कौन है Fevicol के मालिक, जिनका आज भी चलता है सिक्का, पहले केमिकल बनाती थी कंपनी
पिडिलाइट इंडस्ट्रीज के पॉपुलर प्रोडक्ट फेविकोल की देशभर में काफी डिमांड है. फर्नीचर से लेकर दूसरी चीजों को चिपकाने के लिए लोग इसका इस्तेमाल करते हैं. इस गोंद को बनाने का आइडिया किसने दिया और कैसे इसकी पॉपुलैरिटी बढ़ी, आज हम आपको इसी के बारे में बताएंगे.

Who is the owner of Fevicol: घर में फर्नीचर का काम हो या किसी चीज को जोड़ना हो, सबसे पहला नाम फेविकोल का ही आता है. मजबूती में बेजोड़ होने का दावा करने वाली इस कंपनी का वो ऐड तो आपको याद ही होगा जिसमें कहते हैं Fevicol का जोड़ है टूटेगा नहीं. घर-घर तक इस विज्ञापन के जरिए पॉपुलर होने वाले फेविकोल ब्रांड को बनाने में आखिर किसका हाथ है, कौन है इसके मालिक, आज हम आपको इसी बारे में बताएंगे.
किसनी रखी थी Fevicol की नींव?
ग्लू बनाने वाले पॉपुलर प्रोडक्ट फेविकोल को साल 1959 में लॉन्च किया गया था. इसकी शुरुआत बलवंत पारेख ने की थी. ये पिडिलाइट इंडस्ट्रीज का हिस्सा है, जिसके चेयरमैन मधुकर बी पारेख हैं. फेविकोल को पेश करने का मकसद पशुओं की चर्बी से बनने वाले गोंद की जगह एक सिंथेटिक विकल्प पेश करना था, जिससे फर्नीचर बनाने वाले कारीगरों को राहत मिल सके.
कैसे हुई थी शुरुआत?
फेविकोल के लॉन्च से पहले बलवंत पारेख ने साल 1954 में अपने भाई सुशील पारेख के साथ एक छोटे बिजनेस से की थी. बाद में दोनों ने पिगमेंट इमल्शन का निर्माण शुरू किया जिसका उपयोग कपड़ा छपाई में किया गया. मगर इसमें जानवरों से जुड़ी चीजों का इस्तेमाल होता था, तभी उन्हें एक ऐसे गाेंद के निर्माण का ख्याल आया जो इससे मुक्त हो.
कैसे बढ़ा कारोबार?
बलवंत पारेख ने फर्नीचर बनाने वालों की सुविधा का ध्यान में रखते फेविकोल को पेश किया था. इसकी पहुंच बढ़ाने के लिए उन्होंने 1963 तक यानी अपनी स्थापना के चार साल बाद मुंबई के कोंडिविता गांव में अपना पहली मैन्यूफैक्चरिंग यूनिट लॉन्च की थी. 1970 में, विभिन्न ठेकेदारों की जरूरतों को पूरा करने के लिए फेविकोल को कई पैक में लॉन्च किया गया. इस अवधि में 30 ग्राम की कोलैप्सेबल ट्यूब का निर्माण भी हुआ, जो स्टेशनरी पाउच और दफ्तरों तक में यूज होने लगी. 1997 में फेविकोल ने अपना पहला टीवी विज्ञापन जारी किया था, यहीं से उसकी पॉपुलैरिटी घर-घर तक पहुंचने लगी थी.
कैसा रहा बलवंत पारेख का करियर?
बलवंत पारेख का जन्म गुजरात के महुआ में हुआ था. वे एक फ्रीडम फाइटर भी रहे हैं. उन्होंने क्विट इंडिया मूवमेंट में हिस्सा लिया था. मगर परिवार के दबाव में उन्होंने वकालत की पढ़ाई की और बार काउंसिल का एग्जाम पास किया. जिंदगी में टर्निंग पॉइंट तब आया, जब उन्हें जर्मनी जाने का मौका मिला. वहां की इंडस्ट्री और बिजनेस के तरीकों को देखकर उनकी सोच बदल गई. उन्होंने जो सीखा वो भारत में इसे अमल में लाने की कोशिश में लग गए. भारत लौटकर बलवंत ने अपने भाई के साथ मिलकर मुंबई में पारेख डायकैम इंडस्ट्रीज शुरू की. पहले कंपनी केमिकल प्रोडक्ट्स बनाती थी, लेकिन 1959 में उन्होंने फेविकोल लॉन्च किया था.
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कैसे पिडिलाइट इंडस्ट्रीज में हुआ तब्दील?
बलवंत पारेख फेविकोल से हर घर तक पहुंच बनाने में कामयाब हुए, इस प्रोडक्ट की कामयाबी को देखते हुए इसे पिडिलाइट इंडस्ट्रीज नाम की कंपनी के तहत बेचा जाने लगा. पिडिलाइट इंडस्ट्रीज के डीलर्स 97 हजार है, जबकि कॉन्ट्रैक्टर्स 240 हजार हैं. ये 100 से ज्यादा प्रोडक्ट बनाती है. कंपनी की बैलेंस शीट के अनुसार, तीसरी तिमाही में पिडिलाइट इंडस्ट्रीज का मुनाफा 2.22 प्रतिशत बढ़कर 534.50 करोड़ रुपये हो गया है, जबकि इसका ऑपरेशन रेवेन्यू वित्त वर्ष 2024 की तीसरी तिमाही के 2,834.47 करोड़ रुपये की तुलना में बढ़कर 3,099.08 करोड़ रुपये हो गया.
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