SEBI ने रद्द किया Trafiksol का IPO, पूरा पैसा होगा रिफंड, 345 गुना हुआ था सब्सक्राइब  

बाजार नियामक सेबी ने एसएमई कैटेगरी की कंपनी Trafiksol के आईपीओ को रद्द कर दिया है. इस संबंध में जारी एक आदेश में सेबी ने कंपनी से कहा है कि आईपीओ सब्सक्रिप्शन के तौर पर निवेशकों से जो रकम मिली है उसे वापस किया जाए.

सेबी Image Credit: TV9 Bharatvarsh

बाजार नियामक सेबी ने नोएडा स्थिति एसएमई कंपनी ट्रैफिकसोल के आईपीओ को रद्द कर दिया है. ट्रैफिकसोल को निवेशकों से बहुत अच्छी प्रतिक्रिया मिली थी. एमएमई कैटेगरी में मिनिमम इन्वेस्टमेंट की रकम 1 लाख रुपये से कम होने के बाद भी 354 गुना सब्सक्रिप्शन मिला था. 10 सितंबर को खुले इस आईपीओ का ग्रे मार्केट प्राइस 120 फीसदी प्रीमियम पर था. लेकिन सेबी ने इसकी लिस्टिंड को स्थगित कर दिया था.

सोमवार को कंपनी को इसका आईपीओ रद्द किए जाने के संबंध में जारी आदेश में सेबी ने 16 पन्ने के आदेश में कहा कि रिफंड की प्रक्रिया बीएसई की देखरेख में पूरी की जाएगी. इसके साथ ही कहा गया है कि आदेश जारी किए जाने के एक सप्ताह के भीतर यह रकम निवेशकों को रिफंड कर दी जाए. इसके बाद कंपनी के शेयरों को कंपनी के एक डीमैट खाते में जमा कर दिया जाएगा.

नोएडा स्थिति Trafiksol एडवांस टेक्नोलॉजी के जरिये ट्रैफिक मैनेजमेंट में दक्षता रखती है. सितंबर में बाजार से 44.8 करोड़ रुपये जुटाने के लिए SME कैटेगरी में आए Trafiksol के आईपीओ की 17 सितंबर को लिस्टिंग होनी थी. लेकिन, सेबी इसकी लिस्टिंग को रोक दिया. इसके बाद 11 अक्टूबर को सेबी ने एक सर्कुलर में बीएसई को आदेश दिया कि अगले आदेश तक लिस्टिंग नहीं होगी और निवेशकों से मिली रकम को एस्क्रो खाते में रखा जाए. इसके बाद अब आखिर में आईपीओ को रद्द कर दिया गया है.

किस मामले में हो रही थी जांच

11 अक्टूबर को जारी आदेश में सेबी ने कहा था कि 30 दिन भीतर इस मामले में जांच पूरी कर ली जाएगी. असल में सेबी की जांच आईपीओ से मिलने वाली रकम के इस्तेमाल को लेकर है. ट्रैफिकसोल ने डीआरएचपी मे बताया गया था कि कंपनी आईपीओ से मिलने वाली रकम में से 17.70 करोड़ रुपये एक तीसरे पक्ष के विक्रेता से सॉफ्टवेयर खरीदने के लिए करेगी. यह इंटीग्रेटेड सॉफ्टवेयर कंट्रोल सेंटर कंपनी के भावी व्यवसाय की रीढ़ होगा. इस मामले में सेबी और बीएसई को कुछ शिकायतें मिलींं, जिनके आधार पर जांच की गई.

जांच में क्या सामने आया

सेबी ने जांच में पाया कि तीसरे पक्ष के विक्रेता से जुड़े वित्तीय विवरणों पर आईपीओ खुलने से ठीक एक सप्ताह पहले हस्ताक्षर किए गए थे. इसके अतिरिक्त विक्रेता ने जनवरी 2024 में ही अपना माल और सेवा कर (जीएसटी) पंजीकरण प्राप्त किया था, और इसका व्यवसाय मुख्य रूप से सॉफ्टवेयर विकास के बजाय खुदरा व्यापार बताया गया था. इस तरह यह अब बेहद जल्दबाजी में किया गया लगता है. जबकि, कंपनी को ऐसे विक्रेता का चयन नीलामी की प्रक्रिया से करना चाहिए था.