हेल्थ इंश्योरेंस क्लेम इन 9 कारणों से हो सकते हैं रिजेक्ट, एक्सपर्ट ने बताए बचाव के ये तरीके
हेल्थ इंश्योरेंस का रिजेक्ट होना किसी भी परिवार के लिए आपदा से कम नहीं होता है. यह ऐसा झटका होता है, जिसकी उम्मीद नहीं की जा रही होती है. 9 ऐसे सामान्य कारण हैं, जिनके चलते अक्सर हेल्थ इंश्योरेंस का क्लेम रिजेक्ट होता है. जानते हैं इन कारणों को और साथ ही एक्सपर्ट से जानते हैं कि इन गलतियों से कैसा बचा जाए?
शशांक चापेकर
हेल्थ इंश्योरेंस आपको और आपके परिवार को अनदेखे स्वास्थ्य जोखिमों से होने वाले वित्तीय नुकसान के खिलाफ सुरक्षा देता है. लेकिन, कई बार हेल्थ इंश्योरेंस क्लेम की प्रक्रिया बेदह तनावपूर्ण हो सकती है. खासकर, इसके रिजेक्ट होने पर निराशा और बढ़ सकती है. जब आप हेल्थ इंश्योरेंस क्लेम करें और आपको आसानी से क्लेम मिले, इसके लिए यह समझना अहम है कि कोई भी क्लेम क्यों रिजेक्ट होता है? क्लेम रिजेक्ट होने से बचाने के लिए क्या कदम उठाए जा सकते हैं.
1. गलत जानकारी या गलत बयानी
आपके इंश्योंरेंस के आवेदन में गलतियां या गलत बयानी होंं, तो क्लेम रिजेक्ट हो सकते हैं. ऐसे में ध्यान रखें कि आयु, आय, मौजूदा पॉलिसी, पेशा और शौक जेसी सभी डिटेल एकदम सही और सटीक हों. अगर आप किसी भी खतरनाक व्यवसाय या साहसिक खेलों जैसी हाई रिस्क एक्टिविटीज में शामिल होते हैं, तो इसका खुलासा करें, क्योंकि ये फैक्टर आपके कवरेज और प्रीमियम को प्रभावित करते हैं. इन तथ्यों की जानकारी के आधार पर बीमा कंपनी यह तय करती है कि उसे आपका हेल्थ इंश्योरेंस का स्वीकार करना है या नहीं और इसका प्रीमियम कितना होगा.
2. प्री-एक्जिस्टिंग डिजीज और लाइफस्टाइल
हेल्थ इंश्योरेंस आवेदन में प्री-एक्जिस्टिंग डिजीज यानी पहले से मौजूद बीमारियों, पारिवारिक की मेडिकल हिस्ट्री, धूम्रपान और शराब जैसी लाइफस्टाइल से जुड़ी आदतों को छिपाना नहीं चाहिए. इनको छिपाने पर भी आपका क्लेम खारिज हो सकता है. इंश्योरेंस कंपनी जोखिम और कवरेज की पात्रता तय करने के लिए इन जानकारियों को जरूरी मानते हैं. ग्राहकों की तरफ से दी गई जानकारी के आधार पर वे कुछ बीमारियों के लिए वेटिंग या एक्सक्लूजन की सिफारिश कर सकते हैं. ऐसे में शुरू से ही ईमानदारी से जानकारी मुहैया कराने से यह तय होता है कि आपकी पॉलिसी से तब कवरेज मिलता है, जब आपको इसकी सबसे ज्यादा जरूररत होती है.
3. वेटिंग पीरियट में क्लेम
ज्यादातर हेल्थ इंश्योरेंस किसी भी क्लेम के लिए एक वेटिंग पीरियड होता है. यानी इससे पहले कोई भी क्लेम स्वीकार नहीं किया जाता है. मिसाल के तौर पर नई पॉलिसी लेने के 30 दिन की अवधि में दुर्घटनाओं को छोड़कर ज्यादातर मामलों में क्लेम को रिजेक्ट किया जाता है, क्योंकि यह पॉलिसी के वेटिंग पीरियड नियम के खिलाफ होता है.
प्रमुख वेटिंग पीरियड
- मैटरनिटी कवर वेटिंग पीरियड आमतौर पर पॉलिसी कवरेज शुरू होने से 24-36 महीने तक होता है.
- स्पेशल डिजीज और प्रॉसीजर्स वेटिंग पीरियड : मोतियाबिंद, हर्निया और साइनुसाइटिस जैसी बीमारियों में अक्सर 24 महीने का वेटिंग पीरियड होता है.
- प्री-एक्जिस्टिंग डिजीज वेटिंग पीरियड: पहले से मौजूद बीमारी की स्थिति में क्लेम करने की अनुमति आम तौर पर 24-48 महीनों के बाद मिलती है.
- सीरियस इलनेस वेटिंग पीरियड के मामले में अक्सर पॉलिसी शुरू होने से 90 दिन बाद कवरेज मिलता है.
4. नेटवर्क से बाहर वाले अस्पताल में इलाज
कई बार नेटवर्क से बाहर के अस्पताल में इलाज कराने के बाद कैशलेस क्लेम किया जाता है. ऐसी स्थिति में भी क्लेम रिजेक्ट हो जाता है. अगर आप नेटवर्क से बाहर का अस्पताल चुनते हैं, तो आपको अपनी जेब से भुगतान करना होगा और बाद में इसका रिबर्समेंट मिलेगा. ऐसे में अस्पताल में भर्ती होने से पहले, इस बात कि पुष्टि कर लें कि आपने जो अस्पताल चुना है वह कंपनी के नेटवर्क में है या नहीं.
5. कवर न की गई सेवाओं के लिए क्लेम
हर पॉलिसी में कवर की किए जाने वाले प्रॉसीजर, सेवा और इलाज के तरीकों की सीमाएं होती हैं. जब, इन सीमाओं और सेवाओं की जानकारी के बिना क्लेम करते हैं, तो क्लेम रिजेक्ट हो जाता है. मिसाल के तौर पर ज्यादातर हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी दांत, आंख और कॉस्मेटिक सर्जरी जैसे इलाज को कवर नहीं करते हैं. इसके अलावा ओपीडी सेवाओं के लिए कवरेज भी अलग से राइडर के तौर पर मिलता हे.
6. पॉलिसी एक्सक्लूजन
ज्यादातर हेल्थ इंश्योरेंस में कुछ उपचार और प्रक्रियाओं को सेवा सीमा से बाहर रखा जाता है. इनमें कॉस्मेटिक या प्लास्टिक सर्जरी, लिंग परिवर्तन उपचार, रेसिंग, रॉक क्लाइम्बिंग, स्कूबा डाइविंग जैसी खतरनाक गतिविधियों से चोट लगना. आपराधिक गतिविधियों के दौरान लगी चोट का उपचार, शराब, नशीली दवाओं का दुरुपयोग से लगी चोट के इलाज को अक्सर पॉलिसी के दायरे से बाहर रखा जाता है. ऐसे में पॉलिसी के एक्सक्लूजन सेक्शन को अच्छी तरह पढ़ लें.
7. लैप्स पॉलिसी पर क्लेम
कई बार ऐसा होता है कि आप पॉलिसी को समय पर रिन्यू नहीं करा पाते हैं और लैप्स पॉलिसी पर ही क्लेम के लिए आवेदन कर देते हैं. इस स्थिति में क्लेम का रिटेक्ट होना तय है. किसी भी क्लेम को तभी प्रोसेस किया जाता है, जब पॉलिसी एक्टिव होती है. इससे बचने के लिए रिन्युअल पेमेंट ध्यान से करें. इसके अलावा कुछ कंपनियां रिन्युअल के लिए ग्रेस पीरियड भी देती हैं. आपकी पॉलिसी में यह है या नहीं यह पहले ही चेक कर लें.
8. बीमा राशि से अधिक क्लेम
हर पॉलिसी में इंश्योरेंस की एक लिमिट होती है. जब क्लेम इस राशि से ज्यादा होता है, तो अक्सर इसे रिजेक्ट कर दिया जाता है. ऐसे में अगर आपके इलाज का खर्च आपकी पॉलिसी की लिमिट से ज्यादा है, तो क्लेम करते समय इसका ध्यान रखें. इस तरह की स्थिति से बचने के लिए यह जरूरी है कि आप अपने हेल्थ इंश्योरेंस को मेडिकल इन्फ्लेशन के हिसाब से बढ़ाते रहें.
9. देर से सूचना देना
इलाज के बारे में जब इंश्योरेंस कंपनी को तय समय की तुलना में देरी से जानकारी दी जाती है, तब भी क्लेम रिजेक्ट होने का जोखिम रहता है. ऐसे में जब भी इलाज के लिए जाएं, तो तय समय में बीमा कंपनी को इसकी जानकारी दें. इसके अलावा अगर आपका अस्पताल में भर्ती होना पहले से तय है, तो इसकी जानकारी अस्पताल में भर्ती होने से पहले ही बीमा कंपनी को दें. वहीं, इमरर्जेंसी में भर्ती होने पर जितना जल्दी संभव हो इसकी जानकारी बीमा कंपनी को दें.
डिस्क्लेमर: लेखक शशांक चापेकर, मणिपाल सिग्ना हेल्थ इंश्योरेंस के चीफ डिस्ट्रीब्यूशन ऑफिसर हैं. यहां प्रकाशित विचार निजी हैं.