इन 5 बड़ी वजहों से लाल रंग में गोते लगा भारतीय शेयर बाजार, सेंसेक्स 550 और निफ्टी 243 अंक टूटा

भारतीय शेयर बाजार आज गिरावट के साथ बंद हुआ. बेंचमार्क इंडेक्स सेंसेक्स में 550 अंक और निफ्टी में 243 अंक की गिरावट दर्ज की गई. इसके अलावा तमाम इंडेक्स भी लाल रंग में ही ट्रेड करते दिखे. बाजार में गिरावट के कई कारण हैं. इनमें से पांच कारण सबसे अहम हैं.

चीन और इजराइल के साथ ही घरेलू कारणों से भी निवेशक बाजार से भाग रहे हैं Image Credit: Wong Yu Liang/Moment/Getty Images

भारतीय शेयर बाजार के लिए अक्टूबर की शुरुआत लाल रंग में हुई और अब भी लगातार बाजार लाल रंग में गोते लगा रहा है. 1 से 7 अक्टूबर के बीच चार कारोबारी सत्र में सेंसेक्स 3161 अंक टूट चुका है. सोमवार को सेंसेक्स 0.67 की गिरावट के साथ 81,137.60 अंक पर बंद हुआ. इसी तरह निफ्टी में भी 0.97% की गिरावट आई है. निफ्टी 243.25 अंक की गिरावट के साथ 24,771.35 के स्तर पर बंद हुआ है.

बाजार की गिरावट के पीछे 5 बड़े कारण बताए जा रहे हैं. इनमें पहला कारण वैश्विक आर्थिक चिंताएं हैं. खासतौर पर पश्चिम एशिया में जारी तनाव के चलते तेल की कीमतें बढ़ने की आशंका से भारतीय बाजार प्रभावित हैं. इसके अलावा पिछले दिनों सेबी की तरफ से फ्यूचर एंड ऑप्शन के नियमों में बदलाव किया गया. इसकी वजह से भी निवेशकों में अनिश्चितता है. इसके अलावा घरेलू मोर्चे पर भी कई आर्थिक चुनौतियां देखने को मिली हैं. एक गिरावट का बड़ा कारण कॉरपोरेट आय में कमी के संकेत मिलना है. आखिर में भारतीय बाजार से विदेशी निवेशकों की बिकवाली करना भी बाजार पर दबाव बढ़ा रहा है.

क्या कहते हैं विशेषज्ञ

जियोजित फाइनेंशियल सर्विसेज के शोध प्रमुख विनोद नायर कहते हैं कि भारतीय बाजार के एशियाई बाजारों के मुकाबले खराब प्रदर्शन करने के पीछे इसका हाई रिस्क कंसोलिडेशन फेज में आना है. प्रीमियम वैल्यूएशन की वजह से बाजार में एक बड़ा करेक्शन हो रहा है. इसके अलावा वैश्विक गतिविधियों के चलते भी दबाव है. खासतौर पर विदेशी निवेशकों का चीनी बाजारों की तरफ आकर्षित होना और भारतीय बाजार के लिए प्रोत्साहन उपायों में कमी के कारण गिरावट का दौर चल रहा है. एफआईआई के रुख को देखकर बड़े निवेशक भी अपने पोर्टफोलियो का पुनर्मूल्यांकन कर रहे हैं. इस तरह भू-राजनीतिक तनाव, तेल की कीमत मे उछाल की आशंका, अल्पावधि में घरेलू अर्थव्यवस्था में स्लोडाउन, पॉलिसी लेवल पर अनिश्चिता और चीनी बाजार मिलकर भारतीय बाजार को नीचे की तरफ खींच रहे हैं.

वित्त मंत्रालय ने दी थी चेतावनी

वित्त मंत्रालय ने सितंबर में अपनी मासिक समीक्षा में इस बात की आशंका जताई थी कि भारतीय बाजार में बड़ा करेक्शन आ सकता है. इस करेक्शन की शुरुआत किसी ऐसे झटके से हो सकती है, जो भले ही सीधे तौर पर भारत से जुड़ा नही हो. मंत्रालय की यह चेतावनी सही साबित हो रही है. बाजार की गिरावट के पीछे दो बड़े वैश्विक कारण हैं. लेकिन, इन कारणों के लिए भारतीय बाजार पहले से ही नाजुक बना हुआ था.

1. भारतीय बाजार का उच्च मूल्यांकन

फिलहाल, निफ्टी अपनी एक साल की अग्रिम आय से 21.5 गुना पर कारोबार कर रहा है. यह इसके ऐतिहासिक औसत 20.4 गुना से भी ज्यादा है. इसके अलावा घरेलू मिडकैप और स्मॉलकैप सूचकांकों का मूल्यांकन निफ्टी-50 के मुकाबले 59 और 12 फीसदी प्रीमियम पर है. इसके विपरीत चीन का शंघाई कंपोजिट फिलहाल 10.8 गुना अग्रिम आय पर कारोबार कर रहा है, जो इसके 5 साल के औसत 11.7 गुना से कम है. इस तरह भारतीय बाजार निवेशकों के लिए बेहद महंगा हो चुका है. खासतौर पर जब सामने चीन के बाजार में करीब आधी कीमत पर प्रवेश का मौका सामने हो, तो निवेशक इस आकर्षण से बच नहीं सकते हैं.

एक्जिट पोल की नतीजे

बाजार के संकुचन के पीछे कई घरेलू कारण भी हैं. इनमें एक बड़ा कारण हरियाणा और जम्मू-कश्मीर के विधानसभा चुनावों के एक्जिट पोल के नतीजों को लेकर भी बाजार सकुचाया हुआ है. एक्जिट पोल्स के मुताबिक दोनों ही राज्यों भाजपा के लिए भारी नुकसान का अनुमान लगाया गया है. केंद्र में पहले से ही गठबंधन की सरकार चला रहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के लिए यह अच्छी खबर नहीं है. मोटे तौर पर फिलहाल बाजार केंद्र में मजबूत सरकार की भावना के पक्ष में है.

निवेशकों का विश्वास हो रहा प्रभावित

अगर एक्जिट पोल नतीजों में बदलते हैं, तो इससे पीएम मोदी और भाजपा की स्थिति गठबंधन में भी कमजोर होगी. इसके अलावा राज्यसभा में भी बहुमत के आंकड़ा इससे प्रभावित होगा. जब इस तरह के नतीजे आते हैं, तो निवेशकों में केंद्र के स्तर पर अस्थिरता पैदा होने का भय बढ़ता है, जो उन्हें प्रॉफिट बुकिंग या एक्जिट लेकर इंतजार करने की रणनीति अपनाने को मजबूर करते हैं. बहरहाल, भले ही केंद्र सरकार की स्थिरता को लेकर भले ही कोई स्पष्ट खतरा नहीं है. लेकिन, जब तक इन राज्यों में सरकार नहीं बन जाती है और देश के राजनीतिक परिदृश्य में थोड़ी स्थिरता नहीं आती है, निवेशकों के लिए यह एक संकोच का कारण बना रहेगा.

सितंबर तिमाही के नतीजे व अन्य आंकड़े

सितंबर में जहां महंगाई के आंकड़ों में हल्की वृद्धि दिखी. औद्योगिक उत्पादन घटाा, 8 कोर उद्योगों की सकल वृद्धि नकारात्मक रही. पीएमआई डाटा भी उत्साहजनक नहीं आया. इस तरह व्यापक तौर पर आंकड़े कॉरर्पोरेट आय में कमी और अर्थव्यवस्था की गति धीमी पड़ने के संकेत दे रहे हैं. सितंबर तिमाही के नतीजों को लेकर कोटक इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज ने अनुमान लगाया है कि बीएसई सेंसेक्स में शामिल 30 कंपनियों के लिए मौजूदा वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में शुद्ध लाभ में सालाना आधार पर 5.3 फीसदी और तिमाही आधार पर 2.7 फीसदी की वृद्धि ही होगी. इसी तरह निफ्टी में सालाना आधार पर 3.7 फीसदी और तिमाही आधार पर 2.5 फीसदी की वृद्धि होगी. पिछले वर्ष की तुलना में यह प्रदर्शन कमजोर होगा. इसके अलावा रिजर्व बैंक की तरफ से नीतिगत दरों में कमी को लेकर भी कोई मजबूत संकेत नहीं दिया है. इन सभी स्थितियों में निवेशक बाजार से पैसा निकाल रहे हैं.

तेल की कीमत बढ़ने की आशंका

पश्चमि एशिया में बढ़ते संघर्ष के चलते भारत में कच्चे तेल के दाम बढ़ने की आशंकाएं बढ़ रही हैं. इजराइल और ईरान के बीच जारी संघर्ष के चलते कच्चे तेल की कीमतों में बड़ा उछाल आ चुका है. 30 सितंबर को ईरान की तरफ से इजराइल पर किए गए हमले के बाद से ब्रेंट क्रूड के दाम में करीब 8 डॉलर प्रति बैरल का इजाफा हो चुका है. यह 70 डॉलर से बढ़कर 78 डॉलर पार कर चुका है.

भारत में महंगाई बढ़ने की चिंता

अगर यह संघर्ष लंबा खिंचता है और इसका दायरा बढ़ता है, तो जाहिर तौर पर भारतीय बास्केट में भी कच्चे तेल की कीमतों पर असर पड़ेगा. फिलहाल, भारतीय बास्केट में कच्चे तेल की कीमत फिलहाल 75 डॉलर प्रति बैरल के आसपास है और अक्टूबर मे इसके 78.3 डॉलर तक बने रहने की संभावना है. भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए कच्चा तेल बेहद संवेदनशील होता है. अगर कच्चे तेल की कीमत बढ़ती है. तो इससे भारतीय अर्थव्यवस्था में महंगाई बढ़ने का जोखिम बढ़ता है.

विदेशी निवेशकों की बिकवाली

पिछले एक महीने में चीन के बेंचमार्क इंडेक्स में 23 से 26 फीसदी का उछाल आ चुका है. मंगलवार से चीनी शेयरों का व्यापार फिर से शुरू होने वाला है. ऐसे में आशंका है भारतीय बाजार से विदेशी निवेशकों की बिकवाली और बढ़ेगी.