CAG के पास कितनी ताकत जिससे दहल जाती हैं सरकारें, ऐसे बनती है पूरी रिपोर्ट

दिल्ली विधानसभा में CAG की रिपोर्ट पेश होने के बाद हंगामा खड़ा हो गया है.इससे पहले केजरीवाल ने खुद CAG की रिपोर्ट का सहारा लेकर पूर्व सीएम शीला दीक्षित को जेल भेजने की मांग की थी. मनमोहन सिंह सरकार भी CAG रिपोर्ट से दहल गई थी. ये रिपोर्ट कैसे बनती है, किन विषय पर ऑडिट होगा ये कैसे तय होता है...

CAG के पास कितनी ताकत होती है? Image Credit: PTI

CAG: दिल्ली विधानसभा में CAG की रिपोर्ट पेश हो गई है. दिल्ली में चुनाव से पहले ही बीजेपी ने CAG की रिपोर्ट को बड़ा मुद्दा बनाया था. और उसने चुनावों में वादा किया था, कि राज्य में सरकार बनते ही, वह कैग की रिपोर्ट पेश करेगी. असल में दिल्ली में अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली सरकार ने कैग रिपोर्ट पेश नहीं की थी. अब कैग रिपोर्ट पेश कर दी गई है. सवाल उठता है कि केजरीवाल सरकार कैग रिपोर्ट क्यों नहीं पेश कर रही थी, उसे क्या डर था. और कैग ऐसा क्या करती है, जिससे सरकारों को कोई बार नुकसान उठाना पड़ता है. तो आइए जानते हैं कि असल में कैग क्या है. और उसके पास क्या शक्तियां होती हैं, कैसे तय होता है कि किस विषय पर ऑडिट होगा, CAG की रिपोर्ट को जारी करने में सरकार इतनी देरी क्यों कर देती है, रिपोर्ट को पेश करने को लेकर क्या कोई नियम हैं और क्या सरकारों को पहले भी दहला चुकी है CAG की रिपोर्ट?

CAG के पास कितनी ताकत?

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 148 से 151 तक CAG (कंप्ट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल ऑफ इंडिया) की नियुक्ति, कर्तव्यों और ऑडिट से संबंधित प्रावधान दिए गए हैं. CAG की नियुक्ति राष्ट्रपति करते हैं.

CAG की शक्तियां और 1971 के “CAG (कर्तव्य, शक्तियां और सेवा की शर्तें) अधिनियम” के तहत निर्धारित होती हैं. इसकी रिपोर्ट संसद के दोनों सदनों में पेश की जाती है. इसके अलावा राज्य सरकारों के लेखा-जोखा को लेकर भी कैग रिपोर्ट विधानसभा में रखी जाती है.

CAG का प्रमुख काम केंद्र और राज्य सरकारों के खातों का ऑडिट करना है. इसके अलावा:

  1. CAG राज्य सरकारों के अकाउंट को मेंटेन करता है.
  2. सरकारी कर्मचारियों की पेंशन की स्वीकृति देता है.
  3. कर्मचारियों के सामान्य भविष्य निधि (GPF) खातों को मैनेज करता है.

CAG कौन-कौन से ऑडिट करता है?

CAG तीन प्रकार के ऑडिट करता है:

  1. कंप्लायंस ऑडिट: CAG यह जांच करता है कि सरकार ने जो कानून, निर्देश और आदेश दिए हैं उनका पालन हो रहा है या नहीं.
  2. प्रदर्शन ऑडिट: यह सरकारी योजनाओं और प्रोग्राम का ऑडिट करता है.
  3. वित्तीय ऑडिट: यह सरकारी खातों और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (PSUs) के खातों का ऑडिट करता है.

CAG ऑडिट के लिए विषय कैसे चुनता है?

CAG किसी विषय का ऑडिट करने से पहले कुछ फैक्टर्स देखता है:

  • किसी प्रोजेक्ट की कुल लागत कितनी है.
  • उस मुद्दे को लेकर मीडिया में क्या चर्चा हो रही है.
  • पहले के निरीक्षण रिपोर्ट में क्या पाया गया था.
  • अंतर्राष्ट्रीय ऑडिट संस्थानों (INTOSAI) की दिशानिर्देशों का पालन भी किया जाता है.

इसके आधार पर, CAG हर साल एक एनुअल ऑडिट प्लान बनाता है और इसे फील्ड ऑफिस में लागू करता है. इसके अलावा, ऑडिट एडवाइजरी बोर्ड भी साल में दो बार बैठक करता है और ऑडिट के लिए विषयों और तरीकों पर सुझाव देता है. सरकार या अदालतें भी CAG से किसी विशेष मामले की जांच करवाने को कह सकती हैं. उदाहरण के लिए, सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली-नोएडा डायरेक्ट (DND) फ्लाईओवर प्रोजेक्ट का ऑडिट करने के लिए CAG को निर्देश दिया था.

सरकार देरी से पेश करती है CAG की रिपोर्ट, क्या कहता है कानून?

संविधान के अनुच्छेद 151 के अनुसार, CAG की रिपोर्ट को संसद या राज्य विधानसभा में रखा जाना चाहिए, लेकिन कोई समय सीमा तय नहीं की गई है. इसलिए, कई बार सरकारें इन रिपोर्टों को समय पर पेश नहीं करती. उदाहरण के लिए, दिल्ली सरकार ने कई CAG रिपोर्ट्स चार साल से LG को सौंपने के बावजूद विधानसभा में पेश नहीं की हैं.

CAG रिपोर्ट सार्वजनिक तभी होती है जब इसे सदन में रखा जाता है. लोक लेखा समिति (PAC) इन रिपोर्टों की जांच करती है और सरकार से जवाब मांगती है. PAC सरकार को सुझावों को लागू करने के लिए कहती है और “एक्शन टेकन रिपोर्ट” प्रस्तुत करने को कहती है. 2019 से लेकर जुलाई 2023 तक PAC ने लोकसभा में 152 रिपोर्टें पेश की हैं.

सरकार की कुर्सी हिला चुकी है CAG की रिपोर्ट

CAG की कुछ रिपोर्ट्स राजनीतिक रूप से भी बहुत प्रभावशाली रही हैं. इसकी रिपोर्ट से केंद्र हो या राज्य दोनों सरकारें दहल जाती है. 2010 में CAG की 2G स्पेक्ट्रम आवंटन पर रिपोर्ट हो या कोयला घोटाला हो. उस समय सीएजी की कई रिपोर्ट से मनमोहन सिंह सरकार की छवि को इतना गहरा नुकसान पहुंचा था कि 2014 में यूपीए सरकार सत्ता से बाहर हो गई थी.ग

दरअसल कोयला घोटाले पर अगस्त 2012 में CAG की एक और रिपोर्ट संसद में पेश हुई थी, जिसमें कहा गया था कि कोयला ब्लॉकों का आवंटन मनमाने ढंग से हुआ, जिससे 1.86 लाख करोड़ रुपये का संभावित नुकसान हुआ. सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में 204 कोयला ब्लॉकों का आवंटन रद्द कर दिया और बोली प्रक्रिया को अनिवार्य किया. पूर्व पीएम मनमोहन सिंह पर इसे लेकर सीधा हमला हुआ था.

इसके अलावा दिल्ली का ही मामला लें तो 2014-15 में अरविंद केजरीवाल खुद CAG रिपोर्ट के आधार पर पूर्व सीएम शीला दीक्षित को घेरते थे. सत्ता में आने के तुरंत बाद केजरीवाल ने शीला दिक्षित को भ्रष्टाचार के मामले में जेल भेजने की मांग की थी.

अगस्त 2011 में CAG रिपोर्ट में 2010 दिल्ली कॉमनवेल्थ गेम्स को लेकर गड़बड़ियां सामने आई थीं. रिपोर्ट में आयोजन समिति पर अनुचित खर्च, ठेकों में पक्षपात और गुणवत्ता से समझौता करने के आरोप लगे थे. तब दिल्ली की सीएम शीला दीक्षित थी जिनपर सीधा सवाल उठने लगे. आयोजन समिति के अध्यक्ष सुरेश कलमाड़ी पर भी सवाल उठे, और उनकी गिरफ्तारी तक हुई. ऐसा कहा जा सकता है कि इसका सीधा फायदा आम आदमी पार्टी को मिला जो फिर सत्ता में आई. लेकिन आज उसी कैग की रिपोर्ट पर केजरीवाल खुद घिरे हुए हैं.