बैंकिंग सिस्टम को राहत देने के लिए RBI का बड़ा कदम, मिलेगा 1.50 लाख करोड़ रुपये का लिक्विडिटी इंजेक्शन

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने बैंकों की लिक्विडिटी टाइटनेस को दूर करने के लिए बड़ा कदम उठाया है. इस फैसले से सरकारी बॉन्ड्स की यील्ड पर असर पड़ेगा और रुपया-डॉलर बाजार में भी हलचल मच सकती है.

रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया Image Credit: tv9 bharatvarsh

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने सोमवार को बैंकिंग सिस्टम में नकदी प्रवाह बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण उपायों की घोषणा की. इसके तहत 5 अरब डॉलर (USD/INR) की बाय/सेल स्वैप नीलामी, 60,000 करोड़ रुपये की सरकारी प्रतिभूतियों (G-Secs) की ओपन मार्केट ऑपरेशन (OMO) नीलामी और 50,000 करोड़ रुपये के 56-दिन की अवधि वाले वेरिएबल रेट रेपो (VRR) की घोषणा की गई. यह पहली बार होगा जब इतनी लंबी अवधि के VRR नीलामी का आयोजन किया जाएगा.

बैंकिंग सिस्टम में नकदी प्रवाह बढ़ाने की कोशिश

RBI के इन उपायों के जरिए बैंकिंग सिस्टम में लगभग 1.50 लाख करोड़ रुपये की नकदी डाली जाएगी. यह प्रक्रिया चरणबद्ध तरीके से 30 जनवरी से शुरू होकर 20 फरवरी तक चलेगी. इससे सरकारी प्रतिभूतियों (G-Secs) की यील्ड में नरमी आने की संभावना है, जिससे बैंकों को उधारी दरों में राहत मिलेगी.

हाल के दिनों में बैंकिंग सिस्टम में लिक्विडिटी की कमी देखी गई है. इसका मुख्य कारण टैक्स आउटफ्लो और सीमित सरकारी खर्च है. अनुमान के मुताबिक, बैंकिंग सिस्टम में तरलता की कमी करीब 3 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गई है. इसे देखते हुए, आरबीआई ने 16 जनवरी से रोजाना वेरिएबल रेट रेपो (VRR) नीलामी आयोजित करने का फैसला लिया है, जो अगले आदेश तक जारी रहेंगी.

डॉलर-रुपया स्वैप नीलामी

डॉलर-रुपया स्वैप नीलामी आरबीआई ने घोषणा की कि 31 जनवरी 2025 को 6 महीने की अवधि के लिए 5 अरब डॉलर की बाय/सेल स्वैप नीलामी आयोजित की जाएगी. इस स्वैप प्रक्रिया में बैंकों को पहले चरण में अमेरिकी डॉलर आरबीआई को बेचने होंगे, जिसके बदले आरबीआई उनके खातों में रुपये जमा करेगा. छह महीने बाद, बैंकों को रुपये वापस देकर डॉलर हासिल करने होंगे साथ ही स्वैप प्रीमियम का भुगतान भी करना होगा.

यह भी पढ़ें: OpenAI पर अंबानी और अडानी की कंपिनयों ने लगाया कॉपीराइट उल्‍लंघन का आरोप, ठोंका मुकदमा

गौरतलब है कि आरबीआई ने इससे पहले 26 मार्च 2019 को 5 अरब डॉलर की बाय/सेल स्वैप नीलामी आयोजित की थी, लेकिन तब यह तीन वर्षों के लिए थी. इस बार छह महीने की अवधि वाली नीलामी के जरिए बैंकों को शॉर्ट-टर्म लिक्विडिटी रिलैक्सेशन देने की कोशिश की जा रही है.