Trade War के बीच भी ‘हराभरा’ रहेगा पोर्टफोलियो, जानें क्या बिगाड़ और सुधार सकता है ट्रंप का टैरिफ?
एक निवेशक के तौर पर इस Trade War के दौर में पोर्टफोलिया को प्रॉफिटेबल बनाए रखना बड़ी चुनौती है. इससे निपटने के लिए Trump Tariff के असर को समझना जरूरी है. DSP Mutual Fund रिपोर्ट में बताया गया है कि ट्रंप के टैरिफ युद्ध से हालात कितने बिगड़ सकते हैं और इस दौर में पोर्टफोलियो को कैसे प्रॉफिटेबल बनाए रख सकते हैं?

DSP Mutual Fund की एक रिपोर्ट के मुताबिक Trump Tariff ऐसे समय में शुरू हुआ है, जब Global Economy पहले से ही मंद पड़ती दिख रही है. इससे पहले जब ट्रंप अमेरिका के राष्ट्रपति बने थे, तो मामला US-China Tariff War तक सीमित था. उस समय ग्लोबल इकोनॉमी रिकवरी फेज में थी, जिसकी वजह से टैरिफ वॉर का खास असर नहीं हुआ. लेकिन, मौजूदा स्थिति ग्लोबल इकोनॉमी डांवाडोल है. दुनिया कोविड और उसके बाद रूस-यूक्रेन फिर इजरायल और ईरान के बीच बढ़ते तनाव से उपजी स्थितियों से रिकवर नहीं कर पाई है. ऐसे में इस बार ट्रंप टैरिफ से वैश्विक मंदी की आहट आने लगी है. यहां DSP Mutual Fund की रिपोर्ट में पांच बातें बताई गई हैं. इन पर गौर कर निवेशक इस दौर से बचकर निकल सकते हैं.
टैरिफ वॉर को हल्के में न लें
अगर आप भी सोच रहे हैं कि टैरिफ वॉर एक छोटा सा व्यवधान है. कुछ समय के बाद हालात सामान्य हो जाएंगे. या फिर सोचते हैं कि चीन पर तो 104 फीसदी टैरिफ लगा है, भारत पर सिर्फ 26 फीसदी है. या भारत का अमेरिका को निर्यात तो बहुत कम है. हम कोविड से बचकर आ गए, यहां से भी आगे बढ़ जाएंगे. आपके ये तमाम खयाल सच हो सकते हैं. लेकिन, अगर यह कुछ महीनों तक भी जारी रहा, तो ग्लोबल इकोनॉमी पर इसका असर बहुत गहरा होगा. सबसे ज्यादा जरूरी, शेयर बाजार अच्छे की उम्मीद में महीनों तक नहीं रुकने वाले. लेकिन, अगर पेनिक होकर स्टॉक्स को बेचते हैं, तो जो नुकसान होगा व स्थाई हो सकता है.
इन्वेस्टर के तौर पर कैसे सोचें?
एक निवेशक के तौर पर इस स्थिति के तीन नतीजों के बारे में सोचना चाहिए. पहला, बेस्ट केस सिनैरियो क्या होगा, दूसरा बेस केस और तीसरा वर्स्ट केस में क्या होगा. बेस्ट केस में हो सकता है कि ट्रंप टैरिफ को रिवर्स कर दें और स्थिति 2 अप्रैल से पहले जैसी हो जाए. बेस केस, यानी जो होने की सबसे ज्यादा उम्मीद है, उसके हिसाब से देखा जाए, तो ट्रंप आने वाले दिनों में द्विपक्षीय कारोबारी चर्चा के जरिये इसका हल निकालेंगे. इस मामले में कई देश, कई सेक्टर और कंपनियां लूजर और विनर हो सकती हैं. इस दौरान शेयर बाजारों में वोलैटिलिटी बनी रहेगी. तीसरी स्थिति है वर्स्ट केस वाली, जहां दुनिया के तमाम देश चीन की तरह अमेरिका पर पलटवार करते हुए टैरिफ लगा दें. इस स्थिति में दुनिया की अर्थव्यवस्था के साथ ही भारत की अर्थव्यवस्था में भी मंदी आ सकती है.
क्या हो आपकी रणनीति
एक निवेशक के तौर सबसे पहले आपको अपने पोर्टफोलियाे के डायवर्सिफिकेशन पर ध्यान देना होगा. इसके अलावा अगर आप म्यूचुअल फंड्स में निवेश कर रहे हैं, तो अपने इन्वेस्टमेंट को हायब्रिड फंड्स पर केंद्रित रखें. खासतौर पर DAAF और MAAF कैटेगरी के फंड में निवेश करें. इसक अलावा टैरिफ और बाजार के फ्यूचर का अनुमान लगाते हुए निवेश करने से बचें. अगर इस बीच लार्ज-कैप में 10-15% की और गिरावट आती है, तो वे औसत मूल्यांकन पर पहुंच सकते हैं. ऐसे में क्वालिटी और वैल्युएशन को सम्मान दें. चूंकि निवेश करना कोई सटीक विज्ञान नहीं है, इसलिए डायवर्सिफिकेशन जरूरी है, लेकिन किसी भी मामले में जल्दबाजी नहीं की जानी चाहिए.
भावुक नहीं, धैर्यवान बनें
वोलैटिलिटी के इस दौर में भावुक होने से बचें. अपने लेन-देन की संख्या घटाएं. क्योंकि अत्यधिक सक्रियता दीर्घकालिक चक्रवृद्धि की दुश्मन होती है. सबसे अहम बात यह है कि ऐसी घटनाएं इक्विटी मार्केट में सौदेबाजी के अवसर पैदा करती हैं. निवेशक इन घटनाओं से लाभ उठा सकते हैं. लेकिन, यह तभी संभव है, जब आप भावुक होने के बजाय धैर्यवान निवेशक बनें.
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