689 अरब डॉलर के साथ फिर सर्वोच्च स्तर पर विदेशी मुद्रा भंडार, जानें रिजर्व बैंक कैसे कर रहा यह चमत्कार!
आमतौर पर जब किसी देश का देशी मुद्रा भंडार बढ़ता है, तो खासतौर पर डॉलर की तुलना में उस देश की मुद्रा मजबूत होने लगती है. लेकिन, दिलचस्प रूप से डॉलर की तुलना में रुपये का मूल्य पिछले 1 वर्ष में 82 से 84 रुपये के बीच में बना हुआ है. अब सवाल यह उठता कि पूरी तरह से किताबी अंदाज में रिजर्व बैंक इस संतुलन को कैसे बनाए हुए है. खासतौर पर जब मुद्रा के मूल्य के साथ छेड़छाड़ को लेकर आईएमएफ बेहद सख्त है.
भारत का विदेशी मुद्रा भंडार पिछले 5 सप्ताह से लगातार बढ़ते हुए 700 अरब डॉलर के स्तर को छूने की तरफ बढ़ रहा है. शुक्रवार को रिजर्व बैंक की तरफ से जारी आंकड़ों के मुताबिक 13 सितंबर को खत्म हुए सप्ताह में देश का विदेशी मुद्रा भंडार बढ़कर 689.46 अरब डॉलर के सर्वकालिक सर्वोच्च स्तर पर पहुंच गया है. 6 सितंबर से 13 सितंबर के दौरान भारत का विदेशी मुद्रा भंडार करीब 22 करोड़ डॉलर बढ़ा है. इससे पहले के 4 सप्ताह के दौरान यह 19.1 अरब डॉलर बढ़ चुका है. विदेशी मुद्रा भंडार में डॉलर, यूरो, पाउंड और येन जैसी विदेशी मुद्राएं शामिल होती हैं. फिलहाल भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में 603.63 अरब डॉलर का हिस्सा इन विदेशी मुद्राओं का है. इसके अलावा 62.89 अरब डॉलर का स्वर्ण भंडार है. 18.42 अरब डॉलर एसडीआर और 4.52 अरब डॉलर आईएमएफ रिजर्व के तौर पर मौजूद हैं.
सामान्य रूप से जब मुद्रा भंडार बढ़ता है, तो डॉलर की तुलना में रुपया मजबूत होना चाहिए. लेकिन पिछले एक वर्ष में 1 डॉलर की तुलना में 82 से 84 के स्तर पर बना हुआ है. विशेषज्ञों का कहना है कि रिजर्व बैंक किताबी अंदाज में इस मामले को संभाल रहा है. मसलन, रुपये की कीमत को ज्यादा घटने और बढ़ने से रोकते हुए विदेशी मुद्रा भंडार को बढ़ाया जा रहा है. रिजर्व बैंक के लिए यह संतुलन बनाए रखना बेहद चुनौतिपूर्ण है, क्योंकि मुद्रा के मूल्य के साथ छेड़छाड़ को लेकर आईएमएफ बेहद सख्त है. पिछले दिनों में चीन के खिलाफ मुद्रा के मूल्य से छेड़छाड़ के आरोप लगे थे. चीन ने अपना व्यापार घाटा ज्यादा दिखाने के लिए अपनी मुद्रा युआन का अवमूल्यन कर दिया, ताकि डब्ल्यूटीओ के नियमों के मुताबिक टैरिफ नियमों का फायदा उठाया जा सके.
रिजर्व बैंक कैसे बढ़ा रहा भंडार
अंतरराष्ट्रीय नियमों के तहत मुद्रा के मूल्य में हेरफेर करने पर आईएमएफ, वर्ल्ड बैंक और डब्ल्यूटीओ जैसे संगठनों के साथ ही तमाम देशों की तरफ से आर्थिक और व्यापारिक प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं. हालांकि, किसी भी देश के केंद्रीय बैंक अपने देश की मुद्रा के अत्यधिक अवमूल्यन या अधिमूल्यन होने से रोकने के लिए हस्तक्षेप का अधिकार होता है. फिलहाल, रिजर्व बैंक इसी दायरे में रहकर विदेशी मुद्रा भंडार को बढ़ाते हुए रुपये की स्थिरता को बनाए रखने के लिए मुद्रा बाजार में हस्तक्षेप कर रहा है.
पीएम मोदी के हनुमान बने शक्तिकांत दास
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश के निर्यात को बढ़ाना चाहते हैं. इसके लिए यह जरूरी है कि भारती मुद्रा डॉलर की तुलना मे कमजोर बनी रहे. लेकिन, देश की ऊर्जा और रक्षा संबंधी चिंताओं को ध्यान में रखते हुए यह भी जरूरी है कि विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ाया जाए. रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास मौद्रिक नीति और मुद्रा बाजार के छोर पर पीएम मोदी के लिए हनुमान की तरह साबित हुए हैं. शक्तिकांत दास के कार्यकाल में विदेशी मुद्रा 700 अरब डॉलर के करीब पहुंच गया है. इसके अलावा, देश का निर्यात पर सर्वकालिक उच्च स्तर पर है.
रिजर्व बैंक की रणनीति से विशेषज्ञ सहमत
दुनिया में फिलहाल दो युद्ध चल रहे हैं. ऊर्जा से लेकर मुद्रा के प्रवाह तक में भारी बदलाव हुए हैं. लेकिन, कभी एशिया की सबसे अस्थिर मुद्राओं में शामिल भारतीय रुपया लगातार एक दायरे में स्थिर बना हुआ है. शक्तिकांत दास विदेशी मुद्रा भंडार को अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर ढाल बताते हुए कहते हैं, यह जितना मजबूत होगा, देश के पास किसी भी आर्थिक चुनौती से निपटने की उतनी ही ज्यादा क्षमता होगी. दास की रणनीति पर सहमति जताते हुए आर. गांधी कहते हैं कि अगर इस तरह के उपाय नहीं किए जाएं, तो मुद्रा अचानक दबाव में आ सकती है. 2014 से 2017 के बीच आरबीआई के डिप्टी गवर्नर रहे गांधी कहते हैं, अस्थिरता से लड़ने, आर्थिक बुनियाद को मजबूत करने और आयात कवर में सुधार करने के लिए विदेशी मुद्रा भंडार को जितना हो बढ़ाया जाना चाहिए.