घर की सिक्योरिटी या फ्लेक्सिबल किराया, जानें क्या है आपके लिए सही

घर खरीदना या किराए पर रहना, दोनों के अपने फायदे और नुकसान हैं. जहां किराया आपको फ्लेक्सिबिलिटी देता है, वहीं घर खरीदने से लंबे समय तक सुरक्षा और संपत्ति में बढ़त का फायदा मिलता है.

घर की सिक्योरिटी या फ्लेक्सिबल किराया, जानें क्या है आपके लिए सही Image Credit:

नौकरी करने की शुरुआत से ही व्यक्ति के मन में अपना घर खरीदने का ख्याल एक बार जरूर आता है. सालों तक रेंट के मकान में रहने के बावजूद उसे अपना घर न कह पाने की कसक अधिकांश लोगों में होती है. लेकिन दिन प्रतिदिन जमीनों के आसमान छूते दाम और घर के बढ़ते किराये इस असमंजस में डाल देते हैं कि घर खरीदना बेहतर या फिर किराये के मकान में रहना समझदारी. यह बहस पुरानी है.

किराए पर घर लेने से आपको घूमने-फिरने, करियर के अवसर तलाशने और दूसरे कामों में निवेश करने की आजादी मिलती है. दूसरी ओर, घर खरीदने से आपको लंबे समय तक सुरक्षा, स्वामित्व की भावना और इक्विटी मिलती है. किराये के मकान में रहना या फिर घर खरीदने का फैसला हर किसी के लिए एक नहीं हो सकता. आपको अपने जीवनशैली और जेब के वजन जैसे तमाम कारकों को ध्यान में रखते हुए अपना निर्णय लेना होगा.

किराये के मकान की लागत

किराए पर रहने से लचीलापन और कम शुरुआती लागत मिलती है, जो आज के तेजी से बदलते जॉब मार्केट में आदर्श है. उदाहरण के लिए, बेंगलुरु में एक युवा पेशेवर 80 लाख रुपये का घर खरीदने के बजाय व्हाइटफील्ड में 2BHK फैल्ट को 25,000 रुपये प्रति माह किराए पर ले सकता है. यह ऑप्शन उसे करियर में फ्लेक्सिबिलिटी देगा. उसके पास अपने पैसे को अलग जगह निवेश करने का ऑप्शन भी होगा.

किराये के मकान का मासिक खर्च आपके होम लोन के EMI से अमूमन कम होता है. मेट्रो सिटी में किराये का घर लेना युवाओं के लिए ज्यादा किफायती है क्योंकि यहां घर की कीमतें आग बरसती हैं. उदाहरण के लिए, मुंबई जैसे शहरों में, जहां घर की कीमत-से-किराए का अनुपात बहुत अधिक है, किराए पर रहना अक्सर बेहतर विकल्प होता है.

हालांकि किराये पर रहने के नुकसान भी है. रेंट हर साल 10 फीसदी बढ़ता है, ऐसे में बिना इक्विटी बनाए हर साल मोटी रकम रेंट में देना पैसा खर्च करने जैसा लगता है.

घर खरीदने के फायदे

घर खरीदने से जीवनभर के लिए वित्तीय सुरक्षा और एक ऐसी संपत्ति का स्वामित्व मिलता है जो आमतौर पर समय के साथ बढ़ता है. उदाहरण के लिए, पुणे में एक परिवार 60 लाख रुपये का अपार्टमेंट खरीद सकता है और इसके दाम में साल दर साल बढ़त देख सकता है. घर इक्विटी बनाता हैं.

हालांकि घर के सुख के साथ प्रॉपर्टी टैक्स, मेंटटेनेन्स चार्ज जैसी तमाम लागत साथ आती है. बावजूद इसके आपके लिए यह अच्छा लॉग टाइम इन्वेस्टमेंट ऑप्शन है. उदाहरण के लिए, गुड़गांव के प्रमुख क्षेत्रों में संपत्ति की कीमतें पिछले दस वर्षों में 150% से अधिक बढ़ी हैं. 2013 में 70 लाख रुपये में खरीदा गया एक अपार्टमेंट अब 1.75 करोड़ रुपये का हो सकता है. अब ऐसे इंवेस्टमेंट हर किसी के लिए बेहद लाभकारी होंगे. इसके अलावा अगर आप घर रेंट करेंगे तो आपकी डबल इनकम होगी. अव्वल, तो आपके जमीन की लागत बढ़ रही है दूसरा आप किराये का पैसा उठा रहे हैं.

दूसरी तरफ, घर खरीदने में बहुत ज्यादा लागत लगती है, जिसमें डाउन पेमेंट और मासिक EMI शामिल है जो अक्सर किराए के भुगतान से ज्यादा होती है. मान लिजीए, 50 लाख रुपये के डाउन पेमेंट के साथ 2.5 करोड़ रुपये की प्रॉपर्टी खरीदने पर 9% ब्याज दर पर हर महीने करीब 2.5 लाख रुपये की EMI देनी होगी. 10 वर्षों में यह भुगतान लगभग 3 करोड़ रुपये के बराबर होगा, लेकिन फायदे की बात यह है कि संपत्ति का मूल्य बढ़कर 4.6 करोड़ रुपये हो सकता है.

कीमत-से-किराए का अनुपात

अपना निर्णय लेने से पहले अपने चुने हुए क्षेत्र में कीमत-से-किराए के अनुपात (Price to Rent Ratio) की तुलना करना बेहद जरूरी है. 20 से ऊपर का अनुपात आम तौर पर किराए पर लेने का पक्षधर होता है, जबकि 15 से नीचे का अनुपात घर खरीदने के लिए ज्यादा किफायती है.

जो लोग कम से कम 5-7 साल तक एक ही स्थान पर रहने की उम्मीद करते हैं, उनके लिए खरीदना फायदेमंद हो सकता है. हैदराबाद में HITEC सिटी जैसे तकनीकी केंद्रों में, जहां पेशेवरों को काम के लिए जाने की आवश्यकता हो सकती है, किराए पर लेना अक्सर ज्यादा बेहतर विकल्प होता है