आ गया नया इनकम टैक्स बिल, जानें अब ओल्ड और न्यू रिजीम में कहां-कहां बचेगा पैसा; ये हैं वो 17 तरीके
New Income Tax Bill संसद में पेश होने जा रहा है. हालांकि टैक्स दरें वही रहेंगी. नई टैक्स व्यवस्था में कम टैक्स देनदारी होती है, लेकिन इसमें टैक्स बचाने के तरीके कम हो गए हैं. हालांकि ये पूरी तरह से सही नहीं है. यहां जानें कैसे और पुरानी टैक्स व्यवस्था में क्या-क्या ऑप्शन, सब एक जगह पर मिलेगा...

Income Tax Regime: वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण आज यानी 13 फरवरी को नया इनकम टैक्स बिल पेश करने वाली है, ये बिल मौजूदा इनकम टैक्स एक्ट 1961 को सरल और आसान बनाएगा. इससे पहले कयास लगाए जा रहे थे कि पुरानी रिजीम को खत्म किया जा सकता है लेकिन इस नए बिल में किसी बड़े बदलाव की संभावना नहीं है. ऐसे में पुरानी रिजीम अपनी जगह रहेगी. तो नई और पुरानी रिजीम में कैसे बचाया जा सकता है टैक्स, यहां समझें आसान भाषा में…
नई टैक्स रिजीम
नई टैक्स रिजीम में टैक्स देनदारी काफी कम हो जाती है इसलिए इसमें टैक्स बचाने के तरीके बहुत ही ज्यादा कम हो गए हैं. लेकिन भले ही पुरानी टैक्स रिजीम में मिलने वाले ज्यादातर डिडक्शन और अलाउंस खत्म कर दिए गए हैं, फिर भी कुछ खास छूट और कटौतियां अभी भी बची हुई हैं.
NPS और EPF
अगर आपके नियोक्ता (एम्प्लॉयर) आपकी सैलरी से NPS और EPF में योगदान करते हैं, तो यह अभी भी टैक्स-फ्री रहेगा.
NPS: अगर सरकारी या प्राइवेट कंपनी का कर्मचारी आपकी बेसिक सैलरी और डीए का 14% NPS में जमा करता है, तो इस पर कोई टैक्स नहीं लगेगा.
EPF: एम्प्लॉयर आपकी बेसिक सैलरी और डीए का 12% EPF में जमा करता है, जो टैक्स-फ्री रहेगा.
कुल मिलाकर, EPF और NPS में एम्प्लॉयर का योगदान मिलाकर ₹7.5 लाख सालाना तक टैक्स-फ्री होगा.
उदाहरण के लिए मान लीजिए कि आपकी बेसिक सैलरी और डीए 1 लाख हर महीने बनता है और आपका एम्प्लॉयर इसमें से 14,000 (14%) NPS में जमा करता है, तो यह पूरी राशि टैक्स-फ्री होगी.
किराए पर दी गई प्रॉपर्टी पर होम लोन!
अगर आपने कोई प्रॉपर्टी किराए पर देने के लिए खरीदी है और उस पर होम लोन लिया है, तो उसके ब्याज का पूरा खर्च टैक्स से बचाने के लिए क्लेम किया जा सकता है.
जितना भी ब्याज आप किराए पर दी गई प्रॉपर्टी के होम लोन पर चुका रहे हैं, उसे किराए की कमाई में से घटाया जा सकता है. लेकिन अगर होम लोन का ब्याज आपकी किराए की इनकम से ज्यादा हो जाता है, तो उस अतिरिक्त नुकसान को सैलरी या बिजनेस इनकम से एडजस्ट नहीं किया जा सकता और न ही इसे आगे के सालों में ले जाया जा सकता है (कैरी फॉर्वर्ड नहीं किया जा सकता).
उदाहरण के लिए मानें कि अगर आप सालाना 3 लाख का होम लोन ब्याज चुका रहे हैं और किराए से 5 लाख कमा रहे हैं, तो 3 लाख की कटौती क्लेम की जा सकती है. इस स्थिति में, केवल 2 लाख पर टैक्स लगेगा.
रिटायरमेंट या रिजाइन पर लीव एनकैशमेंट और ग्रेच्युटी टैक्स-फ्री
अगर नौकरी छोड़ते समय आपके पास छुट्टियां बची हुई हैं और आप उन्हें कैश में लेते हैं, तो इस पर कुछ सीमा तक टैक्स नहीं लगता.
- सरकारी कर्मचारियों के लिए: लीव एनकैशमेंट पूरी तरह टैक्स-फ्री है
- प्राइवेट कर्मचारियों के लिए: 25 लाख तक की लीव एनकैशमेंट टैक्स-फ्री है
- ग्रेच्युटी: अगर आपने 5 साल या उससे ज्यादा नौकरी की है, तो आपको मिलने वाली ग्रेच्युटी 20 लाख तक टैक्स-फ्री होगी
उदाहरण के लिए अगर आपको रिजाइन या रिटायरमेंट पर 15 लाख ग्रेच्युटी मिलती है, तो इस पर कोई टैक्स नहीं लगेगा.
सभी कर्मचारियों के लिए 75,000 का स्टैंडर्ड डिडक्शन
नए टैक्स सिस्टम में हर सैलरी पाने वाले और पेंशनर्स को 75,000 का स्टैंडर्ड डिडक्शन मिलेगा. इसके लिए कोई निवेश करने या कोई सबूत देने की जरूरत नहीं होगी. यह ऑटोमैटिकली आपकी टैक्सेबल इनकम में से घटा दिया जाएगा.
उदाहरण के लिए अगर आपकी टैक्सेबल सैलरी 15 लाख है, तो 75,000 घटाकर इसे 14.25 लाख मानकर टैक्स कैलकुलेट किया जाएगा.
गिफ्ट टैक्स-फ्री
नए टैक्स सिस्टम में सभी गिफ्ट्स पर टैक्स नहीं लगता, कुछ गिफ्ट्स पूरी तरह टैक्स-फ्री हैं.
- माता-पिता, जीवनसाथी, भाई-बहन और बच्चों से मिलने वाले गिफ्ट्स किसी भी राशि तक टैक्स-फ्री हैं.
- गैर-रिश्तेदारों से सालाना 50,000 तक का गिफ्ट टैक्स-फ्री होता है, इससे ज्यादा मिलने पर टैक्स देना होगा.
- शादी के गिफ्ट्स पूरी तरह टैक्स-फ्री होते हैं, चाहे वह किसी से भी मिले और कितनी भी राशि हो.
उदाहरण के लिए अगर कोई दोस्त आपको 75,000 का गिफ्ट देता है, तो 50,000 टैक्स-फ्री होगा और 25,000 पर टैक्स लगेगा. लेकिन अगर यह गिफ्ट शादी में मिला है, तो पूरी राशि टैक्स-फ्री होगी.
पुराने टैक्स सिस्टम में क्या हैं फायदे?
अगर आप अपनी इनकम और इन्वेस्टमेंट्स को सही तरीके से प्लान करते हैं, तो पुराने टैक्स सिस्टम में कई तरह से टैक्स बचा सकते हैं.
सेक्शन 80C के तहत टैक्स सेविंग: पुराने टैक्स सिस्टम में सेक्शन 80C के तहत 1.5 लाख तक के निवेश पर टैक्स छूट मिलती है.
EPF: कर्मचारी का योगदान 80C के तहत कटता है, जबकि नियोक्ता का योगदान टैक्स-फ्री होता है.
PPF: 7.1% ब्याज के साथ एक सुरक्षित निवेश विकल्प, जिसकी मैच्योरिटी पर कोई टैक्स नहीं लगता.
सुकन्या समृद्धि योजना (SSY): बेटियों के लिए 8.2% ब्याज वाला बचत प्लान, जिसमें टैक्स-फ्री रिटर्न मिलता है.
सीनियर सिटीजन सेविंग स्कीम (SCSS): 60+ उम्र के लोगों के लिए 8.2% ब्याज वाली टैक्स-सेविंग स्कीम.
ELSS म्यूचुअल फंड: टैक्स बचाने और वेल्थ बढ़ाने के लिए 3 साल की लॉक-इन अवधि के साथ इक्विटी बेस्ड म्यूचुअल फंड.
टैक्स-सेविंग फिक्स्ड डिपॉजिट: 5 साल की लॉक-इन अवधि के साथ एफडी, जिसमें निवेश की गई राशि पर छूट मिलती है.
होम लोन का प्रिंसिपल अमाउंट: अगर आपने घर खरीदा है, तो होम लोन का मूलधन 80C के तहत कटता है.
होम लोन के ब्याज पर छूट
अगर आप खुद के रहने के लिए घर खरीद रहे हैं, तो होम लोन के ब्याज पर सेक्शन 24b के तहत 2 लाख तक की छूट क्लेम कर सकते हैं. अगर घर किराए पर दिया गया है, तो पूरा ब्याज घटाया जा सकता है.
एजुकेशन लोन के ब्याज पर छूट
अगर आपने खुद, जीवनसाथी, बच्चों या लीगल वार्ड के लिए एजुकेशन लोन लिया है, तो उसके ब्याज पर सेक्शन 80E के तहत पूरी तरह टैक्स छूट मिलती है (8 साल तक).
बीमा प्रीमियम पर टैक्स छूट
- स्वास्थ्य बीमा: खुद, जीवनसाथी और बच्चों के लिए 25,000 (सीनियर सिटीजन के लिए ₹50,000) तक 80D के तहत टैक्स छूट. माता-पिता के लिए बीमा: 50,000 तक की अतिरिक्त छूट.
दान देने पर टैक्स छूट
सेक्शन 80G के तहत प्रधानमंत्री राहत कोष और राष्ट्रीय आपदा राहत कोष में दिए गए दान पर 100% टैक्स छूट मिलती है.
किराए पर रहने वालों के लिए HRA छूट
अगर आप किराए पर रहते हैं, तो आपकी सैलरी में मिलने वाला HRA टैक्स-फ्री हो सकता है, लेकिन कुछ शर्तों के साथ.
पुराना टैक्स सिस्टम उन लोगों के लिए बेहतर हो सकता है, जो ज्यादा बचत और निवेश करते हैं जबकि नया टैक्स सिस्टम उन लोगों के लिए फायदेमंद है, जो टैक्स सेविंग निवेश नहीं करना चाहते.
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