अब मेड इन इंडिया होगी पैरासिटामॉल, ये कंपनी बनाएगी दवा, मिलेगी सस्ती

भारत दवा समेत कई क्षेत्रों में जल्द बनेगा आत्मनिर्भर. काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च(CSIR) की पहली महिला डायरेक्टर डॉ. एन. कलईसेल्वी ने बताया कि भारत पहले पैरासिटामोल दवा के लिए यूरोपिय देशों पर निर्भर था, लेकिन आने वाले समय में भारत खुद का पैरासिटामोल दवा बनेएगा जो पहले से ज्यादा सस्ती और इफेक्टिव होगी.

अब मेड इन इंडिया होगी पैरासिटामोल Image Credit: tv9

भारत अब अपनी खुद की पैरासिटामॉल दवा बनाएगा. फिलहाल, जो पैरासिटामॉल भारत में बिकता है वह मेड इन इंडिया नहीं है. लेकिन किन अब जल्द ही भारत खुद ही इस दवा का निर्माण करेगा.काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च (CSIR) की पहली महिला डायरेक्टर डॉ. एन. कलईसेल्वी ने द न्यू इंडियन एक्सप्रेस को दिए एक इंटरव्यू में बताया है कि पहले पैरासिटामॉल के लिए भारत को यूरोपी देशों पर निर्भर रहना पड़ता था, लेकिन अब भारत अपना खुद का सस्ता और असरदार पैरासिटामॉल बनाएगा.

डॉ. कलईसेल्वी ने बताया कि CSIR ने पैरासिटामॉल के उत्पादन के लिए एक नई तकनीक विकसित की है, जिसे कर्नाटक की कंपनी सत्या दीप्ति फार्मास्युटिकल्स लिमिटेड को हस्तांतरित किया जाएगा. जो भारत को न केवल पैरासिटामॉल, बल्कि कई दूसरी दवाओं के उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाएगी. भारत अभी पैरासिटामॉल के कई इंग्रेडिएंट के लिए यूरोपीय देशों पर निर्भर था, जिन्हें आयात करना पड़ता था. लेकिन इस नई पहल के चलते भारत न केवल आत्मनिर्भर बनेगा, बल्कि दवाओं के क्षेत्र में वैश्विक प्रतिस्पर्धा में भी मजबूत भूमिका निभाएगा.

नई तकनीक की दिशा में कदम

डॉ. कलईसेल्वी ने बताया कि भारत ने पिछले तीन-चार वर्षों में आत्मनिर्भरता के कई अन्य क्षेत्रों में भी इनोवेशन किया है. इनमें पैरासिटामोल के साथ-साथ हाइड्रोजन सिलेंडर (टाइप-4 हाईड्रोजन ईंधन सेल), हंसा-3 (एक उन्नत विमान) और स्टील के कबाड़ से सड़क निर्माण शामिल हैं. उन्होंने यह भी बताया कि CSIR ने हाइड्रैजीन हाइड्रेट (HH) के उत्पादन के लिए एक स्वदेशी तकनीक विकसित की है. यह एक रसायन है जिसका उपयोग कृषि रसायन, फार्मास्यूटिकल्स, ऑटोमोटिव, खनन में होता है. पहले यह पूरी तरह से आयात पर निर्भर था, लेकिन अब इसके उत्पादन से आयात में 60% तक की कमी आई है.

पर्यावरण के अनुकूल होगा विकास

स्टील स्लग के निपटारे के लिए भी भारत ने नई तकनीकों का विकास किया है. स्टील स्लग का उचित प्रबंधन पर्यावरण के लिए जरुरी है. इस तकनीक का उपयोग सूरत-वडोदरा और मुंबई-गोवा हाईवे जैसे सड़क निर्माण परियोजनाओं में किया जाएगा. डॉ. कलईसेल्वी ने बताया कि भारत की प्राथमिकता अब उद्योगों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए स्वदेशी तकनीकों का विकास करना है. CSIR ने आठ प्रमुख क्षेत्रों की पहचान की है, जिनमें आत्मनिर्भर बनना है.