल गैस का उत्पादन शुरू किया था.
कैसे मिला था रिलायंस को KG-D6 ब्लॉक
केंद्र सरकार ने 1991 में हाइड्रोकार्बन एक्सप्लोरेशन और उत्पादन को निजी और विदेशी खिलाड़ियों के लिए खोल दिया था. इसके बाद सरकार ने 1999 में नई एक्सप्लोरेशन और लाइसेंसिंग नीति (NELP) के अनुसार बड़े ब्लॉक दिए. पहले दौर के तहत RIL को KG-D6 ब्लॉक की खोज का अधिकार मिला था.
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