9 साल की लंबी बातचीत के बाद बंटा था 6 नदियों का पानी, युद्ध में भी नहीं रुका बहाव; जानें- क्या है सिंधु जल समझौता

साल 1947 में जब भारत का विभाजन हुआ, तो सिंधु रिवर सिस्टम तनाव का बड़ा कारण बन गया. तिब्बत से शुरू होकर भारत होते हुए पाकिस्तान में बहती सिंधु नदी का प्रवाह भारत ने 1948 मे अस्थायी रूप से रोक दिया था. फिर लंबी बातचीत के बाद इसका हल निकला और सिंधु जल समझौते की रुपरेखा तैयार हुई.

भारत ने स्थगित कर दिया है सिंधु जल समझौता Image Credit: Money9

साल 1947… तारीख 15 अगस्त. भारत बरतानिया हुकूमत से आजाद हुआ. एक देश के दो टुकड़े हुए. एक मुल्क के रूप में पाकिस्तान की नींव पड़ी. फिर बंटवारा हुआ और जमीन पर एक लकीर खींच दी गई. यानी खेत बंटे, खलिहान बंटे, नदियां बंटी और पहाड़ से लेकर पठार तक बंट गए. बंटवारे के बाद लोगों ने अपनी सहूलियत के हिसाब से अपना देश चुना और मोटरी-गठरी बांधकर अपने-अपने वतन के हो लिए. जमीन पर लकीरें खींची गईं, तो नदियां दो हिस्सों में बंट तो गईं, लेकिन पानी के बहाव को कौन बांटे और कैसे बांटे.

इसलिए हिमालय से निकलकर हिंदुस्तान की जमीन से होकर नदियां पाकिस्तान तक जाती रहीं. मतलब नदियों का सारा पानी पाकिस्तान को चला जा रहा था. पाकिस्तान भी यही चाहता था. लेकिन भारत को इसपर आपत्ति थी, क्योंकि लबालब पानी से भरी कुल 6 नदियों (सिंधु, रावी, सतलुज, ब्यास, झेलम, चेनाब) का पानी बहता था. इन नदियों के पानी की जरूरत भारत को खेतों की सिंचाई से लेकर बिजली बनाने तक के लिए थी और पाकिस्तान को भी इन्ही कामों के लिए पानी की दरकार थी.

लेकिन पानी तो कोई जमीन का टुकड़ा है नहीं, जिसे लकीर खींचकर बांट लिया जाए. तो इन नदियों के पानी के बंटवारे के लिए बात से लेकर बहस तक हुई, लेकिन मामला सुलझा नहीं. फिर साल 1951 में वर्ल्ड बैंक ने दोनों देशों के मसले को सुलझाने का ऑफर दिया. दोनों देश इसके लिए राजी हो गए और 9 साल बाद मसले का हल निकाला, जिसे सिंधु जल संधि या समझौता कहा गया. पहलगाम आतंकी हमले के मद्देनजर भारत ने बुधवार को पाकिस्तान के साथ सिंधु जल संधि को स्थगित कर दिया.

वर्ल्ड बैंक की कैसे हुई एंट्री?

साल 1947 में जब भारत का विभाजन हुआ, तो सिंधु रिवर सिस्टम तनाव का बड़ा कारण बन गया. तिब्बत से शुरू होकर भारत होते हुए पाकिस्तान में बहती सिंधु नदी का प्रवाह भारत ने 1948 मे अस्थायी रूप से रोक दिया, जिसके कारण पाकिस्तान ने संयुक्त राष्ट्र के समक्ष इस मुद्दे को उठाया. संयुक्त राष्ट्र ने एक न्यूट्रल तीसरे पक्ष को शामिल करने की सिफारिश की, जिसके कारण विश्व बैंक को हस्तक्षेप करना पड़ा. वर्षों की बातचीत के बाद अंततः 1960 में भारतीय प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तानी राष्ट्रपति अयूब खान ने महत्वपूर्ण रिवर सिस्टम को शांतिपूर्ण ढंग से प्रबंधित करने और साझा करने के लिए सिंधु जल संधि पर हस्ताक्षर किए.

9 साल की बातचीत के बाद समझौता

19 सितंबर 1960 को भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान ने समझौते पर दस्तखत किए. यह जल समझौता अपने आप में अनोखा था. एशिया में दो देशों के बीच एकमात्र सीमा-पार जल-बंटवारे का समझौता, क्षेत्रीय सहयोग का एक महत्वपूर्ण बना. समझौते में भारत के पहाड़ों और जमीन से होकर पाकिस्तान जाने वाली कुल छह नदियों को दो हिस्सों पूर्वी और पश्चिमी में बांटा गया.

दो हिस्सों में बंटी नदियां

पूर्वी हिस्से में रावी, ब्यास और सतलुज और पश्चिमी में झेलम, सिंधु और चेनाब को शामिल किया गया. समझौते के अनुसार भारत का पूर्वी नदियों पर अधिकार रहेगा, लेकिन पश्चिमी नदियों का पानी पाकिस्तान के लिए छोड़ना पड़ेगा. इस फॉर्मूले से भारत को कुल नदियों का लगभग 20 फीसदी ही पानी मिलता है. जबकि पाकिस्तान को करीब 80 फीसदी पानी मिलता है. इसके पीछे की वजह ये है कि पूर्वी नदियों के मुकाबले पश्चिमी नदियों में ज्यादा पानी है और इनका पूरा पानी पाकिस्तान को जाता है. इसके अलावा पूर्वी नदियों का पानी भी पाकिस्तान को जाता है, क्योंकि जाहिर सी बात भारत पूरा पानी का इस्तेमाल तो करता है नहीं.

नहीं रोक सकते पानी का बहाव

भारत को अभी भी बुनियादी घरेलू जरूरतों, खेती और बिजली पैदा करने जैसी चीजों के लिए पश्चिमी नदियों से कुछ पानी का उपयोग करने की अनुमति है, लेकिन केवल ऐसे तरीकों से जो पानी को पाकिस्तान में बहने से महत्वपूर्ण रूप से नहीं रोकते हैं. भारत के हिस्से जो नदियों का पानी आया तो उसका इस्तेमाल करते हुए कई बांध बनाए जिसमें सतलुज नदी पर बना भाखड़ा नांगल डैम है. इसके अलावा इस पानी के बेहतर इस्तेमाल के लिए व्यास-सतलुज लिंक, इंदिरा गांधी नहर और माधोपुर-व्यास लिंग जैसी अन्य परियोजनाएं भी बनाई गईं. ये सब पूर्वी नदियों पर बने हैं.

पाकिस्तान के लिए कितना जरूरी है ये पानी

इन नदियों का पानी पाकिस्तान में खेती के लिए महत्वपूर्ण हैं. खासकर पंजाब और सिंध प्रांतों में खेतों की सिंचाई के लिए इन नदियों का पानी अहम है. विश्व बैंक के अनुसार, संधि के जरिए निष्पक्ष और कॉपरेटिव प्रबंधन के लिए रूपरेखा तैयार की गई, जो भारत और पाकिस्तान दोनों में कृषि, पेयजल और उद्योग के लिए आवश्यक है. इसने नदी और उसकी सहायक नदियों के न्यायसंगत बंटवारे के लिए स्पष्ट दिशानिर्देश तय किए, ताकि दोनों देश अपनी पानी की जरूरतों को पूरा कर सकें.

पाकिस्तान पर क्या पड़ेगा असर?

सिंधु जल समझैता के स्थगित होने से पाकिस्तान पर काफी असर पड़ेगा, क्योंकि यह समझौता सिंधु रिवर सिस्टम और उसकी सहायक नदियों से पानी के उपयोग और बंटवारे को कंट्रोल करता है. यह पाकिस्तान की जल आवश्यकताओं और कृषि क्षेत्र के लिए आवश्यक है. सिंधु नदी नेटवर्क में झेलम, चिनाब, रावी, ब्यास और सतलुज नदियां शामिल हैं, जो पाकिस्तान के प्रमुख जल संसाधन के रूप में कार्य करता है. करोड़ों की आबादी का भरण-पोषण इन्हीं नदियों के पानी पर निर्भर है.

पाकिस्तान सिंचाई, खेती और पीने योग्य पानी के लिए इस जल सप्लाई पर काफी हद तक निर्भर है. कृषि क्षेत्र पाकिस्तान की नेशनल इनकम में 23 फीसदी का योगदान देता है और इसके 68 फीसदी ग्रामीण निवासियों का भरण-पोषण करता है. सिंधु बेसिन सालाना 154.3 मिलियन एकड़ फीट पानी की आपूर्ति करता है, जो बड़े स्तर पर कृषि क्षेत्रों की सिंचाई और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण है. जल प्रवाह में कोई भी रुकावट पाकिस्तान के कृषि क्षेत्र को काफी प्रभावित करेगी, जो इसकी अर्थव्यवस्था और ग्रामीण आजीविका का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है.

पानी सप्लाई का संकट

पानी की कम उपलब्धता से खेती पर निर्भर ग्रामीण क्षेत्रों में फसल की पैदावार कम होने, खाद्यान्न की कमी और आर्थिक अस्थिरता की आशंका बढ़ेगी. पाकिस्तान पहले से ही भूजल की कमी, कम होती उपजाऊ मिट्टी और सीमित जल भंडारण क्षमता जैसे गंभीर जल प्रबंधन मुद्दों का सामना कर रहा है. देश की जल भंडारण क्षमता कम है, मंगला और तरबेला जैसे प्रमुख बांधों में केवल 14.4 MAF का ज्वाइंट लाइव स्टोरेज है, जो संधि के तहत पाकिस्तान के वार्षिक जल हिस्से का केवल 10 फीसदी है. सिंधु जल समझौता को स्थगित करने के बाद पाकिस्तान के लिए पानी सप्लाई का संकट गंभीर हो सकता है, क्योंकि पाकिस्तान के पास अपनी जल आवश्यकताओं को प्रबंधित करने के लिए कम विकल्प बचेंगे.

दोनों देशों के बीच नदी जल के बंटवारे को नियंत्रित करने वाली यह संधि लंबे समय से सहयोग का प्रतीक मानी जाती रही है. वर्षों से चले आ रहे संघर्ष और टकराव के बीच भी इसे खत्म नहीं किया गया था, लेकिन अब इसे रद्द कर दिया गया है.

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