Explainer : आपकी प्रॉपर्टी पर नहीं चलेगी सरकार की मनमानी, Supreme Court का बड़ा फैसला

Supreme Court ने मंगलवार को प्राइवेट प्रॉपर्टी को लेकर एक ऐतिहासिक फैसला दिया है. यह फैसला प्राइवेट प्रॉपर्टी पर सरकार के कब्जे से जुड़ा है. इसमें सुप्रीम कोर्ट ने 45 साल पुराने अपने ही फैसले को पलट दिया है. आइए विस्तार से जानते हैं क्या है यह फैसला और क्या होगा इसका असर.

ड्राइविंग लाइसेंस को लेकर झंझट खत्म, अब कार चलाने वाले भी दौड़ा सकेंगे ये गाड़ियां Image Credit: Pradeep Gaur/SOPA Images/LightRocket via Getty Images

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को निजी संपत्ति को लेकर एक बड़ा फैसला दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 39 बी के तहत सरकार की शक्तियों के दायरे पर फैसला दिया है. इस फैसले ने 45 साल पहले, 1978 में दिए गए सुप्रीम कोर्ट के ही एक फैसले को पलट दिया गया है. संविधान के अनुच्छेद 39 बी में सरकार को जनहित में निजी संपत्ति के अधिग्रहण की शक्तियां दी गई हैं. इन्हीं शक्तियों के दायरे को लेकर चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड की अध्यक्षता में 9 जजों की संवैधानिक पीठ ने 8:1 के बहुमत वाले फैसले में कहा, प्रत्येक प्राइवेट प्रॉपर्टी को सामुदायिक संपत्ति नहीं कहा जा सकता है. सरकार किसी खास संपत्ति को ही जनहित में अधिग्रहण के लिए सामुदायिक संसाधन घोषित कर सकती है.

पहले क्या थी व्यवस्था

1978 में जस्टिस कृष्ण अय्यर ने अपने फैसले में कहा था कि सरकार जनहित में किसी भी निजी संपत्ति का अधिग्रहण कर सकती है. इस फैसले को पलटते हुए चीफ जस्टिस ने कहा कि पुराना फैसला विशेष आर्थिक, समाजवादी विचारधारा से प्रेरित था.

कौन पक्ष में, कौन विपक्ष में

आज का फैसला देने वाली पीठ की अध्यक्षता चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने की थी. इसके अलावा जस्टिस हृषिकेश रॉय, जस्टिस जेबी पारदीवाला, जस्टिस मनोज मिश्रा, जस्टिस राजेश बिंदल, जस्टिस एससी शर्मा और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह फैसले के समर्थन में रहे. वहीं, जस्टिस बीवी नागरत्ना फैसले के कुछ पहलुओं से सहमत थीं. जबकि, जस्टिस सुधांशु धूलिया ने असहमति जताई.

क्यों लिया गया यह फैसला

सरकार की तरफ से निजी संपत्ति के अधिग्रहण की मनमानी शक्तियों पर लगाम लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में 16 याचिकाएं दायर की गईं. यह बैंच सभी 16 याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई कर रही थी. इनमें सबसे पहली याचिका 1992 में मुंबई स्थित प्रॉपर्टी ओनर्स एसोसिएशन की तरफ से दायर की गई थी. इसमें महाराष्ट्र हाउसिंग एंड एरिया डेवलपमेंट एक्ट (MHADA) अधिनियम के अध्याय VIII-ए का विरोध किया गया है.

MHADA का विरोध क्यों हुआ

महाराष्ट्र सरकार ने 1986 में MHADA में VIII-ए एक नया अध्याय जोड़ा. इसके तहत राज्य सरकार को टूटी और जर्जर इमारतों की जमीन के अधिगृहण का अधिकार दिया गया. महाराष्ट्र सरकार इमारतों की मरम्मत के लिए इस कानून के तहत इन मकानों में रहने वाले लोगों पर उपकर लगाता है. इसका भुगतान मुंबई भवन मरम्मत एवं पुनर्निर्माण बोर्ड (MBRRB) को किया जाता है, जो इन इमारतों की मरम्मत का काम करता है.

नई आर्थिक नीति से संबंध

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि 1960 के दशक के बाद से भारत का आर्थिक दृष्टिकोण और नीतियां काफी बदल चुकी हैं. उस समय का कानूनी दर्शन राष्ट्रीयकरण के पक्ष में प्रचलित था. लेकिन, पिछले तीन दशकों में भारत की गतिशील आर्थिक नीतियों ने देश के तेज विकास में योगदान दिया है, जिसने इसे दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक बना दिया है. ऐसे में सामुदायिक संसाधनों की कठोर व्याख्या निजी स्वामित्व और उद्यमशीलता के विकास में बाधा डाल सकती है.