EV बनाने वाली नामी कंपनियों पर छापा, सरकार को 297 करोड़ का चूना लगाया

केंद्र सरकार के गंभीर धोखाधड़ी जांच कार्यालय ( एसएफआईओ ) ने इलेक्ट्रिक व्हीकल बनाने वाली तीन कंपनियों के खिलाफ छापेमारी की है. इन कपंनियों पर आरोप है कि इन्होंने फ्रॉड के जरिये फेम 2 सब्सिडी हासिल कर सरकार को 297 करोड़ रुपये का चूना लगाया है.

यह कॉर्पोरेट फ्रॉड का मामला है. अगर कंपनियेां दोषी पाई गईं, तो पूरी रकम वसूली जा सकती है. Image Credit: Stockbyte/Getty Images

इलेक्ट्रिक व्हीकल (EV) बनाने वाली तीन कंपनियों के खिलाफ केंद्र सरकार ने कड़ी कार्रवाई की है. इन कंपनियों पर फास्टर अडाॅप्शन एंड मन्युफैक्चरिंग ऑफ इलेक्ट्रिक व्हीकल ( फेम ) 2 योजना के तहत दी जाने वाली सब्सिडी में घपला करने का आरोप है. कॉर्पोरेट कार्य मंत्रालय के सीरियस फ्रॉड इन्वेस्टिगेशन ऑफिस (SFIO) ने इस मामले में इन कंपनियों के परिसरों पर छापेमारी की है.

ये कंपनियां हैं शामिल

फेम 2 सब्सिडी घपलेबाजी में हीरो इलेक्ट्रिक व्हीकल्स प्राइवेट लिमिटेड, बेनलिंग इंडिया एनर्जी एंड टेक्नोलॉजी प्राइवेट लिमिटेड और ओकिनावा ऑटोटेक इंटरनेशनल प्राइवेट लिमिटेड शामिल हैं. इन कंपनियों पर आरोप है कि इन्होंने फेम 2 के तहत फ्रॉड करते हुए 297 करोड़ रुपये की सब्सिडी हासिल की है. इसी मामले में इनके ठिकानों पर तलाशी अभियान चलाया गया है.

सरकार ने क्या कहा

कॉर्पोरेट कार्य मंत्रालय ने सोमवार को इस संबंध में एक वक्तव्य जारी कर कहा, भारत सरकार के भारी उद्योग मंत्रालय (MHI) की फास्टर अडाॅप्शन एंड मन्युफैक्चरिंग ऑफ इलेक्ट्रिक व्हीकल ( फेम ) 2 योजना के तहत तीनों कंपनियों ने धोखाधड़ी से कुल मिलाकर 297 करोड़ रुपये की सब्सिडी का लाभ उठाया है.

कंपनियेां ने क्या घपला किया

भारत में इलेक्ट्रिक और हाइब्रिड वाहनों को बढ़ावा देने के लिए 2019 में फेम 2 योजना शुरू की गई थी। फेम-2 योजना और इसके चरणबद्ध विनिर्माण कार्यक्रम ( पीमपी ) के तहत तहत सब्सिडी का पात्र होने के लिए वाहन के कुछ प्रमुख घटकों का भारत में निर्माण किया जाना जरूरी है. सब्सिडी का दावा करने के लिए तीनों कंपनियों ने एमएचआई इस तरह के निर्माण का झूठा दावा करते हुए सब्सिडी का लाभ लिया.

जांच में क्या सामने आया

कॉर्पोरेट मंत्रालय के अधीन काम करने वाले एसएफआईओ ने जब इस मामले की जांच की, तो पता चला कि इन कंपनियों ने पीएमपी से जुड़े दिशानिर्देशों का उल्लंघन किया है. कंपनियों ने दावा किया कि उनके वाहनों में इस्तेमाल किए गए कलपुर्जे भारत में बने हैं. जबकि, इस नीति के तहत कई प्रतिबंधित कलपुर्जों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से चीन से आयात किया गया. जांच के दौरान डिजिटल डाटा, खाते की किताबें और कई तरह के सबूत मिले हैं.