दिल्ली जैसी सफल नहीं है मुंबई और बेंगलुरू में मेट्रो ! जानें क्यों नही मिल रहे हैं पैसेजर्स
दिल्ली मेट्रो दुनिया की सबसे लंबी लाइनों में से एक है. साफ-सफाई से लेकर एयर कंडिशन तक सबकुछ अपनी ओर आकर्षित करता है.मुंबई में मेट्रो के यात्री लक्ष्य का केवल 30 फीसदी ही इस्तेमाल कर रहे हैं.भारत के 22 शहरों में अलग-अलग स्तर पर मेट्रो निर्माण का कार्य जारी है, और जल्द ही 1000 किलोमीटर की मेट्रो लाइन पूरी होने वाली है.
Metro: दिल्ली दुनिया की उन चुनिंदा राजधानियों में शामिल है, जहां भारी ट्रैफिक जाम, खराब एयर क्वालिटी और भीड़भाड़ देखने को मिलती है. लेकिन इसके विपरीत, जब आप दिल्ली मेट्रो में पहुंचते हैं, तो यह एक अलग ही शहर जैसा मालूम पड़ता है. साफ-सफाई से लेकर एयर कंडिशन तक सबकुछ अपनी ओर आकर्षित करता है. यही वजह है कि देश के अन्य शहरों में भी मेट्रो की मांग बढ़ रही है. सरकार ने इस महीने बताया कि देशभर में 1000 किलोमीटर (621 मील) मेट्रो लाइन बनाई जा चुकी है.
22 शहरों में चल रहा निर्माण कार्य
भारतीय शहर लंबे समय से विश्वस्तरीय इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए संघर्ष कर रहे हैं. हालांकि, दिल्ली मेट्रो दुनिया की सबसे लंबी लाइनों में से एक है. मॉस्को, लंदन, न्यूयॉर्क और मेनलैंड चीन ही इससे बड़े मेट्रो नेटवर्क हैं. भारत के 22 शहरों में अलग-अलग स्तर पर मेट्रो निर्माण का कार्य जारी है, और जल्द ही 1000 किलोमीटर की मेट्रो लाइन पूरी होने वाली है.
यात्री जुटाना मुश्किल
कई शहरों में मेट्रो से उम्मीद के मुताबिक यात्री नहीं जुट रहे हैं. यहां तक कि जयपुर और लखनऊ जैसे शहरों में भी यह चुनौती बनी हुई है, जबकि इनकी आबादी लाखों में है. इसके अलावा, भारत के कई बड़े शहरों में भी मेट्रो का प्रदर्शन बहुत खराब है. ईटी के रिपोर्ट के मुताबिक, मुंबई में मेट्रो के यात्री लक्ष्य का केवल 30 फीसदी ही उपयोग कर रहे हैं, जबकि बेंगलुरु में यह आंकड़ा महज 6 फीसदी है.
क्या है समस्या
अन्य शहरों में मेट्रो की लोकप्रियता कम होने के पीछे अलग-अलग कारण बताए जाते हैं. शहरी विकास की देखरेख करने वाली संसदीय समिति का तर्क है कि मुख्य समस्या लास्ट-माइल कनेक्टिविटी की है. कई जगहों पर, अगर कोई मेट्रो स्टेशन छोड़ता है, तो उसके पास सार्वजनिक परिवहन से जुड़ने का कोई आसान विकल्प नहीं होता.
इसके अलावा, यदि स्टेशनों की संख्या कम हो और ट्रेनें लगातार न चलें, तो यात्रियों का रुझान कम हो जाता है और वे दूसरे विकल्पों की तलाश करने लगते हैं. दिल्ली मेट्रो की सफलता की बड़ी वजह यही है कि यहां ट्रेनें लगातार चलती हैं और स्टेशनों के बीच की दूरी भी कम है, जिससे लोग इसे अधिक पसंद करते हैं.
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बढ़ती लागत और आर्थिक दबाव
कोलकाता और मुंबई में सबअर्बन रेल नेटवर्क पहले से मौजूद है, जिसका अधिकतर निर्माण आजादी से पहले हुआ था और दशकों से इन्हें अपडेट नहीं किया गया है. दूसरी ओर, नए अर्बन सेंटर में सबअर्बन रेल नेटवर्क का विस्तार नहीं हुआ, जबकि इन शहरों की जनसंख्या में भारी बढ़ोतरी हुई. असली सबक यही है कि भारतीय शहरों को बेहतर लोकल ट्रेन नेटवर्क की जरूरत है, बजाय महंगे और चमकदार मेट्रो सिस्टम के. लेकिन मेट्रो परियोजनाओं को दिखाना और उसकी सराहना पाना आसान होता है.
आज, शहरों में सबअर्बन ट्रेन की तुलना में मेट्रो का इंफ्रास्ट्रक्चर बेहद महंगा है. हालांकि, जापान और जर्मनी जैसे देशों से रियायती दरों पर लोन लेना आसान है. लेकिन छोटे शहरों में नई मेट्रो परियोजनाएं खाली, महंगी और गूंजते हुए स्टेशनों में तब्दील हो रही हैं, जो देश के लिए एक सफेद हाथी और महंगा सौदा साबित हो सकती हैं.