कोशी को कोसते बिहार के लोग, आखिर क्यों 12 हजार करोड़ बाढ़ बजट होने के बावजूद बाढ़ के चपेट में आ रहा ये राज्य
आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे भारत ने आज जहां एक तरफ शिक्षा, चिकित्सा तकनीक के क्षेत्रों में एक मुकाम को हासिल कर लिया है. वहीं दुसरी तरफ बिहार अपनी दशा देख सर पकड़े बैठा है. बिहार एक बार फिर भयंकर बाढ़ से जूझ रहा है. इस बाढ़ से तकरीबन 11 लाख लोग प्रभावित हुए है. ऐसे में आइए समझते है बिहार के बाढ़ के पैसों का गणित. हम यह भी समझेंगे की हर साल यहां बाढ़ क्यों आ रही है.
बिहार समझ नहीं पा रहा है कि अपनी किस्मत को कोसे या रोएं. आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे भारत ने आज जहां एक तरफ शिक्षा, चिकित्सा तकनीक के क्षेत्रों में एक मुकाम को हासिल कर लिया है. वहीं दुसरी तरफ बिहार अपनी दशा देख सर पकड़े बैठा है. नेता-विपक्ष अपनी राजनीति चमकाने के लिए हमेशा तट पर रहते है, लेकिन हर साल बाढ़ से राज्य को इतना बड़ा नुकासान उठाना पड़ता है, उसके लिए परमानेंट उपाय निकालने में असमर्थ दिखाई पड़ते है. ऐसे में आइए समझते है बिहार के बाढ़ के पैसों का गणित. हम यह भी समझेंगे की हर साल यहां बाढ़ क्यों आ रही है.
बिहार एक बार फिर भयंकर बाढ़ से जूझ रहा है. इस बाढ़ से तकरीबन 11 लाख लोग प्रभावित हुए है. बिहार जैसे राज्य में बाढ़ एक गंभीर समस्या बन गई है. हर साल मानसून में इसका प्रभाव लोगों पर पड़ता है. जिससे लोगों को अपने फसलें और पशु आदि से हाथ धोना पड़ता है. पूरा का पूरा गांव अपने घर से बेघर हो जाता है. इस बाढ़ का समाधान दशकों से खोजा जा रहा है इसके बावजूद राज्य या केंद्र सरकार इससे निजात पाने में असफल दिखाई देते है.
ये है मुख्य कारण
बिहार में बाढ़ का सबसे मुख्य कारण देखें तो वह नेपाल है. नेपाल इसलिए है क्योंकि इसके नीचे की ओर स्थित कोसी, गंडक, बूढ़ी गंडक, बागमती और अन्य हिमालयी नदियाँ इसी क्षेत्र में भारी मात्रा में तलछट लाती हैं. भारी बारिश के कारण ये नदियां उफान पर आ जाती हैं, जिससे बिहार में बाढ़ हर साल अपना विकराल रूप लेकर आ जाती है. राज्य के बाढ़ प्रबंधन सुधार सहायता केन्द्र (एफएमआईएससी) के अनुसार, बिहार भारत में सबसे अधिक बाढ़ प्रभावित राज्य है. जहां उत्तर बिहार की 76 प्रतिशत आबादी नियमित रूप से बाढ़ से होने वाली तबाही के खतरे में रहती है.
बिहार आपदा प्रबंधन बाढ़ को चार अलग-अलग कैटेगरी में डिवाइड करता है.
- नदी के उफान पर होने के कारण कई बार बाढ़ आती है.
- नेपाल में होने वाली वर्षा के कारण आकस्मिक बाढ़ आती है. जैसा की हमने ऊपर देखा कि कई नदियां नेपाल से आती है. वहां भारी बारीश के चलते बाढ़ का खतरा बढ़ जाता है.
- जल के निकासी होने की सुविधा न होने के कारण भी बाढ़ अपना विकराल रूप ले लेती है.
- स्थायी जलभराव भी इस कैटेगरी का एक हिस्सा है.
यह है इतिहास
इस साल नेपाल में भारी बारिश और कोसी नदी से छोड़े गए पानी के कारण बाढ़ आई है. सुपौल, दरभंगा, मधुबनी और अन्य जिले इससे बुरी तरह प्रभावित हुए हैं. दशकों से इसके समाधान की तलाश की जा रही है. राज्य में सबसे ज्यादा बाढ़ किसी नदी से आती है तो वो है कोसी. इस नदी को अक्सर ‘बिहार का शोक’ कहा जाता है. 1950 के दशक में कोसी के बहाव को नियंत्रित करने के प्रयास में तटबंध बनाए गए थे. लेकिन ये तटबंध कई बार टूट गए, जिससे बाढ़ की स्थिति और भी खराब हो गई. इस साल नेपाल में कोसी पर बीरपुर बैराज ने 6.6 लाख क्यूसेक पानी छोड़ा. जो लगभग 60 वर्षों में सबसे अधिक है.
इतने करोड़ रुपए होता है खर्च
इस साल बाढ़ के चलते चार जिलों में सात बिंदुओं पर तटबंध टूट गए. 9.5 लाख क्यूसेक के लिए डिज़ाइन किए गए तटबंध अब तलछट के जमाव के कारण भर गए हैं, जिससे लगभग 380 गांव और लगभग 1.5 मिलियन लोग तटबंध क्षेत्र में फंस गए. बिहार में बाढ़ से हमेशा जान-माल का बहुत ज्यादा नुकसान नहीं होता, लेकिन आर्थिक नुकसान बहुत ज्यादा होता है. फसलों, पशु और बुनियादी ढांचे को काफी नुकसान होता है. इससे आर्थिक चुनौतियों और बढ़ा जाता है. सरकार बाढ़ राहत और प्रबंधन पर सालाना लगभग 1,000 करोड़ रुपये खर्च करती है. दशकों से कोसी पर बांध बनाने के प्रस्ताव पर चर्चा होती रही है. लेकिन नेपाल इसमें अड़ंगा लगाता रहा है.
इतना था इस साल का बजट
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इसी साल 23 जुलाई 2024 को केंद्रीय बजट में बिहार को 58,900 करोड़ रुपये मंजूर करने की घोषणा की. इसमें सड़क परियोजनाओं के लिए 26,000 करोड़ रुपये, पीरपैंती में 21,400 करोड़ रुपये की लागत से 2,400 मेगावाट का बिजली संयंत्र और बाढ़ से निपटने के लिए 11,500 करोड़ रुपये शामिल हैं. केंद्र सरकार द्वारा राज्य को विशेष श्रेणी का दर्जा (एससीएस) देने से इनकार कर दिया था.