कौन है Relaxo का मालिक जिसके डूब गए 4 हजार करोड़, तीन महीने पड़ गए भारी
रमेश कुमार दुुआ और उनके भाई हरियाणा से दिल्ली आए थे. उनका परिवार पहले साइकिल के पुर्जे और रबर फुटवियर बनाने के व्यवसाय में था. लेकिन जब परिवार ने 1960 के दशक के अंत में कारोबार को अलग-अलग बांट लिया तो रमेश ने फुटवियर इंडस्ट्री में कुछ अलग करने की ठानी. उन्होंने 1974 में अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद लंदन के "द प्लास्टिक्स एंड रबर इंस्टीट्यूट" से रबर टेक्नोलॉजी की पढ़ाई की.
Relaxo Owner: साल 1976 में दिल्ली के दो भाइयों, रमेश कुमार दुआ और मुकंद लाल दुआ ने एक सपना देखा, ऐसा फुटवियर ब्रांड बनाने का जो आम लोगों के पॉकेट पर बिना भार डाले उनकी जरूरतों को पूरा करे. उस समय भारत में जूते-चप्पलों का बाजार ज्यादातर चमड़े के प्रोडक्ट पर निर्भर था लेकिन रमेश कुमार ने इसमें बदलाव लाने का फैसला किया. उनका मानना था कि रबर से बने टिकाऊ और किफायती फुटवियर को हर वर्ग के लोग अपना सकते हैं. इसी सोच से रिलैक्सो की नींव रखी गई.
आज यह कंपनी न सिर्फ भारत में बल्कि दुनियाभर में अपनी पहचान बना चुकी है. लेकिन इस मुकाम तक पहुंचने का सफर आसान नहीं था. आइए, जानते हैं रिलैक्सो के मालिक की कहानी और कंपनी का मौजूदा हाल.
कैसे शुरू हुई कंपनी?
हरियाणा में जन्मे रमेश कुमार दुआ बहुत छोटे थे जब उनका परिवार दिल्ली आकर बस गया. उनके पिता और चाचा उभरते मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में कदम रखने के लिए संघर्ष कर रहे थे. करीब 15 साल तक उन्होंने साइकिल के पुर्जे और रबर फुटवियर बनाने का काम किया लेकिन 1960 के दशक के अंत में परिवार ने व्यापार को आपस में बांट लिया. यहीं से रमेश कुमार दुआ ने एक अलग राह पकड़ने का फैसला किया.
1974 में ग्रेजुएशन के बाद, रमेश ने रबर टेक्नोलॉजी की पढ़ाई करने का निर्णय लिया. उस समय भारत में ज्यादातर जूते लेदर के बनते थे, लेकिन रमेश को लगा कि सस्ते और टिकाऊ रबर फुटवियर बनाए जा सकते हैं. इस विचार को हकीकत में बदलने के लिए उन्होंने लंदन स्थित द प्लास्टिक्स एंड रबर इंस्टीट्यूट से पढ़ाई की. वहां से लौटने के बाद उन्होंने अपने भाई मुखंद लाल दुआ के साथ मिलकर 1976 में रिलैक्सो की बीज बोई गई.
रिलैक्सो का वैश्विक विस्तार
धीरे-धीरे रिलैक्सो ने अपने प्रोडक्ट में इनोवेशन किया. कंपनी की पहचान ‘मास मार्केट’ ब्रांड के रूप में बनी, जिसमें हर तबके के लोगों के लिए जूते-चप्पल उपलब्ध थे. धीरे-धीरे कंपनी ने अपनी प्रोडक्ट लाइन को बढ़ाते हुए स्पार्क्स, बहार, फ्लाइट और स्कूलमेट जैसे पॉपुलर ब्रांड लॉन्च किए. इनकी खासियत यह थी कि ये स्टाइलिश होने के साथ-साथ किफायती भी थे.
आज यह कंपनी साउथ-ईस्ट एशिया, अफ्रीका, मिडिल ईस्ट, SAARC और LATAM जैसे बड़े बाजारों में अपने जूते एक्सपोर्ट कर रही है. चीनी कंपनियों से मुकाबला करने के बावजूद रिलैक्सो ने अपनी अलग पहचान बनाई है.
रिलैक्सो के मालिक रमेश कुमार दुआ की मेहनत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 2023 में उनकी नेट वर्थ 1 अरब डॉलर आंकी गई थी. ‘योरस्टोरी’ की रिपोर्ट के मुताबिक रिलैक्सो ने 4.9 फीसदी की सालाना ग्रोथ के साथ FY2023 में 2,783 करोड़ रुपये का राजस्व हासिल किया था.
शेयर बाजार में रिलैक्सो का हाल
हालांकि, पिछले कुछ वर्षों में कंपनी को चुनौतियों का सामना करना पड़ा है. पिछले 19 महीनों में 14 बार रिलैक्सो के शेयर लाल निशान में बंद हुए हैं, जिससे इसका स्टॉक 58 फीसदी तक के गिरावट के साथ 415 रुपये पर ट्रेड कर रहा है. कंपनी नवंबर 2021 में ऑल-टाइम हाई के स्तर पर पहुंच कर 1,448 रुपये पर ट्रेड कर रही थी. पिछले वित्तीय वर्ष की इसी तिमाही (Q3 FY24) की तुलना में कंपनी के रेवेन्यू में भी 6.43 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है, जिससे कुल रेवेन्यू 666.90 करोड़ रुपये पर आ गया है. अगर कंपनी के केवल साल 2025 के घाटे को मापा जाए तो ये हजारों करोड़ का है. दिसंबर में कंपनी का मार्केट कैप 15,428 करोड़ था. महज इन 4 महीनों में कंपनी ने 4,760 करोड़ का घाटा दर्ज कर मार्केट कैप को 10,668 करोड़ पर ला दिया है.
अगर कंपनी के इतिहास पर नजर डालें, तो दिसंबर 2016 से अक्टूबर 2021 तक इस स्टॉक ने जबरदस्त 565 फीसदी की ग्रोथ दर्ज की थी. लेकिन हाल के तिमाही नतीजों में उम्मीद के मुताबिक प्रदर्शन न करने और बाजार में प्रतिस्पर्धा बढ़ने की वजह से कंपनी दबाव में दिख रही है.
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रिलैक्सो फिलहाल अपने डिस्ट्रीब्यूशन नेटवर्क को सुधारने और टेक्नोलॉजी के जरिए अपने बिजनेस को मजबूत करने में जुटी है. मैनेजमेंट का मानना है कि अगले 2-3 तिमाहियों में इसका असर दिखेगा और कंपनी एक बार फिर ग्रोथ की राह पर लौटेगी.