रिटेल के बाद अब थोक महंगाई की मार, अक्टूबर में बढ़कर हुई 2.36 फीसदी
Wholesale Inflation: थोक महंगाई दर में बढ़ोतरी होने के बाद इसका आम आदमी पर भी असर पड़ने वाला है. इससे निपटने के लिए रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया क्या कर सकता है? और क्या-क्या महंगा हो रहा है? यहां जानें...
हाल में आए रिटेल महंगाई के आंकड़ों ने सबको चौंका दिया था. अब होलसेल या थोक महंगाई के आंकड़े आए हैं जिसमें भी बढ़ोतरी हुई है. हालांकि आंकड़ों से समझाने की जरूरत नहीं, आम आदमी महंगाई को आंकड़ों से बेहतर महसूस कर रहा है और जूझ भी रहा है. बढ़ती महंगाई की बड़ी वजह खाने-पीने की चीजों की कीमतों में आई उछाल है. अक्टूबर में थोक महंगाई दर 2.36 फीसदी रही जबकि पिछले महीने सितंबर में महंगाई दर 1.84 फीसदी थी.
क्या-क्या महंगा हो रहा है?
आंकड़े बताते हैं कि खाने-पीने की चीजों में आई महंगाई ने सबका बजट हिला दिया है:
- अक्टूबर में खाने-पीने की चीजों की कीमतों में 11 फीसदी की तेजी है जबकि यह सितंबर में 9.47 फीसदी थी.
- सब्जियों की कीमतों में 63.04 फीसदी का उछाल आया है जो सितंबर में 48.7 फीसदी थी.
- मैन्युफैक्चरिंग प्रोडक्ट में 1.5 फीसदी की महंगाई आई है जो सितंबर में 1 फीसदी रही.
- फ्यूल और बिजली थोड़ा सस्ता हुआ है इसमें 5 फीसदी की गिरावट आई है.
थोक महंगाई का आम आदमी पर पड़ता है असर
सरकार हर महीने होलसेल प्राइस इंडेक्स यानी WPI के आंकड़े जारी करती है ताकि पता चल सके कि रिटेल से पहले होलसेल के लेवल पर कितनी महंगाई है. इस महंगाई में 22.6 फीसदी जरूरी सामानों का हिस्सा होता है फिर फ्यूल और पावर को 13.2 फीसदी जगह मिलती है और फिर 64.2 फीसदी मैन्युफैक्चरिंग प्रोडक्ट का हिस्सा होता है.
ध्यान रहे अगर थोक महंगाई बढ़ेगी तो वह सभी को प्रभावित करेगी क्योंकि होलसेल लेवल पर बढ़ी कीमतें रिटेल को पास की जाएगी जहां से आम आदमी खरीदारी करता है.
14 महीने के उच्चतम स्तर पर रिटेल महंगाई
दो दिन पहले रिटेल महंगाई के आंकड़े आए जिसे कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स या CPI कहते है. यह अपने 14 महीने के उच्चतम स्तर पर रही. रिटेल महंगाई 6.21% बढ़ी जो रिजर्व बैंक के टारगेट से ज्यादा है. सितंबर के महीने में महंगाई 5.49% थी, वहीं पिछले साल अक्टूबर में महंगाई दर 4.87% थी. इस महंगाई की वजह भी खाने-पीने के कीमतों में बड़ा उछाल है. अक्टूबर में खाने-पीने की चीजें 10.87% तक बढ़ गई, जबकि सितंबर में यह 9.24% थी.
अब क्या करेगा RBI?
RBI ने टारगेट सेट किया है कि अगर महंगाई दर 2 फीसदी से 6 फीसदी के बीच रहेगी तो उसे कंट्रोल किया जा सकता है. लेकिन इस बार महंगाई RBI के टारगेट से भी बाहर निकल गई है. महंगाई दर देख कर ही RBI तय करता है कि ब्याज दरों को घटाना है या बढ़ाना है. अगर महंगाई दर बढ़ती है तो ब्याज दरों घटाने की संभावन न के बराबर हो जाती है. इसका मतलब न तो कर्ज लेना सस्ता होगा और न ही आपकी EMI कम हो सकेगी.
दिसबंर में RBI समीक्षा बैठक करेगी तब देखना होगा कि महंगाई से निपटने के लिए वह क्या कदम उठाता है.