छठे और 7वें वेतन आयोग में ऐसा क्या हुआ था जो फेरेगा 8th Pay Commission की उम्मीदों पर पानी
8th Pay Commission: केंद्र सरकार के कर्मचारी 8वें वेतन आयोग के गठन का इंतजार कर रहे हैं, जो उनकी सैलरी में बढ़ोतरी की उम्मीदें जगा रहा है. हालांकि, पिछले वेतन आयोगों के अनुभव से पता चलता है कि उम्मीदें हमेशा पूरी नहीं होतीं. 7वें वेतन आयोग और छठे वेतन आयोग में ऐसा क्या हुआ था जिससे 8वें वेतन आयोग की उम्मीदों पर पानी फिर सकता है?
8th Pay Commission: केंद्र सरकार के कर्मचारी 8वें वेतन आयोग के गठन का इंतजार कर रहे हैं. कितना फिटमेंट फैक्टर होगा और कितनी सैलरी बढ़ेगी इसका हिसाब-किताब आपने समझ लिया होगा और हर अटकलों के बारे में भी जान लिया होगा. लेकिन असल में 7वें वेतन आयोग और छठे वेतन आयोग से जो उम्मीद की गई थी नतीजे उसके उलट ही रहे थे. इसका मतलब वेतन आयोग से जो मांग की गई थी वह पूरी नहीं हो पाई थी. उस दौरान असल में क्या हुआ था चलिए ये जानते हैं…
क्या 8वें वेतन आयोग में सैलरी में 2.86 गुना बढ़ोतरी होगी?
हाल ही में कई मीडिया रिपोर्ट्स में ये दावा किया गया है कि 8वां वेतन आयोग केंद्रीय कर्मचारियों का न्यूनतम वेतन 2.86 के फिटमेंट फैक्टर से बढ़ा सकता है. हालांकि, ये केवल अटकलें हैं क्योंकि अभी तक 8वें वेतन आयोग का गठन ही नहीं हुआ है. इसके अलावा, जब इसका गठन होगा भी, तो भी इसे अपनी सिफारिशें देने में कम से कम एक साल या उससे ज्यादा का समय भी लग सकता है.
भविष्य में 8वां वेतन आयोग केंद्र सरकार के कर्मचारियों और पेंशनर्स के वेतन और भत्तों में संशोधन की सिफारिश करेगा, लेकिन पिछले वेतन आयोगों के अनुभव को देखते हुए, इस बार भी बहुत अधिक उम्मीदें रखना गलत साबित हो सकता है.
6वें और 7वें वेतन आयोग ऐसा क्या हुआ था?
दरअसल हुआ ये था कि 7वें वेतन आयोग ने कर्मचारियों की सभी मांगों को पूरी तरह स्वीकार नहीं किया था. सरकार और कर्मचारियों के बीच डायलॉग स्थापित करने वाली जॉइंट कंसल्टेटिव मशीनरी ने 7वें वेतन आयोग को वेतन संशोधन को लेकर एक ज्ञापन सौंपा था. उसमें न्यूनतम वेतन 7,000 रुपये से बढ़ाकर 26,000 रुपये करने की मांग की गई थी, जिसके लिए 3.7 के फिटमेंट फैक्टर की जरूरत थी. लेकिन हुआ इसका उलट:
7वें वेतन आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, “JCM-स्टाफ साइड ने अपने ज्ञापन में प्रस्ताव दिया था कि न्यूनतम वेतन की गणना असल में होने वाले खर्च और जरूरतों को ध्यान में रख कर की जानी. इसके लिए उन्होंने भारतीय श्रम सम्मेलन द्वारा निर्धारित मानकों का हवाला दिया. उनके अनुसार, न्यूनतम वेतन 26,000 रुपये होना चाहिए, जो उस समय के न्यूनतम वेतन 7,000 रुपये का लगभग 3.7 गुना था.”
लेकिन, 7वें वेतन आयोग ने इस मांग को पूरी तरह स्वीकार नहीं किया और न्यूनतम वेतन 18,000 रुपये निर्धारित की गई, जो कि 6वें वेतन आयोग के 7,000 रुपये से 157% अधिक थी.
7वें वेतन आयोग की रिपोर्ट में कहा गया, “हालांकि कुछ फर्क रहा लेकिन लगभग जरूरत और खर्चों के हिसाब से ही न्यूनतम वेतन की गणना की गई है. आयोग ने आयक्रॉयड फॉर्मूला के आधार पर, न्यूनतम वेतन की गणना करते हुए इसे 18,000 रुपये निर्धारित किया.”
6वें वेतन आयोग में भी पूरी मांग नहीं मानी गई
6वें वेतन आयोग के समय, कई सारे स्टाफ एसोसिएशनों ने न्यूनतम वेतन 10,000 रुपये प्रति माह करने की मांग की थी. उनका तर्क था कि “सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (PSUs) में न्यूनतम वेतन ₹10,000 के आसपास था, इसलिए केंद्र सरकार के कर्मचारियों को भी यही वेतन मिलना चाहिए.”
हालांकि, 6वें वेतन आयोग ने इस तर्क को स्वीकार नहीं किया और अपनी रिपोर्ट में कहा कि, “यह दावा कि सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में न्यूनतम वेतन ₹10,000 प्रति माह था और केंद्र सरकार के कर्मचारियों के लिए भी यही होना चाहिए, तथ्यात्मक रूप से सही नहीं है, क्योंकि 1 जनवरी 2006 तक अधिकांश सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में ऐसा न्यूनतम वेतन मौजूद नहीं था.”
आखिरकार, 6वें वेतन आयोग ने ₹7,000 के न्यूनतम वेतन की सिफारिश की.
तो 8वें वेतन आयोग से कितनी उम्मीदें रखें?
पिछले वेतन आयोगों के अनुभव को देखते हुए, 8वें वेतन आयोग से वेतन में भारी बढ़ोतरी की उम्मीद करना थोड़ा मुश्किल लग रहा है. फिलहाल, 8वें वेतन आयोग को लेकर कोई आधिकारिक घोषणा नहीं हुई है. इसलिए, वेतन में 2.86 गुना बढ़ोतरी की अटकलें अफवाहें साबित हो सकती हैं. अगर सरकार 8वें वेतन आयोग का गठन करती है, तो भी इसे अंतिम सिफारिशें देने में लंबा समय लगेगा.