Trump क्यों चाहते हैं कमजोर डॉलर, अमेरिका को ये खेल पड़ सकता है भारी

Rupee vs Dollar: रुपया डॉलर के मुकाबले मजबूत हो रहा है और बुधवार को शुरुआती कारोबार में 26 पैसे मजबूत होकर 85.54 पर पहुंच गया है. इसका कारण डॉलर की कमजोरी है. अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप डॉलर को कमजोर करना चाहते हैं लेकिन क्यों?

डॉलर को क्यों कमजोर करना चाहते हैं ट्रंप Image Credit: Money9live/Canva

Trump Wants to Weak Dollar: रुपये के अब मजबूत होने की खबरें हैं. बुधवार, 16 अप्रैल को शुरुआती कारोबार में रुपया डॉलर के मुकाबले 26 पैसे मजबूत होकर 85.54 पर पहुंच गया है. ये इसलिए हुआ क्योंकि विदेशी निवेशकों का पैसा वापस आया और डॉलर कमजोर पड़ा है. अमेरिका की एक बड़ी ताकत डॉलर का मजबूत होना भी है. लेकिन अब डॉलर गिर रहा है और ये बातें सामने आई हैं कि ट्रंप खुद चाहते हैं कि डॉलर कमजोर पड़े. अगर ऐसा सच में होता है तो जाहिर तौर पर इससे रुपये को कुछ सपोर्ट मिल सकता है.

ट्रंप ऐसा क्यों चाहेंगे?

टेलीग्राफ की रिपोर्ट के अनुसार, ट्रंप के सलाहकार चाहते हैं कि डॉलर थोड़ा कमजोर हो ताकि अमेरिका का सामान सस्ता हो, एक्सपोर्ट बढ़े, व्यापार घाटा कम हो, इंपोर्ट महंगा होने से लोकल सामान ज्यादा बिके.

जब डॉलर मजबूत होता है, तो विदेशों से सामान मंगाना सस्ता और अमेरिका का माल दूसरे देशों को बेचना महंगा हो जाता है. इससे अमेरिका का ट्रेड डेफिसिट यानी एक्सपोर्ट से ज्यादा इम्पोर्ट बढ़ जाता है.

अगर डॉलर कमजोर हो, तो अमेरिका से माल बाहर बेचना आसान हो जाएगा, जिससे ट्रेड डेफिसिट कम हो सकता है.

लेकिन ये इतना आसान भी नहीं

डॉलर की कीमत पूरी तरह से बाजार कंट्रोल करता है (फ्लोटिंग एक्सचेंज रेट). अगर अमेरिका में निवेश करना दूसरे देशों के मुकाबले ज्यादा फायदेमंद लगे, जैसे ब्याज दरें ऊंची हों, अर्थव्यवस्था मजबूत हो तो दुनिया भर के निवेशक डॉलर खरीदते हैं. इससे डॉलर की मांग और कीमत बढ़ जाती है.

ट्रंप चाहते हैं कि अमेरिका का व्यापार घाटा कम हो यानी एक्सपोर्ट ज्यादा और इंपोर्ट कम. इसके लिए डॉलर का कमजोर होना जरूरी है, ताकि अमेरिकी सामान विदेशों में सस्ता बिके और एक्सपोर्ट बढ़े वहीं विदेशी सामान अमेरिका में महंगा हो यानी इंपोर्ट घटे.

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ये है बड़ी समस्या

अगर अमेरिका निवेशकों के लिए आकर्षक बना रहेगा तो डॉलर मजबूत ही रहेगा. डॉलर को कमजोर करने के लिए अमेरिका को खुद को निवेश के लिए कम आकर्षक बनाना पड़ेगा, जैसे ब्याज दरें घटाना, जो आर्थिक विकास को नुकसान पहुंचा सकता है.

एक समस्या ये भी है कि एक देश तीन चीजें एक साथ नहीं कर सकता जिसे इकोनॉमिक्स में “इम्पॉसिबल ट्रिनिटी” सिद्धांत कहते हैं:

  1. ब्याज दरें कंट्रोल करना
  2. मनी सप्लाई कंट्रोल करना
  3. एक्सचेंज रेट फिक्स करना

अमेरिका पहले दो को चुनता है तो डॉलर का रेट फ्लोटिंग रहता है. अगर वह डॉलर को फिक्स करने की कोशिश करे, तो उसे या तो ब्याज दरों पर कंट्रोल छोड़ना पड़ेगा या विदेशी निवेश पर रोक लगानी पड़ेगी जैसे चीन करता है.