EMI चुकाने पर भी नहीं घट रहा प्रिंसिपल अमाउंट? कहीं नेगेटिव अमोर्टाइजेशन के शिकार तो नहीं, जानें कैसे बचें

अगर आपने पर्सनल लोन या होम लोन ले रखा है और लगातार EMI चुकाने के बाद भी प्रिंसिपल अमाउंट नहीं घट रहा है, तो आप नेगेटिव अमोर्टाइजेशन के शिकार हो सकते हैं. यहां जानिए इससे कैसे बचा जाए.

होम लोन की प्रतीकात्मक तस्वीर Image Credit: FreePik

लोन और EMI आम आदमी के जीवन का हिस्सा हैं. ज्यादातर मध्यमवर्गीय परिवारों में घर, गाडी जैसी तमाम सुविधाएं कर्ज के जरिये ही जुटाई जाती हैं. कर्ज लेते समय हम जितनी सावधानी बरतते हैं, उतनी सावधानी उसे चुकाते समय नहीं रख पाते हैं. कई बार EMI बाउंस हो जाती है या फिर जब कभी ब्याज दर घटती-बढ़ती हैं, तो जरूरी कदम नहीं उठा पाते हैं. अगर ब्याज दर बढ़ती हैं और लोन की EMI नहीं बढ़ाते हैं, तो इससे नेगेटिव अमोर्टाइजेशन के शिकार हो सकते हैं.

क्या है नेगेटिव अमोर्टाइजेशन

नेगेटिव अमॉर्टाइजेशन का मतलब है, जब कर्ज पर किए जाने वाला भुगतान ब्याज से कम होता है, तो बची हुई रकम को मूल धन यानी प्रिंसिपल अमाउंट में जोड़ दिया जाता है. मसलन, अगर आपने पर्सनल लोन या होम लोन ले रखा है और लगातार EMI चुका रहे हैं, लेकिन इसके बाद भी प्रिंसिपल अमाउंट नहीं घट रहा है, तो आपका लोन नेगेटिवली अमोर्टाइज हो रहा है. इसका मतलब है कि आपने जिस ब्याज दर पर लोन लिया था, उस दर की तुलना में ब्याज बढ़ गया, लेकिन उस अनुपात में आपकी EMI नहीं बढ़ी. ब्याज दर बढ़ने से जो अतिरिक्त रकम आपको चुकानी है, बैंक उस रकम की वसूली आपके प्रिंसिपल अमाउंट को बढ़ाकर करती है.

क्या है इससे बचने का उपाय

नेगेटिव अमोर्टाइजेशन से बचने के दो तरीके हो सकते हैं. पहला तरीका है कि आप ब्याज दर बढ़ने पर अपनी EMI बढ़ाएं. दूसरा तरीका है लंपसम पेमेंट किया जाए. यानी ब्याज दर बढ़ने से जितनी कुल रकम बढ़ी है उसका एक साथ भुगतान कर दिया जाए और EMI जितनी थी उतनी बरकरार रखी जाए. इसके अलावा एक तीसरा तरीका भी है. आप चाहें, तो अपने लोन की EMI फिक्स रेट पर स्विच कर सकते हैं. अगर आप फिक्स रेट पर स्विच करते हैं, तो इससे ब्याज दर बदलने का असर आपकी EMI पर नहीं होगा.

क्या महंगा होता है फिक्स रेट लोन

इसका सीध जवाब हां या न में नहीं हो सकता है. यह कई फैक्टर पर निर्भर करता है. मसलन, लोन का टेन्योर कितना है, जब आपने लोन लिया तब ब्याज दर कितनी थी और अब ब्याज दर कितनी है. HDFC और ICICI बैंक की वेबसाइट पर दी गई जानकारी के मुताबिक किसी एक ही समय पर अगर आप फिक्स या फ्लोटिंग लोन में से किसी एक को चुनते हैं, तो फिक्स रेट वाला लोन 1.5 से 2 फीसदी ज्यादा ब्याज दर पर मिलता है. लेकिन, यह सूरत में काफी सस्ता पड़ सकता है, जब महंगाई के साथ-साथ ब्याज दर लगातार बढ़ती हैं.

लोन लेते समय दी जाती है यह जानकारी

रिजर्व बैंक के FAQ के मुताबिक लोन मंजूर किए जाते समय वार्षिक ब्याज दर (ARI) और वार्षिक प्रतिशत दर (APR) के साथ ही मुख्य तथ्य विवरण (KFS) के बारे में मौखित तौर पर बताने के साथ लोन एग्रीमेंट इनकी जानकारी देना जरूरी है. एफएक्यू में यह भी बताया गया हैक कि बैंकों और अन्य विनियमित संस्थाओं (आरई) को लोन लेने वाले के साथ कब और कितनी बार इस संबंध में बात करनी चाहिए.

बैंक करते हैं आनाकानी

अक्सर ऐसी शिकायतें मिलती हैं, जब बैंक की तरफ से फिक्स रेट पर लोन देने में आनकानी की जाती है. अक्सर बैंक कर्मचारियों की तरफ से यह समझाया जाता है कि फिक्स रेट लोन महंगा होता है. कई बार ऐसा भी होता है कि बैंक कर्मचारी कह देते हैं कि बैंक फिक्स रेट पर लोन नहीं देते हैं.

क्या है RBI का नियम

रिजर्व बैंक ने अगस्त 2023 में सभी बैंकों को साफ तौर पर यह निर्देश दिया था कि किसी भी पर्सनल कैटेगरी का लोन, जिसका भुगतान EMI के तौर पर होना है, उसके लिए फ्लोटिंग के साथ ही फिक्स रेट का विकल्प भी ग्राहक को दिया जाए. रिजर्व बैंक की वेबसाइट पर फ्लोटिंग रेट पर लोन की EMI और टेन्योर रीसैट करने संबंधी बार-बार पूछे जाने वाले सवालों के जवाब में यह भी बताया गया है कि बैंकों के लिए फिक्स रेट लोन प्रोडक्ट ऑफर करना अनिवार्य है. यह ग्राहक की मर्जी है वह कौनसा प्रोडक्ट चुने.

बैंक के लिए जरूरी है यह बताना

लोन की अवधि के दौरान बाहरी बेंचमार्क दर के कारण अगर EMI की दर या अवधि में कोई बदलाव होता है, तो बैंक को इसके बारे में ग्राहक को अनिवार्य रूप से सूचित करना होगा. इसके साथ ही तिमाही विवरण भी ग्राहक को दिया जाना चाहिए, जिसमें कुल वसूला गया मूलधन और ब्याज, EMI राशि, शेष EMI की संख्या और लोन की अवधि के लिए वार्षिक ब्याज दर का खुलासा किया जाना चाहिए.

फ्लोटिंग से फिक्स रेट पर स्विच का विकल्प

बार-बार पूछे जाने वाले सवाल (FAQ) में यह भी बताया गया है कि सभी विनियमित संस्थाओं (आरई) को सभी EMI बेस्ड पर्सनल लोन पर अनिवार्य रूप से फिक्स ब्याज दर के प्रोडक्ट उपलब्ध कराने के साथ ही के बोर्ड से अप्रूव नीति के मुताबिक फिक्स रेट पर स्विच करने का विकल्प भी देना होगा.

ग्राहकों की सुविधा के लिए जरूरी

अगस्त 2023 में भारतीय रिजर्व बैंक ने बैंकों को यह निर्देश दिया था कि वे ईएमआई के जरिये कर्ज का भुगतान करने वाले पर्सनल बॉरोअर्स को फिक्स इंट्रेस्ट या लोन की अवधि के विस्तार का विकल्प चुनने की सुविधा दें. इस कदम का मकसद बढ़ती ब्याज दर के बीच कर्ज लेने वालों को नेगेटिव अमोर्टाइजेशन के जाल में फंसने से बचाना है.

नेगेटिव अमोर्टाइजेशन से बचाव का जरिय

कोविड महामारी से उबरने के बाद रूस-यूक्रेन युद्ध के शुरू हो गया. इसके चलते महंगाई को नियंत्रित करने के लिए रिजर्व बैंक ने रेपो रेट बढ़ाना शुरू कर दिया. मई 2022 के बाद रेपो दर में 250 आधार अंकों की वृद्धि हुई है. इसकी वजह से बड़ी संख्या में पर्सनल बॉरोअर्स को नेगेटिव अमोर्टाइजेशन का सामना करना पड़ा है, इसमें EMI का बोझ तो नहीं बढ़ता है, लेकिन प्रिंसिपल अमाउंट बढ़ जाता है. इस समस्या से बचाने के लिए ही रिजर्व बैंक ने फिक्स रेट का विकल्प देने को अनिवार्य बनाया था.