केजरीवाल के समय DTC का कितना बढ़ा घाटा, जानें कितनी बसों का है बेड़ा

DTC Bus: भारत सरकार साल 1948 से ही दिल्ली में स्थानीय बस सेवाओं को प्रबंधन लिया था. लेकिन फिर कुछ डिमांड और बदलाव की जरूरतों को देखते हुए इसे दिल्ली सरकार के हवाले कर दिया गया. साल 1916 से ही डीटीसी दिल्ली सरकार के पास है.

कितना बड़ा डीटीसी बसों का नेटवर्क. Image Credit: Social Media

DTC Bus: एक वक्त था, जब बसें दिल्ली की लाइफलाइन मानी जाती थीं. दिल्ली में चलने वाली बसों का काम-काज दिल्ली ट्रांसपोर्ट कॉरपोरेशन (DTC) लंबे समय से संभालती आ रही है और हाल फिलहाल सुर्खियों में भी है. लेकिन वो बसों में अच्छी-बुरी सुविधाएं, लेट-लतीफी और दुर्घटना जैसी चीजों के चलते नहीं, बल्कि अपने घाटे की वजह से सुर्खियों में है. CAG की रिपोर्ट के हवाले से TOI ने लिखा कि दिल्ली ट्रांसपोर्ट कॉरपोरेशन (DTC) का घाटा 2015-16 में 25,300 करोड़ रुपये से बढ़कर 2021-22 तक लगभग 60,750 करोड़ रुपये हो गया है, जिसका कारण बस बेड़े का पुराना होना और बस सेवाओं का अपर्याप्त होना है. इसके अलावा लंबे समय से किराये में बढ़ोतरी नहीं होना, महिलाओं के लिए फ्री यात्रा और नॉन-एफिशिएंट रूट प्लानिंग जैसे फैक्टर ने वित्तीय चुनौतियां बढ़ाई हैं. दिल्ली ट्रांसपोर्ट कॉरपोरेशन (DTC) पर शुरू हुई चर्चा की बीच यह समझने की कोशिश करते हैं कि ये संस्था कैसे काम करती है.

कब हुई थी डीटीसी की शुरुआत?

सबसे पहले समझ लेते हैं कि डीटीसी कैसे काम करती है. डीटीसी एक पब्लिक सेक्टर की पैसेंजर ट्रांसपोर्ट कॉरपोरेशन है, जो दिल्ली में बस सर्विस का काम-काज यानी प्रबंधन संभालती है. इसे नवंबर 1971 में दिल्ली में एक एफिशिएंट, किफायती और सही तरह से कॉर्डिनेशन के साथ बस सर्विस प्रदान करने के लिए भारत सरकार के पूर्ण स्वामित्व वाले कॉरपोरेशन के रूप में शामिल किया गया था. बाद में इसका प्रशासनिक नियंत्रण 5 अगस्त 1996 से दिल्ली सरकार के परिवहन विभाग को ट्रांसफर कर दिया गया था.

सरकार ने हासिल किया कंट्रोल

हालांकि, भारत सरकार साल 1948 से ही दिल्ली में स्थानीय बस सेवाओं को प्रबंधन लिया था. दरअसल, साल 1948 में भारत सरकार के परिवहन मंत्रालय ने उस समय दिल्ली में बस सर्विस का प्रबंधन संभाला, जब तत्कालीन सर्विस प्रोवाइडर ग्वालियर और नॉर्दन इंडिया परिवहन कंपनी लिमिटेड की सर्विस बढ़ती डिमांड को मैनेज करने में असफल हो रही थी. सड़क परिवहन निगम अधिनियम, 1950 के तहत दिल्ली सड़क परिवहन प्राधिकरण का गठन किया गया था. यह प्राधिकरण अप्रैल 1958 में संसद के एक अधिनियम द्वारा दिल्ली नगर निगम का एक उपक्रम बना था.

किसके पास डीटीसी का कंट्रोल

फिर साल 1971 में योजना आयोग के एक वर्किंग ग्रुप की सिफारिशों पर भारत सरकार ने दिल्ली सड़क परिवहन कानून (संशोधन) अधिनियम पारित करके उपक्रम का प्रबंधन अपने हाथ में ले लिया. दरअसल, वर्किंग ग्रुप का कहना था कि दिल्ली नगर निगम के विस्तार के रूप में दिल्ली परिवहन कुशलतापूर्वक और पर्याप्त रूप से काम नहीं कर रहा था, जिससे रेवेन्यू प्रभावित हो रहा था और ऑपरेशनल कॉस्ट भी बहुत अधिक थी.

भारत सरकार ने दिल्ली सड़क परिवहन कानून (संशोधन) अधिनियम पारित करके उपक्रम का प्रबंधन अपने हाथ में ले लिया. नवगठित दिल्ली परिवहन निगम ने 2 नवंबर 1971 तक डीटीयू से संपत्ति और देनदारियों को भी अपने ऊपर ले लिया.

इसके बाद डीटीसी का प्रशासनिक नियंत्रण 5 अगस्त 1996 से दिल्ली सरकार के परिवहन विभाग को ट्रांसफर कर दिया गया और तब से यह दिल्ली सरकार के पास ही है.

कैसे काम करती है डीटीसी

दिल्ली ट्रांसपोर्ट कॉरपोरेशन की देख रेख बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स के जरिए की जाती है, जिसमें चेयरमैन-सह- मैनेजिंग डायरेक्टर (CMD) और दिल्ली सरकार द्वारा नियुक्त अन्य निदेशक शामिल होते हैं. संगठन के मुख्य कार्यकारी के रूप में कार्यरत CMD के ऊपर ही दिन-प्रतिदिन के ऑपरेशन के प्रबंधन की जिम्मेदारी होती है. इस भूमिका को चार मुख्य महाप्रबंधकों, छह क्षेत्रीय प्रबंधकों और डिपो प्रबंधकों वाली एक टीम सपोर्ट करती है.

डीटीसी का नेटवर्क

डीटीसी के पास पूरे दिल्ली में फैले बस रूट्स का एक बड़ा नेटवर्क है. कुछ रूट्स पड़ोसी शहरों- नोएडा, गाजियाबाद, गुरुग्राम और फरीदाबाद से होकर गुजरते हैं. जून 2023 तक दिल्ली में कुल 606 बस रूट्स में से 259 डीटीसी के जरिए ऑपरेटेड थे. इसके अलावा 209 पर DIMTS ऑपरेट करती है और 138 रूट्स को परिवहन विभाग के ‘इटीग्रेटेड टाइम टेबल’ के तहत दोनों प्राधिकरणों द्वारा ऑपरेट किया जाता था. इन रूट्स पर 37 डिपो और 3 अंतरराज्यीय बस टर्मिनल से बसें चलती हैं.

डीटीसी के पास कितनी बसें?

रिपोर्ट के अनुसार, सितंबर 2023 तक दिल्ली परिवहन निगम (DTC) के बेड़े में 4,088 बसें थीं. इसमें 3,288 सीएनजी बसें और 800 इलेक्ट्रिक बसें शामिल हैं. डीटीसी के पास दुनिया का सबसे बड़ा सीएनजी बसों का फ्लीट है और भारत का सबसे बड़ा इलेक्ट्रिक बस फ्लीट भी इसी के पास है. डीटीसी ने लो फ्लोर एसी और नॉन-एसी बसें, यू स्पेशल, नाइट सर्विसेज, इंटर-बस टर्मिनल, टूरिस्ट और एयरपोर्ट एक्सप्रेस सेवाएं प्रदान करने की व्यवस्था की है. डीटीसी चुनाव, कानून और व्यवस्था ड्यूटी के लिए मांग पर सेना, स्कूलों और पुलिस विभाग को बसें प्रदान करता है.

सीएजी की रिपोर्ट में दावा

सीएजी की रिपोर्ट के हवाले से छपी खबरों के अनुसार, दिल्ली परिवहन निगम का घाटा 2015-16 में 25,300 करोड़ रुपये से बढ़कर 2021-22 तक लगभग 60,750 करोड़ रुपये हो गया है. कैग ने डीटीसी द्वारा रूट प्लानिंग में खामी की ओर इशारा किया है. साल 2007 में दिल्ली हाई कोर्ट ने आदेश दिया था कि डीटीसी के पास 11,000 बसों का बेड़ा होना चाहिए.

हालांकि, पांच साल बाद दिल्ली कैबिनेट ने यह संख्या 5,500 तय की थी. कैग रिपोर्ट में दावा किया गया है कि मार्च 2022 के अंत में डीटीसी के पास 3,937 बसों का बेड़ा था, जिनमें से 1,770 ओवरएज थीं.