तिरुपति के लड्डुओं पर मचा बवाल, रोजाना 3 लाख लड्डू बेचकर जानें मंदिर कर रहा कितनी कमाई

दक्षिण भारत के प्रसिद्ध मंदिर तिरुपति बालाजी में मिलने वाले 'लड्डू प्रसादम' में हो रही मिलावट को लेकर हंगामा मचा हुआ है. यह लड्डू दुनियाभर में अपने उम्‍दा स्‍वाद के लिए मशहूर हैं, लेकिन इसमें जानवर की चर्बी मिलने की खबर से लोग आहत हैं.

तिरुपति मंदिर लड्डू प्रसादम Image Credit: freepik

Tirupati laddu controversy: आंध्र प्रदेश सरकार की ओर से पेश किए एक लैब रिपोर्ट से दक्षिण भारत के प्रसिद्ध मंदिर तिरुपति बालाजी में मिलने वाले ‘लड्डू प्रसादम’ पर बवाल मच गया है. रिपोर्ट में मंदिर के लड्डुओं में जानवरों की चर्बी और मछली के तेल के उपयोग की बात सामने आई है. मगर क्‍या आपको पता है भगवान वेंकटेश्वर के इस पवित्र मंदिर में चढ़ाया जाने वाला ‘लड्डू प्रसादम’ अपने स्‍वाद के लिए हमेशा से बेहद मशहूर रहा है. देश समेत कई विदेशी भक्‍त भी इसे लेना पसंद करते हैं. यही वजह है कि मंदिर समीति की ओर से रोजाना करीब 3 लाख लड्डू बेचे जाते हैं. इससे मंदिर की करोड़ों में कमाई भी होती है. आज हम आपको इस लड्डू की खासियत के बारे में बताएंगे.

ऐसे तैयार होता है लड्डू

तिरुपति में भगवान वेंकटेश्वर के मंदिर में चढ़ाया जाने वाला ‘लड्डू प्रसादम’ मंदिर की रसोई में तैयार किए जाते हैं, जिसे ‘पोटू’ के नाम से जाना जाता है. इसे बाने की तैयारी की जाती है, जिसे ‘दित्तम’ कहते हैं. इसमें विशिष्ट सामग्री और उनकी मात्रा को निर्धारित किया जाता है.

छह बार हो चुका है बदलाव

मंदिर के इतिहास में लड्डुओं को बनाने की विधि में छह बार बदलाव किया गया है. 2016 की TTD रिपोर्ट के अनुसार लड्डू में दिव्य सुगंध होती है. शुरुआत में प्रसादम की शेल्फ लाइफ बढ़ाने के लिए बेसन और गुड़ की चाशनी से बनी बूंदी बनाई गई थी. बाद में, स्वाद और पोषण मूल्य दोनों को बढ़ाने के लिए बादाम, काजू और किशमिश मिलाए गए. खाद्य परीक्षण प्रयोगशाला लड्डू के प्रत्येक बैच की गुणवत्ता सुनिश्चित करती है, जिसमें काजू, चीनी और इलायची की सटीक मात्रा होनी चाहिए और उसका वजन ठीक 175 ग्राम होना चाहिए.

कितनी होती है लड्डुओं से कमाई?

हर दिन तिरुपति में लगभग 3 लाख लड्डू तैयार किए जाते हैं और बेचे जाते हैं. इन लड्डुओं की बिक्री से सालाना लगभग 500 करोड़ रुपए की कमाई होती है. तिरुपति में लड्डू बनाने की शुरुआत 300 साल से भी पहले हुई थी. माना जाता है कि इसकी शुरुआत 1715 में हुई थी. 2014 में, तिरुपति लड्डू को जीआई दर्जा मिला, जिससे कोई भी अन्य व्यक्ति इस नाम से लड्डू नहीं बेच सकता.

रिपोर्ट से मचा हंगामा

गुरुवार को आंध्र प्रदेश सरकार ने एक लैब रिपोर्ट जारी की, जिसमें वाईएसआरसी शासन के दौरान आपूर्ति किए गए घी में लार्ड (सुअर की चर्बी), टैलो (गोमांस की चर्बी) और मछली के तेल सहित विदेशी वसा की मौजूदगी मिली. लड्डू के स्वाद के बारे में शिकायतों के बाद 23 जुलाई को किए गए विश्लेषण में नारियल, अलसी, रेपसीड और कपास के बीज जैसे वनस्पति स्रोतों से प्राप्त वसा भी पाई गई थी.