कुंभ में नहाने पर कमाई का 10 फीसदी से ज्यादा टैक्स! अंग्रेजों के लिए हिंदू बन गए थे ‘कैश काउ’
कुंभ जहां आम भारतीयों के लिए आस्था का सबसे बड़ा और भव्य आयोजन होता है. वहीं, सरकारों और कारोबारियों के लिए यह कमाई का बड़ा मौका होता है. अब भले ही ब्रिटिशकाल की तरह धार्मिक क्रियाकलापों के लिए कर नहीं देना पड़ता है. लेकिन, अंग्रेजों के लिए कुंभ "कैश काउ" की तरह था, इस आयोजन से ब्रिटिशर्स को मोटी आमदनी होती थी. जानिए इतिहास के पन्नों में इसके लिए क्या कहा गया है?
प्रयागराज में चल रहे महाकुंभ आयोजन के बंदोबस्त पर उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से करीब 6,800 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है. 45 दिन के इस आयोजन के दौरान देशभर के 50-60 करोड़ लोग प्रयागराज पहुंचेंगे. इससे करीब 2 लाख करोड़ रुपये का रेवेन्यू जेनरेट होगा. जहां, तक यूपी सरकार की बात की है तो 6,800 करोड़ रुपये के खर्च के बदले राजस्व के रूप में करीब 25 हजार करोड़ रुपये प्राप्त होने का अनुमान है.
बहरहाल, जब हम इस खर्च और आमदनी की बात कर रहे हैं, तो इसमें किसी व्यक्ति से कुंभ में नहाने के लिए किसी तरह का कोई टैक्स नहीं लिया जा रहा है. लोग अपनी मर्जी से यहां आते हैं, ट्रेन, बस, फ्लाइट के किराये, खाने-पीने, रहने पर खर्च करते हैं. लेकिन, जब देश पर ब्रिटिश हुकूमत थी, तब इन सभी खर्चों के साथ-साथ लोगों को कुंभ नहाने के लिए अलग से टैक्स देना पड़ता था. यह टैक्स भी कोई मामूली नहीं था. बल्कि, पूरे 1 रुपये का टैक्स लगता था. आज 1 रुपये की यह रकम मामूली लग सकती है. लेकिन, 18-19वीं सदी में यह मासिक कमाई का बड़ा हिस्सा होता था. कई लोगों के लिए तो यह मासिक आय के 30-40 फीसदी जितना होता था.
अंग्रेजों के लिए “कैश काउ”
मौखिक रूप से तो पीढ़ी-दर-पीढ़ी ये बातें और कहानियां तो सबने सुनी हैं कि कैसे अंग्रेजों और विदेशी आक्रांताओं के दौर में हिंदुओं को अपने धार्मिक रीति-रिवाजों और पवित्र स्थलों की तीर्थ यात्रा करने पर टैक्स चुकाना पड़ता था. इतिहास के पन्नों में जब झांकते हैं, तो तमाम लिखित दस्तावेज, किताबें और यात्रा वृतांत भी इन कहानियों की तस्दीक करते हैं. कुंभ नहाने पर 1 रुपये टैक्स की कहानी की सत्यता की पुष्टि एक ब्रिटिश महिला यात्री के यात्रा वृतांत में मिलती है.
कुंभ नहाने पर 1 रुपये का टैक्स
मौजूदा यूनाइडेट किंगडम (UK) के नॉर्थ वेल्स में कॉन्वे में 8 दिसंबर, 1794 को जन्मीं फैनी पार्क्स 1822 से 1846 के दौरान करीब 2 दशक तक भारत में रहीं. इस दौरान उन्होंने भारत के तमाम तीर्थस्थलों की यात्रा की और यात्रा वृतांत में उस दौर को अपनी लेखनी से जीवंत बनाया. उनके संस्मरण वंडरिंग्स ऑफ ए पिलग्रिम इन सर्च ऑफ द पिक्चर्स में दर्ज हैं. यह किताब पहली बार 1850 में “Wanderings of a Pilgrim in Search of the Picturesque” के तौर पर Pelham Richardson ने प्रकाशित की थी. इस किताब में ही कुंभ में आने वाले तीर्थ यात्रियों पर टैक्स का उल्लेख किया गया है.
बेगम, ठग्स एंड व्हाहट मुगल
फैनी पार्क्स के संस्मरणों पर आधारित “वंडरिंग्स ऑफ ए पिलग्रिम इन सर्च ऑफ द पिक्चर्स” किताब के कुछ चुनिंदा हिस्सों को मशहूर इतिहासकार विलियम डेलरिम्पल ने चुना और 2002 में इन्हें “बेगम, ठग्स एंड व्हाइट मुगल्स” फिर से प्रकाशित किया गया. इसी किताब के चैप्टर द ग्रेट फेयर एट इलाहबाद-1833 में बताया गया है कि ईस्ट इंडिया कंपनी कुंभ स्नान के लिए आने वाले प्रत्येक श्रद्धालु से 1 रुपये का टैक्स वसूलती थी. उन्होंने बताया कि यह टैक्स सभी लोगों को चुकाना होता था, भले ही कोई कितना ही अमीर हो या गरीब हो.
10 रुपये से कम थी मासिक आय
फैनी के संस्मरणों पर आधारित किताब “बेगम, ठग्स एंड व्हाइट मुगल्स” के एक और चैप्टर ‘द रिटर्न टू इलाहबाद-1832’ में बताया है कि उस दौर में आम भारतीयों को उनके काम के लिए मासिक रूप से औसतन कितनी रकम मिलती थी. इसमें वे इलाहबाद में अपने प्रवास और घर में मौजूद नौकरों को मिलने वाली रकम का उल्लेख करती हैं.
बावर्ची और आया की सबसे ज्यादा सैलरी
फैनी की तरफ से उस दौर के एक आम ब्रिटिश अधिकारी या ब्रिटिशर की भारत में लाइफस्टाइल और खर्चों का ब्यौरा देते हुए बताया गया है कि अमूमन 50-60 लोग उनके लिए काम करते थे. इनमें से सबसे ज्यादा मासिक वेतन आया और बावर्ची या खानसामे का होता था. बावर्ची को 12 रुपये तक का वेतन मिलता था. वहीं, आया को 10 रुपये वेतन मिलता था.
औसत वेतन 5 रुपये के करीब
फैनी के संस्मरण में कुल 57 अलग-अलग तरह के काम करने वाले लोगों के मासिक वेतन का उल्लेख है. इन सभी पर कुल मिलाकर फैनी ने 290 रुपये खर्च होने का जिक्र किया. इस तरह इन लोगों को औसत 5.08 रुपये का औसत वेतन मिलता था. फैनी के संस्मरण के मुताबिक दिलचस्प बात यह थी उस दौर में ब्रिटिश पाउंड और रुपये की कीमत बराबर हुआ करती थी.
कुंभ में सरकारी नाई
ब्रिटिशकाल में कुंभ के दौरान नहाने आने वाले तीर्थ यात्रियों से 1 रुपये का टैक्स तो लिया ही जाता था. रीजनल रेवेन्यू अर्काइव से पता चलता है कि 1870 और 1882 में प्रयागराज में हुए कुंभ के दौरान ब्रिटिश सरकार ने नाई नियुक्त किए और उनसे टैक्स लिया. हिंंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक ब्रिटिश हुकूमत ने 1870 के कुंभ में श्रद्धालुओं के लिए 3,000 नाई बाड़ों की व्यवस्था की थी. इसके बाद 1882 के 2,688 बाड़ों की व्यवस्था की गई थी.
नाइयों को हुई मोटी कमाई
1870 में सरकार को टैक्स से कुल 41,824 रुपये की आय हुई. वहीं, 25 फीसदी कर नाईयों से प्राप्त हुआ. 1882 के कुंभ में सरकार को कुंभ से कुल 49,840 का राजस्व मिला, इसमें से 10,752 नाइयों से जुटाए गए कर के रूप में मिले थे. इसके अलावा, मेले में व्यापार करने के लिए प्रत्येक नाई को 4 रुपये की फिक्स फीस अलग से देनी पड़ी थी.