दिल्ली से मुंबई तक सभी शहरों में घरों की किल्लत, एक्सपर्ट्स ने भारत में हाउसिंग क्राइसिस के बारे में चेताया

भारत के नौ बड़े शहरों में किफायती और मिड-सेगमेंट घरों की सप्लाई में भारी गिरावट देखी गई है. जानकारों का कहना है कि अगर इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो देश में एक गंभीर हाउसिंग क्राइसिस पैदा हो सकती है.

बिगड़ता हाउसिंग मार्केट! Image Credit: Freepik

देश के नौ प्रमुख शहरों में किफायती और मिड-इनकम घरों (1 करोड़ रुपये तक की कीमत वाले) की नई आपूर्ति में 2024 में 30 फीसदी की भारी गिरावट दर्ज की गई. रियल एस्टेट डेटा एनालिटिक्स फर्म PropEquity की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, यह संख्या घटकर 1,98,926 यूनिट रह गई, जबकि 2023 में यह 2,83,323 यूनिट थी.

रिपोर्ट के अनुसार, डेवलपर्स का ध्यान अब किफायती और मध्यम-आय वर्ग के घरों से हटकर लग्जरी हाउसिंग पर केंद्रित हो गया है. 2022 में इस कैटेगरी में 3,10,216 नई यूनिट्स लॉन्च हुई थीं, लेकिन अब यह संख्या लगातार गिर रही है. PropEquity के संस्थापक और सीईओ समीर जसूजा ने चेतावनी दी कि अगर सरकार ने समय रहते कदम नहीं उठाए तो भारत भी ऑस्ट्रेलिया और कनाडा जैसी हाउसिंग क्राइसिस का सामना कर सकता है.

बढ़ती आबादी और मांग के सामने आपूर्ति की कमी

पीटीआई के हवाले से समीर जसूजा ने कहा, भारत के प्रमुख टियर-1 शहरों में वर्तमान में 8 फीसदी जनसंख्या निवास करती है और अगले पांच वर्षों में यह संख्या तेजी से बढ़ेगी. उन्होंने अनुमान लगाया कि अगले पांच वर्षों में इन शहरों में 1.5 करोड़ नए घरों की जरूरत होगी.

मुख्य शहरों में गिरावट के आंकड़े

सरकार से समाधान की उम्मीद

रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि सरकार को डेवलपर्स के लिए प्रोत्साहन योजनाएं शुरू करनी चाहिए, जिससे इस सेगमेंट में नई आपूर्ति बढ़े. साथ ही, होम-बायर्स को अतिरिक्त लाभ देकर मांग को बढ़ावा दिया जाना चाहिए. उनका कहना है कि अगर उचित नीतियां लागू नहीं की गईं तो आने वाले वर्षों में बड़े शहरों में घर खरीदना और मुश्किल हो सकता है.