करोड़ों लोगों की डुबकी के बाद भी मैली नहीं हुई गंगा, रिसर्च में हुआ खुलासा; मिनटों में खुद को शुद्ध करने में सक्षम है यह नदी
शोधकर्ताओं के अनुसार, गंगा दुनिया की एकमात्र मीठे पानी की नदी है, जिसमें 1,100 प्रकार के बैक्टीरियोफेज पाए जाते हैं. गंगा के पानी में मौजूद ये बैक्टीरियोफेज "सुरक्षा गार्ड" की तरह कार्य करते हैं. इनका मुख्य कार्य हानिकारक बैक्टीरिया की पहचान कर उन्हें नष्ट करना होता है. जब लाखों लोग गंगा में डुबकी लगाते हैं, तो यह नदी इन कीटाणुओं को पहचान लेती है. इसके बाद बैक्टीरियोफेज सक्रिय होकर कीटाणुओं को बेअसर करने लगते हैं.
प्रयागराज में महाकुंभ स्नान के लिए देश-विदेश से लोग आ रहे हैं और पवित्र गंगा में डुबकी लगा रहे हैं. महाकुंभ में श्रद्धालुओं की लगातार बढ़ती भीड़ को लेकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि अनुकूल वातावरण का ही परिणाम है कि अब तक प्रयागराज में महाकुंभ 2025 के दौरान 60 करोड़ से अधिक श्रद्धालु आस्था की पवित्र डुबकी लगा चुके हैं. हालांकि, करोड़ों लोगों के स्नान करने के बावजूद गंगा पूरी तरह रोगाणु मुक्त (जर्म-फ्री) बनी हुई है. अब गंगा को लेकर कई वैज्ञानिक खुलासे हुए हैं, तो चलिए जानते हैं कि वैज्ञानिकों का इस पर क्या कहना है.
दुनिया की एकमात्र मीठे पानी की नदी
प्रख्यात वैज्ञानिक डॉ. अजय सोनकर के अनुसार, गंगा दुनिया की एकमात्र मीठे पानी की नदी है, जिसमें 1,100 प्रकार के बैक्टीरियोफेज (एक प्रकार के विषाणु) पाए जाते हैं. ये बैक्टीरियोफेज प्राकृतिक रूप से प्रदूषण को खत्म करके पानी को शुद्ध करते हैं और अपनी संख्या से 50 गुना अधिक हानिकारक बैक्टीरिया को नष्ट कर सकते हैं. साथ ही, ये बैक्टीरिया के आनुवंशिक कोड (आरएनए) में भी बदलाव कर सकते हैं.
पद्मश्री डॉ. अजय सोनकर, जिनकी कभी एपीजे अब्दुल कलाम ने भी प्रशंसा की थी, ने गंगा के पानी की तुलना समुद्री पानी से की है. उनका कहना है कि गंगा में मौजूद बैक्टीरियोफेज प्रदूषण और हानिकारक बैक्टीरिया को खत्म करने के बाद खुद भी समाप्त हो जाते हैं. इन्हें गंगा के ‘सुरक्षा रक्षक’ के रूप में जाना जाता है, क्योंकि ये नदी के पानी को तेजी से शुद्ध करने में सक्षम हैं.
बैक्टीरियोफेज की भूमिका
डॉ. सोनकर के अनुसार, गंगा के पानी में मौजूद 1,100 प्रकार के बैक्टीरियोफेज “सुरक्षा गार्ड” की तरह काम करते हैं. इनका मुख्य कार्य हानिकारक बैक्टीरिया को पहचानकर उन्हें नष्ट करना होता है. बैक्टीरियोफेज बैक्टीरिया से 50 गुना छोटे होते हैं, लेकिन वे बेहद शक्तिशाली होते हैं. गंगा में मौजूद विभिन्न प्रकार के बैक्टीरियोफेज अलग-अलग कीटाणुओं को निशाना बनाकर खत्म करते हैं.
महाकुंभ के दौरान, जब लाखों लोग गंगा में डुबकी लगाते हैं, तो उनके शरीर से निकलने वाले कीटाणुओं को गंगा पहचान लेती है. इसके बाद बैक्टीरियोफेज तुरंत सक्रिय होकर इन कीटाणुओं को बेअसर करने लगते हैं. यही कारण है कि इतने बड़े स्तर पर स्नान होने के बावजूद गंगा रोगाणु मुक्त बनी रहती है.
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नोबेल पुरस्कार विजेता के साथ किया है काम
कैंसर, जेनेटिक कोड, सेल बायोलॉजी और ऑटोफैगी के वैश्विक शोधकर्ता डॉ. अजय सोनकर ने वैगनिंगन यूनिवर्सिटी, राइस यूनिवर्सिटी, टोक्यो इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी और हार्वर्ड मेडिकल स्कूल जैसे शीर्ष संस्थानों के साथ शोध कार्य किया है. डॉ. सोनकर ने टोक्यो इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के 2016 के नोबेल पुरस्कार विजेता, जापानी वैज्ञानिक डॉ. योशिनोरी ओहसुमी के साथ सेल बायोलॉजी और ऑटोफैगी पर बड़े पैमाने पर शोध किया है.
उनके शोध कार्यों ने वैज्ञानिक जगत में नई संभावनाओं को जन्म दिया है और गंगा के शुद्धिकरण तंत्र को समझने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.