कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने सेबी चीफ माधबी पुरी बुच पर फिर बोला हमला, लगाए ये आरोप

कांग्रेस प्रवक्‍ता पवन खेड़ा ने एक बार फिर सेबी चीफ को निशाना बनाया है. उन्‍होंने आरोप लगाया कि सेबी चीफ ने अपने पद का दुरुपयोग किया है, उनके कई कंपनियों से ताल्‍लुक रहे हैं, जो नियमों के खिलाफ है.

कांग्रेस नेता पवन खेड़ा का सेबी चीफ पर आरोप Image Credit: PTI

कांग्रेस प्रवक्‍ता पवन खेड़ा ने सेबी चीफ माधबी पुरी बुच पर एक बार फिर हमला बोला है. 10 सितंबर, 2024 यानी मंगलवार को एक प्रेस कॉन्‍फ्रेंस में कांग्रेस नेता ने बुच पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि बुच ने महिंद्रा एंड महिंद्रा, डॉ. रेड्डीज और तीन अन्य लिस्‍टेड कंपनियों से करोड़ों रुपए कमाए हैं. इतना ही नहीं उन्‍होंने अपने पति धवल बुच की कंपनी की जानकारी भी सबसे छुपाई है. खेड़ा ने कहा कि बुच ने दावा किया था कि जब वह सेबी में शामिल हुई थी तब गोरा प्राइवेट लिमिटेड डॉरमेट यानी निष्क्रिय हो गई थी, मगर उनका ये दावा झूठा है. अगोरा एडवाइजरी प्राइवेट लिमिटेड का मालिकाना हक धवल बुच के पास है.

कांग्रेस नेता ने कहा कि अगोरा प्राइवेट लिमिटेड ने 2016-2024 के बीच सेवाएं देना और 2.95 करोड़ रुपए का राजस्व अर्जित करना जारी रखा है, ऐसे में बुच का दावा गलत साबित होता है. कांग्रेस नेता ने यह भी आरोप लगाए कि अगोरा के ग्राहकों में महिंद्रा एंड महिंद्रा लिमिटेड, डॉ. रेड्डीज, पिडिलाइट, आईसीआईसीआई, सेम्बकॉर्प, विसू लीजिंग एंड फाइनेंस शामिल हैं. ऐसे में उनसे प्राप्त कोई भी आय हितों के खिलाफ है. यह सेबी की संहिता की धारा 5 का उल्लंघन करती है. पवन खेड़ा ने अगोरा को मिली कुल रकम में एक विशेष कंपनी से मिली सबसे ज्‍यादा हिस्‍सेदारी पर भी सवाल उठाए. उन्‍होंने कहा कि कंपनी को कुल 2.95 करोड़ रुपए मिले, जिनमें से 2.59 करोड़ रुपए महज महिंद्रा एंड महिंद्रा समूह से मिले हैं. यह अगोरा एडवाइजरी को प्राप्त कुल धनराशि का 88 प्रतिशत है.

ICICI बैंक मामले पर भी उठाए थे सवाल

पवन खेड़ा ने माधबी पुरी बुच पर पहले भी अनियमितता का आरोप लगाया था. उनका कहना है कि ICICI बैंक लिमिटेड और ICICI सिक्योरिटीज के बीच विलय में उनकी भूमिका संदिग्‍ध रही है. बुच, सेबी की सदस्य रहते हुए भी आईसीआईसीआई बैंक से वेतन लेती रहीं, जो उनके अनुसार सार्वजनिक सेवा में नैतिकता और जवाबदेही का गंभीर उल्लंघन है. कांग्रेस नेता ने कहा था कि माधबी पुरी बुच की नियुक्ति सरकार के अधीन हुई है ऐसे में उन्‍हें कैसे नहीं पता कि बुच 2014 से 2017 के बीच आईसीआईसीआई बैंक से 16 करोड़ 80 लाख रुपए की नियमित सैलरी ले रही थीं. यह नियामक की भूमिकाओं में हितों के खिलाफ है.