अलविदा रतन टाटा! आसान नहीं थी जिंदगी, 10 साल की उम्र में देखा माता-पिता का तलाक, चूना पत्थर हटाने का काम किया, रुला देगी यह कहानी

रतन टाटा ने 86 साल की उम्र में मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में अंतिम सांस ली. एक प्रमुख व्यवसायी और परोपकारी व्यक्ति के रूप में भारत में उन्हें हमेशा याद किया जाएगा. बचपन की चुनौतियों को पीछे छोड़ते हुए, रतन टाटा ने टाटा को पूरी दुनिया में पहचान दिलाई. 140 करोड़ देशवासियों में शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा जिसने अपनी जिंदगी में टाटा के किसी प्रोडक्ट का इस्तेमाल न किया हो.

रतन टाटा ने 86 साल की उम्र में मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में अंतिम सांस ली.P Image Credit: PTI

140 करोड़ से ज्यादा लोग भारत में रहते हैं, लेकिन रतन टाटा जितना सम्मान पाने वाले सिर्फ कुछ ही उद्योगपति हैं. रतन टाटा ने 86 साल की उम्र में मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में अंतिम सांस ली. एक प्रमुख व्यवसायी और परोपकारी व्यक्ति के रूप में उनकी छवि भारतीय अर्थव्यवस्था पर गहरी छाप छोड़ गई है. अपने शर्मीले स्वभाव के लिए जाने जाने वाले रतन टाटा ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रमुख उद्योगपति के रूप में पहचान बनाई. 2012 में रिटायरमेंट होने से पहले उन्होंने दो दशकों तक टाटा समूह के अध्यक्ष के रूप में काम किया और कंपनी को आगे बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई.

उद्योग जगत से जुड़े रतन टाटा उन चुनिंदा लोगों में शामिल रहे जिनका विवादों से दूर-दूर तक नाता नहीं रहा. अपनी व्यावसायिक सूझबूझ, दूरदर्शिता और अथक परिश्रम के बल पर उन्होंने टाटा समूह को अंतरराष्ट्रीय साम्राज्य में बदल दिया. उनके नेतृत्व में टाटा समूह ने कई ऊंचाइयां छुईं. इनमें सबसे बड़ा मील का पत्थर 2011-12 में आया, जब कंपनी का राजस्व 100 अरब डॉलर से ज्यादा हो गया.

लगातार बढ़ता गया करियर

1937 में टाटा परिवार में जन्मे रतन टाटा को शुरुआती दौर में व्यक्तिगत चुनौतियों का सामना करना पड़ा. 10 साल की उम्र में उनके माता-पिता अलग हो गए. शानदार घर में पले-बढ़े और कॉर्नेल विश्वविद्यालय से आर्किटेक्चर और स्ट्रक्चरल इंजीनियरिंग में डिग्री हासिल की. हार्वर्ड एडवांस्ड मैनेजमेंट प्रोग्राम सहित कई योग्यताओं के बावजूद, रतन टाटा ने आईबीएम की नौकरी ठुकरा दी.


जमीन से जुड़े रहे

हमेशा जमीन से जुड़े रहने वाले रतन टाटा ने 1962 में टेल्को की दुकान पर काम करना शुरू किया, जहां उन्होंने चूना पत्थर को फावड़े से हटाने का काम किया. उन्होंने अपना करियर जमीन से बनाया और टाटा समूह के भीतर कई कंपनियों के साथ काम किया. अंततः 1971 में वे राष्ट्रीय रेडियो और इलेक्ट्रॉनिक्स (नेल्को) के निदेशक बन गए. एक प्रशिक्षु से निदेशक बनने में उन्हें नौ साल लगे, लेकिन उन्होंने कभी भी कड़ी मेहनत से खुद को पीछे नहीं किया.

जोखिम उठाने वाला व्यक्ति

140 करोड़ देशवासियों में शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा जिसने अपनी जिंदगी में टाटा का किसी उत्पाद का उपयोग न किया हो. नमक से लेकर ट्रक तक—आप बस नाम बताइए और उनके पास सबकुछ है. लेकिन यह यात्रा इतनी आसान नहीं रही. कई बाधाओं के बावजूद रतन टाटा ने साहस का परिचय दिया और बड़े अधिग्रहण किए. 1991 का वह दौर था जब देश उदारीकरण के युग से गुजर रहा था. तब रतन टाटा ने टाटा संस के अध्यक्ष और टाटा ट्रस्ट्स के अध्यक्ष का पद संभाला. रतन टाटा की अध्यक्षता में कंपनी ने कई साहसिक कदम उठाए और टाटा को 100 से ज्यादा देशों में पहुंचा दिया.

एक नजर उनके जीवन और करियर पर