2011-12 की जगह 2022-23 होगा GDP बेस ईयर, क्या है इस बदलाव का मतलब?

जीडीपी गणना के लिए केंद्र सरकार बेस ईयर बदलने जा रही है. यह बदलाव फरवरी 2026 से लागू होगा. फिलहाल, जीडीपी गणना के लिए 2011-12 का बेस ईयर माना जाता है. 2026 से जीडीपी गणना 2022-23 के आधार पर की जाएगी. समझते हैं इस बदलाव का क्या मतलब है और इससे क्या असर पड़ेगा?

भारत की जीडीपी Image Credit: GettyImages

2022-23 को जीडीपी गणना के लिए नया आधार वर्ष बनाए जाने की तैयारी हो रही है. फरवरी 2026 के बाद जीडीपी की गणना 2011-12 की जगह 2022-23 के आधार पर की जाएगी. यह समय-समय पर होनो वाला बदलाव है. आखिरी बार सरकार ने एक दशक से भी पहले 2011-12 में यह बदलाव किया था.

फरवरी 2026 से नए बेस ईयर के आधार पर जीडीपी गणना के बदलाव को लागू करने के लिए एक समिति बनाई गई है. इसके अलावा डेटा-ड्रिवन फैसलों को बढ़ाने के लिए जनवरी 2025 से नए मंथली लेबर फोर्स एस्टिमेट्स जारी किए जाएंगे.

क्यों किया जा रहा यह बदलाव

सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की गणना के लिए बेस ईयर को 2011-12 से 2022-23 किए जाने के पीछे केंद्र सरकार का तर्क है कि इससे देश की आर्थिक संरचना का ज्यादा सटीक रिप्रेजेंटेशन हो पाएगा. केंद्र सरकार का कहना है कि फिलहाल जीडीपी गणना 2011-12 के आधार पर होती है, जबकि उस समय से अब तक देश की अर्थव्यवस्था के आकार और ढांचे में काफी बदलाव आ चुका है.

क्या काम करेगी समिति

सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार), राव इंद्रजीत सिंह ने राज्य सभा में बताया कि राष्ट्रीय लेखा सांख्यिकी (ACNAS) से जुड़े इस बदलाव को लागू करने के लिए एक निगरानी समित बनाई गई है. बिस्वनाथ गोल्डर की अध्यक्षता में पर 26 सदस्यीय सलाहकार समिति नए डाटा स्रोतों की पहचान करेगी. इसके साथ ही ACNAS की कार्यप्रणाली को भी सुधारने के तरीके खोजेगी. समिति में केंद्र और राज्य सरकारों के साथ ही रिजर्व बैंक, शिक्षाविदों और शोधकर्ताओं को शामिल किया गया है.

बेस ईयर बदलने की जरूरत क्यों

जीडीपी बेस ईयर में बदलाव किसी भी अर्थव्यवस्था में होने वाला एक नियमित अपडेट है. इससे अर्थव्यवस्था के संरचनात्मक बदलावों को सटीक तरीके से व्यक्त करने में आसानी होती है. खासतौर पर उपभोग के पैटर्न में हुए बदलाव, क्षेत्रीय योगदान और उभरते क्षेत्रों को इसमें शामिल किया जाता है. 2022-23 को जीडीपी गणना के लिए बेस ईयर बनाए जाने से जो अपडेटेड डाटा आएगा वह मौजूदा आर्थिक वास्तविकताओं के साथ ज्यादा तालमेल खाएगा.