Ratan Tata Will: खुल गया राज, नौकर, दोस्त, रिश्तेदार सब हैरान! जिंदगी भर याद रखेंगे टाटा का ये काम
Ratan Tata Will के बारे में हर कोई जानने को आतुर है. अब इस राज से पर्दा उठ चुका है. टाटा ने अपनी वसीयत में किसे क्या दिया है, यह सबको पता चल गया है. हालांकि, एक ऐसा दिलचस्प राज अब खुला है, जिससे वे लोग खासतौर पर हैरान हैं, जिनके नाम वसीयत में शामिल हैं. टाटा के नौकर, दोस्त और रिश्तेदार उनका ये काम जिंदगी भर याद रखेंगे. असल में यह आम लोगों के लिए भी सीख है. जानते हैं टाटा ने जाते-जाते ऐसा क्या किया?

इतिहास गवाह है कि साम्राज्य जितना बड़ा हो, उत्तराधिकार का युद्ध भी उतना ही भीषण होता है. अतीत के पन्नों में हजारों साल पीछे झांकें, या चाहे मॉडर्न इरा के कॉर्पोरेट सक्सेसन के संघर्ष देख लें. दौलत और सत्ता का बंटवारा परिवारों के बीच संघर्ष की जड़ रहा है. कई बार तो वसीयत में सबकुछ साफ-साफ लिखे जाने के बाद भी संघर्ष होता है. लेकिन, इस तरह के पारिवारिक झगड़े से बचने के लिए Ratan Tata Will में ‘No-Contest Clause’ डालकर गए हैं. जानते हैं, यह नो-कॉन्टेस्ट क्लॉज क्या होता है और क्या यह पारिवारिक सदस्यों या कानूनी उत्तराधिकारियों के बीच विवादों से बचने का एक अचूक तरीका है?
क्या है नो-कॉन्टेस्ट क्लॉज?
नो-कॉन्टेस्ट क्लॉज को लीगल टर्मिनोलॉजी में ‘इन-टेरोरम’ क्लॉज भी कहा जाता है. लैटिन भाषा के इस शब्द का शाब्दिक अर्थ होता है ‘डर में’. हालांकि, कानूनी तौर पर इसका मतलब होता है कि वसीयतनामा या ट्रस्ट डीड का कोई भी लाभार्थी अगर वसीयत को अदालत में चुनौती देता है, तो वह अपनी पूरी विरासत खो देगा. यानी वसीयत में उसके नाम जो भी है, उसे वह कुछ भी नहीं मिलेगा. या फिर उसे वसीयत करने वाले इच्छा को चुनौती देने के लिए वसीयत का केवल एक हिस्सा मिलेगा.
क्यों किया जाता है इस्तेमाल?
लीगल एक्सपर्ट्स का कहना है कि वसीयत में इस क्लॉज का इस्तेमाल तुच्छ या लंबे समय तक चलने वाले विवादों को रोकना है. इसके साथ ही इससे यह भी तय होता है कि वसीयतकर्ता की इच्छाओं को सुचारू रूप से क्रियान्वित किया जाए. मोटे तौर पर यह विरासत का बंटवारा बिना मुकदमेबाजी के वसीयत लिखने वाले की इच्छा के मुताबिक करने का प्रभावी तरीका है.
बिना दांत वाला शेर
लीगल एक्सपर्ट्स का यह भी कहना है कि असल में यह प्रावधान ‘बिना दांत का शेर’ है. क्योंकि, यह कानूनी तौर पर बाध्यकारी नहीं है. यह किसी भी चुनौती देने वाले को हतोत्साहित करता है. लेकिन, चुनौती देने वाला अगर वसीयत को पलटने में कामयाब हो जाए, तो नो-कॉन्टेस्ट क्लॉज सहित पूरी वसीयत रद्द कर हो सकती है.
वसीयत कानूनों में मान्यता नहीं
इस प्रावधान को भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925, हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 और भारतीय ट्रस्ट अधिनियम, 1882 में मान्यता नहीं दी गई है. इसका उपयोग सिर्फ एहतियाती के तौर पर किया जाता है. यह पूरी तरह अदालत और इसे चुनौती देने वाले की दलीलों पर निर्भर करता है कि इस प्रावधान को माना जाए या नहीं.
क्या कोई भी कर सकता है इस्तेमाल?
नो-कॉन्टेस्ट क्लॉज वसीयत और विरासत से जुड़े सभी विवादों को रोक नहीं सकता है. हालांकि, अगर कानूनी मानकों का पालन करते हुए सावधानीपूर्वक तैयार की गई वसीयत में अगर इसका इस्तेमाल किया जाए, तो यह गैर-जरूरी मुकदमेबाजी से बचने के लिए आधार देता है. कोई भी व्यक्ति अपनी वसीयत बनाते समय इस प्रावधान का इस्तेमाल कर सकता है. इसके अलावा अदालत आमतौर पर इस प्रावधान का तभी सम्मान करती हैं, जब कोई वैकल्पिक लाभार्थी वसीयत में नामित किया गया होता है. अगर कोई इस प्रावधान को सिर्फ एक चेतावनी या धमकी की तरह इस्तेमाल करता है, तो आमतौर पर अदालत इस पर गौर नहीं करती हैं.
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