शेयरों के बदले आसानी से मिलेगा लोन, ब्याज भी चुकाना होगा कम
लोन के लिए अब बैंकों के चक्कर खाने की जरूरत नहीं है. अगर आप शेयर मार्केट में निवेश करते हैं और आपके पास लिस्टेड कंपनी की इक्विटी है तब आपको शेयरों के बदले लोन दिया जा सकता है. लोन के बदले आपको अपने शेयरों को गिरवी रखना पड़ेगा.
वित्तीय लोन के लिए अब बैंक के चक्कर काटने की जरूरत नहीं है. अगर आप शेयर मार्केट में निवेश करते हैं और आपके पास लिस्टेड कंपनी की इक्विटी है तब आपको आसानी से लोन मिल सकता है. सिक्योर्ड लोन लेने का यह है अच्छा विकल्प है. लोन के बदले आप अपने शेयरों को गिरवी रखते हैं.
क्या है लोन अगेंस्ट शेयर (एलएएस)?
एलएएस के जरिये निवेशक अपनी निजी या बिजनेस से जुड़े जरूरत को पूरा करने के लिए अपने खरीदे गए शेयर के बदले लोन ले सकता है. लोन लेने के लिए निवेशक के शेयर को कोलैटरल के रूप में इस्तेमाल किया जाता है. बैंक के साथ ही नॉन-बैंकिंग फाइनेंशियल कंपनी (एनबीएफसी) भी एलएएस के जरिये आपको कर्ज दे सकती हैं. आपको बता दें कि लोन की राशि आपके पास मौजूद शेयर के 50 फीसदी बाजार मूल्य पर ही मिलेगी. इस बीच लोन लेने वाले शख्स को उसके खरीदे गए शेयर और उसपर मिलने वाले रिटर्न पर पूरी तरह से स्वामित्व होगा.
कौन उठा सकता है इसका फायदा?
लोन लेने वाले शख्स के पास किसी लिस्टेड कंपनी का शेयर होना जरूरी है. वहीं कुछ इंस्टीट्यूशंस में सिक्योरिटी के नाम पर म्यूचुअल फंड और बांड की सुविधा भी दी जाती है. उन पर भी शेयर को गिरवी रख कर लोन लिया जा सकता है.
किन दस्तावेजों की होगी जरूरत?
शेयर के बदले लोन आपको बैंक या एनबीएफसी के जरिये ले सकते हैं. इसके लिए इंस्टिट्यूशन आपसे केवाईसी डॉक्यूमेंट (आधार कार्ड, पैन कार्ड) मांग सकते हैं. इससे इतर आपके खरीदे गए शेयर पर आपके स्वामित्व की प्रूफ जैसे डीमैट अकाउंट का स्टेटमेंट और इनकम प्रूफ के लिए बैंक स्टेटमेंट, सैलरी स्लिप, आईटी रिटर्न मांगी जा सकती है.
क्या होंगे एलएएस के फायदे?
एलएएस के जरिये मिलने वाले लोन का इंटरेस्ट रेट आमतौर पर लिए जाने वाले पर्सनल लोन के मुकाबले कम होता है. वहीं एलएएस की अवधि एक से तीन साल तक के बीच में वैरी कर सकती है. लेकिन आमतौर पर लेंडर्स लोन के री-पेमेंट को लेकर कर्जदार को काफी विकल्प देते हैं. इसके अलावा कुछ बातों का ध्यान भा रखना होगा. आपने जिस शेयर के बदले लोन उठाया है अगर उसकी मार्केट वैल्यू लगातार घट रही है ऐसी स्थिति में कर्जदार से अधिक कोलैटरल की मांग की जा सकती है.