फुटपाथ पर सब्जी बेचने वाले ने लिख दी 18 किताबें, मिले कई पुरस्कार, जानें पूरी कहानी

असम के एक सब्जी विक्रेता ने 18 किताबें लिख दीं. उन्होंने मणिकांचन, संयोग, श्रीमद्भागवत शब्दार्थ, श्रीकृष्ण गीता असमिया भाषा में लिखी हैं. उनकी इन किताबों के लिए असम सरकार ने कई पुरस्कारों से सम्मानित किया है. इसके अलावा उन्हें असम साहित्य सभा ने भी पुरस्कृत किया है. ऐसे में आइए जानते हैं उनकी पूरी कहानी.

सब्जी बेचने वाले ने लिख दी 18 किताबें Image Credit: FREEPIK

Vegetable Seller Turned Author: अगर मैं आपको बताऊं कि फुटपाथ पर सब्जी बेचने वाले ने 18 किताबें लिख दी हैं, तो आपको यकीन नहीं होगा. लेकिन यह सच है. मणिकांचन, संयोग, श्रीमद्भागवत शब्दार्थ, श्रीकृष्ण गीता असमिया भाषा में लिखी गई इन किताबों के लेखक एक सब्जी विक्रेता हैं. उनका नाम है लक्षीराम दूवरा दास. वे असम राज्य से ताल्लुक रखते हैं. मूल रूप से वे देश के सबसे बड़े नदी द्वीप माजुली के कैवर्ते गांव के रहने वाले हैं, लेकिन पिछले 20 साल से जोरहाट में फुटपाथ पर सब्जी बेच रहे हैं.

साहित्य सभा ने किया पुरस्कृत

लक्षीराम दूवरा दास को उनकी किताबों के लिए असम सरकार ने कई पुरस्कारों से सम्मानित किया है. उन्हें असम साहित्य सभा ने पुरस्कृत किया है. असम सरकार ने असम भाषा गौरव योजना के तहत उन्हें सम्मानित किया है. इसके अलावा, कोच राजबंशी छात्र संगठन ने भी उन्हें सम्मान दिया है.

घर बेचकर छपवाई अपनी पहली किताब

जब किसी प्रकाशक ने उनकी पहली किताब छापने से मना कर दिया, तो उन्होंने अपना घर 50,000 रुपये में बेच दिया. उसी पैसे से उन्होंने अपनी किताब प्रकाशित करवाई. उन्होंने बृजावली भाषा में लिखे आध्यात्मिक ग्रंथों का सरल भाषा में अनुवाद भी किया है. उनका लेखन लोकगाथाओं, पुराणों और असमिया संस्कृति से प्रेरित है.

सब्जी के साथ सपनों की बिक्री

दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के मुताबिक, लक्षीराम जब बी.ए. फाइनल ईयर में थे, तब उनके पिता का निधन हो गया. पिता की मौत के बाद घर की सारी जिम्मेदारी उनके कंधों पर आ गई. उन्हें लिखने का बहुत शौक था, लेकिन परिवार की जिम्मेदारी कि वजह से उन्हें सब्जी बेचनी पड़ी. वे सुबह से शाम तक सब्जी बेचते और रात में पढ़ाई-लिखाई करते. वे बताते हैं कि जब उन्होंने अपनी पहली किताब हरी भक्ति अमृत वाणी लिखी, तो कोई भी उसे छापने को तैयार नहीं था.

कैसे बढ़ी आध्यात्मिक किताबों में रुचि?

लक्षीराम दास ने दैनिक भास्कर को बताया कि एक दिन उनके घर पर एक अनजान युवक ने हमला कर दिया. हमले में उनके घर का सारा सामान तोड़ दिया. वे कहते हैं कि उन्हें आज तक नहीं पता कि ऐसा क्यों हुआ. इस घटना के बाद जब उन्होंने आत्मचिंतन किया, तो महसूस हुआ कि शायद उन्होंने जीवन में कुछ गलत किया होगा, जिसकी वजह से यह घटना घटी. तभी से उनका मन अध्यात्म की ओर मुड़ गया और उन्होंने आध्यात्मिक लेखन शुरू कर दिया.

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