कौन हैं वो भारतीय, जिन्हें सबसे पहले मिली थी अमेरिका की नागरिकता, 100 साल पहले लड़ी थी लंबी लड़ाई
भारतीय-अमेरिकी की संख्या करीब 54 लाख है. राजनीति से लेकर अमेरिकी प्रशासन तक में भारतीयों की मजबूत दखल है. दिग्गज कंपनियों के टॉप पोजिशन पर भारतीय मूल के अमेरिकी नागरिकों का कब्जा है. लेकिन भारतीयों के अमेरिकी नागरिक बनने की शुरुआत कब हुई थी…
First Indian-American Citizen: मजाक में एक बात कही जाती है कि जब नील आर्मस्ट्रांग अपोलो 11 से चांद की सतह पर उतरे, तो वो यह देखकर हैरान रह गए कि एक भारतीय उनसे पहले चांद पर कदम रख चुका था. मजाक में कही इस बात का गंभीर अर्थ यह है कि भारतीय हर जगह पहुंच चुके हैं. अब इसे अमेरिका के संबंध में देखें, तो इस देश में भारतीय-अमेरिकी की संख्या करीब 54 लाख है. राजनीति से लेकर अमेरिकी प्रशासन तक में भारतीयों की मजबूत दखल है और सिलिकॉन वैली में भारतीयों दबदबे को लेकर अब क्या ही कहना, जब दिग्गज कंपनियों के टॉप पोजिशन पर भारतीय मूल के अमेरिकी नागरिकों का कब्जा है. मतलब यह कि अमेरिका में भारतीयों की स्थिति यह है कि ‘जहां जाइएगा हमें पाइएगा’. लेकिन भारतीयों के अमेरिकी नागरिक बनने की शुरुआत कब हुई थी…
कौन सा भारतीय सबसे पहले अमेरिका का नागरिक बना था, इसको लेकर कोई एक नाम लेना तो मुश्किल है. लेकिन दो नाम है, जिनके लिए कहा जाता है कि अमेरिकी नागरिकता पाने वाले शुरुआती भारतीय वही दोनों हैं और पहले शख्स का नाम भगत सिंह थिंड है.
भगत सिंह थिंड
भगत सिंह थिंड, अमृतसर पंजाब में पैदा हुए थे. साल 1913 में संयुक्त राज्य अमेरिका चले गए. उन्होंने बर्कले में कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी में पढ़ाई की और पीएचडी की डिग्री हासिल की. इसके बाद उन्होंने प्रथम विश्व युद्ध के दौरान अमेरिकी सेना में सेवा भी दी. फिर 1920 में अमेरिकी नागरिकता के लिए आवेदन किया. हालांकि, उनकी नागरिकता के आवेदन को स्वीकार नहीं किया गया.
दरअसल, गृहयुद्ध युग के दौरान एक कानून बना था कि अमेरिकी सेना में सेवा करने वाले विदेशियों को प्राकृतिक नागरिक बनने की अनुमति दी जाएगी. लेकिन भगत सिंह थिंड को अमेरिका नागरिकता नहीं मिली. इमिग्रेशन और नेचुरलाइजेशन सर्विसेज (INS) ने इस आधार पर थिंड के आवेदन को खारिज कर दिया कि वह श्वेत व्यक्ति नहीं थे. यह तथ्य भी दिलचस्प है कि उन्हें चार दिनों के लिए नागरिकता दी गई थी.
यहां की मिली नागरिकता
थिंड ने इसके बाद ओरेगन में नागरिकता प्राप्त करने की कोशिश की, जहां उन्हें नागरिकता दी गई क्योंकि जज उसकी सैन्य सेवा से प्रभावित थे. हालांकि, इमिग्रेशन और नेचुरलाइजेशन सर्विसेज (INS) उन्हें जाने नहीं देना चाहता था. इसलिए उसने थिंड के मामले को 9वें सर्किट कोर्ट ऑफ अपील्स में अपील की. इसके बाद जो हुआ वह शायद नस्लवाद की अस्पष्ट प्रकृति का सबसे अच्छा उदाहरण था.
लंबे इंतजार के बाद मिली नागरिकता
साल 1923 में, एक न्यायाधीश ने फैसला सुनाया कि थिंड का मतलब ‘आम आदमी’ की श्वेत परिभाषा से नहीं था और इसलिए वह नागरिक नहीं बन सकते. इसलिए एक बार फिर से थिंड विदेशी नागरिक ही बनकर रह गए. भगत सिंह थिंड को अमेरिकी नागरिकता के लिए 1935 तक इंतजार करना पड़ा.
कांग्रेस ने एक अधिनियम पारित किया, जिसके तहत सभी अमेरिकी सेना के वेटरन को नागरिकता दी गई. उस समय फिर नागरिकता से लिए जाति को आधार नहीं बनाया गया. इस तरह एक लंबी लड़ाई और इंतजार के बाद संयुक्त राज्य अमेरिका को अपना पहला भारतीय अमेरिकी नागरिक मिला था.
मुंबई का एक पारसी शख्स
अब दूसरे शख्स की कहानी… 1880 का दशक. तब लॉस एंजिल्स एक ऐसा शहर था जो खुद को फिर से गढ़ रहा था. सोने की लूट कम हो रही थी. माहौल उम्मीदों से भरा था और उन लोगों के लिए नए अवसर बन रहे थे, जो उन्हें भुनाना जानते थे. उस मौके को भुनाने की कतार में मुंबई का एक पारसी उद्यमी था, जो थोड़े पैसे और थोड़े रहस्य के साथ अमेरिकी नागरिकता हासिल करने और वहां अपने लिए एक आरामदायक जीवन जीने में सक्षम हुआ था. उस शख्स का नाम एडुलजी सोराबजी था.
कहा जाता है कि सोराबजी 1890 में अमेरिकी नागरिक बन गए थे. हालांकि, शुरुआती रिकॉर्ड्स के अभाव में यह निश्चित रूप से कहना कठिन है कि क्या वह वास्तव में अमेरिकी नागरिकता प्राप्त करने वाले पहले भारतीय थे, लेकिन वह निश्चित रूप से सबसे पहले अमेरिकी नागरिकता प्राप्त करने वालों में से एक थे.
लॉस एंजिल्स और सोराबजी
लॉस एंजिल्स टाइम्स, दक्षिण कैलिफोर्निया के शुरुआती इतिहास का विवरण देने वाले एडिशन और ancestry.com जैसी डिजिटल रिपॉजिटरी पर सोराबजी की डिटेल्स मौजूद हैं. इसी के हवाले से Peepul Tree ने कुछ डिटेल्स अपनी वेबसाइट पर लिखे हैं.
सोराबजी के जीवन की कहानी लॉस एंजिल्स के शुरुआती दौर की पृष्ठभूमि में सामने आती है और शहर के अमेरिका के सबसे बड़े महानगरों में से एक बनने के समानांतर चलती है. जो लोग उस समय लॉस एंजिल्स गए, वो शहर की जलवायु और जगह से मंत्रमुग्ध हो गए. फलों के बगीचे और उद्योग तथा रियल एस्टेट से पैलासा कमाने का मौका शहर में था. उन्होंने इस शहर में पैसा कमाया और रईस बन गए.
कैसे मिली नागरिकता?
सोराबजी की कहानी ने 1890 में अमेरिकी नागरिक के रूप में उनके नेचुरलाइजेशन में मदद की होगी. 1790 के नेचुरलाइजेशन अधिनियम ने उन अप्रवासियों को नागरिकता प्रदान की जो ‘स्वतंत्र और श्वेत’ थे. अफ्रीकी-अमेरिकियों को 1870 में ही नागरिकता के अधिकार दिए गए. मूल अमेरिकियों को 1924 में और एशियाई लोगों को 1940 के दशक तक बाहर रखा गया. इस प्रकार सोराबजी नेचुरलाइजेशन के जरिए नागरिकता प्राप्त करने वाले पहले दक्षिण एशियाई लोगों में से थे. लॉस एंजिल्स में रियल एस्टेट में निवेश कर उन्होंने खूब पैसा कमाया था.