Financial Freedom Summit दिग्गजों ने बताया किसे लेना जरूरी है इंश्योरेंस, प्रीमियम पर GST क्या घटेगी?

Money9 Financial Freedom Summit 2025: इंश्योरेंस पर जीएसटी कितना होना चाहिए. इस सवाल के जबाव भी मिले और इस विषय पर चर्चा भी देखने को मिली. इसके अलावा इंश्योरेंस को कैसे हर एक व्यक्ति तक पहुंचाया जाए, इसपर भी बात हुई.

मनी9 फाइनेंशियल फ्रीडम समिट के मंच पर इंश्योरेंस सेक्टर के दिग्गजों ने की शिरकत. Image Credit: Money9

Money9 Financial Freedom Summit 2025 के तीसरे एडिशन के मंच पर इंश्योरेंस सेक्टर के दिग्गजों ने शिरकत की. ‘इंश्योरेंस फॉर ऑल’ के सेशन में बंधन लाइफ के एमडी और सीईओ सतीश्वर बी, आदित्य बिड़ला हेल्थ इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड सीईओ मयंक बथवाल और कोटक लाइफ इंश्योरेंस के एमडी महेश बालासुब्रमण्यम ने अपनी बात रखी है. चर्चा शुरू हुई कि आखिर लोग बड़ी संख्या में लाइफ या हेल्थ इंश्योरेंस क्यों नहीं लेते हैं और ये किसके लिए जरूर है. चर्चा की शुरुआत सतीश्वर बी ने कि और कहा कि इंश्योरेंस सभी के लिए जरूरी है. लाइफ इंश्योरेंस इसलिए लिया जाता है, ताकी घर में कमाने वाला व्यक्ति किसी दुर्घटना का शिकार हो जाता है, तो परिवार पर पड़ने वाले वित्तीय खर्च के बोझ से बचा जा सके.

लोग क्यों नहीं खरीदते हैं इंश्योरेंस?

उन्होंने कहा कि लोगों के बीच इंश्योरेंस को लेकर जागरुकता है, लेकिन तात्कालिकता नहीं है. मयंक बथवाल ने हेल्थ इंश्योरेंस पर अपनी बात रखी और कहा कि ये सभी के लिए जरूरी है, क्योंकि कोई नहीं चाहता है कि उसकी बीमारी की वजह से पैसों का बोझ उसपर पड़े. महेश बालासुब्रमण्यम ने कहा कि इंश्योरेंस लेने में कमी के पीछे तीन कारण- जागरुकता, खरीदने की सामर्थ्य और एक्सेसिबिलिटी है.

आसान हुआ प्रोसेस

महेश बालासुब्रमण्यम ने कहा कि पहले इंश्योरेंस खरीदने का प्रोसस लंबा और जटिल था. लेकिन अब प्रक्रिया धीरे-धीरे आसान हो रही है. साथ ही समय के साथ जागरुकता भी बढ़ रही है. इसके अलावा इंश्योरेंस सेक्टर में 100 फीसदी एफडीआई पर उन्होंने कहा कि अगर किसी भी सेक्टर में अधिक कंपनियां आती है, तो कंपटीशन बढ़ता है और इसका लाभ ग्राहकों को मिलता है. इसलिए इंश्योरेंस सेक्टर में जितनी कंपनियां आएंगी, बाजार उतना ही बेहतर होगा. लेकिन विदेश से भारत आ रही कंपनियों को कम से कम 15 साल का समय और बड़ा दिल लेकर आना पड़ेगा.

प्रीमियम पर जीएसटी

इंश्योरेंस पर जीएसटी कितना होना चाहिए. इस सवाल के जबाव में सतीश्वर बी ने कहा कि इसे ऐसे समझें कि टर्म इंश्योरेंस एक साल का प्रोडक्ट नहीं है. यह 15 साल या उससे अधिक का प्रोडक्ट है. इसलिए खर्च कई गुना अधिक है. इसलिए जब कोई पॉलिसी खरीदता है, तो वो खर्च पर जीएसटी देता है, जो बाद में इनपुट टैक्स में क्रेडिट होता है. हालांकि, महेश बालासुब्रमण्यम ने कहा कि शायद बातचीत चल रही है और इसे 18 फीसदी से कम करके 12 फीसदी पर लाया जा सकता है.