डॉलर की मजबूती और बॉन्ड यील्ड में उछाल, विदेशी निवेशकों ने निकाले ₹976 करोड़

विदेशी निवेशकों ने नवंबर में 21,612 करोड़ रुपये की निकासी की थी, जबकि अक्टूबर में 94,017 करोड़ रुपये की रिकॉर्ड मासिक निकासी हुई थी. वहीं दिसंबर का ट्रेंड अब भी पॉजिटिव ही है. एफपीआई ने इस महीने अब तक भारतीय शेयरों में 21,789 करोड़ रुपये का निवेश किया है...

विदेशी निवेशकों की निकासी जारी Image Credit: money9live.com

पिछले हफ्तों तक खरीदारी करने के बाद, इस हफ्ते विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों यानी FPIs ने भारतीय शेयर बाजार में बिकवाली की, जिससे कुल 976 करोड़ रुपये का नेट विड्रॉल हुआ. इस गिरावट के पीछे अमेरिकी डॉलर की मजबूती और अमेरिका में 10-साल के बॉन्ड यील्ड में लगातार बढ़ोतरी ने निवेशकों के सेंटीमेंट को प्रभावित किया है.

हफ्ते की शुरुआत में एफपीआई ने पॉजिटिव रुख अपनाते हुए 16 से 20 दिसंबर के पहले दो ट्रेडिंग दिनों में 3,126 करोड़ रुपये का निवेश किया. हालांकि, हफ्ते के दूसरे भाग में यह ट्रेंड उलट गया और एफपीआई ने अगले तीन सत्रों में 4,102 करोड़ रुपये से अधिक की बिकवाली की, जिससे हफ्ते का नेट आंकड़ा 976 करोड़ रुपये के घाटे में चला गया है. यह डेटा नेशनल सिक्योरिटीज डिपॉजिटरी लिमिटेड (NSDL) से मिला है.

हालांकि, दिसंबर का ट्रेंड अब भी पॉजिटिव ही है. एफपीआई ने इस महीने अब तक भारतीय शेयरों में 21,789 करोड़ रुपये का निवेश किया है, जो भारत की आर्थिक वृद्धि और बाजार की मजबूती में उनका भरोसा दर्शाता है.  

एफपीआई को लेकर क्यों है सतर्कता?

मॉर्निंगस्टार इन्वेस्टमेंट रिसर्च इंडिया के एसोसिएट डायरेक्टर हिमांशु श्रीवास्तव के अनुसार, एफपीआई ने अमेरिकी फेडरल रिजर्व की बैठक और इसके परिणामों को लेकर अनिश्चितता के चलते सतर्क रुख अपनाया है.  

हालांकि फेड ने इस साल तीसरी बार ब्याज दरों में 25 बेसिस पॉइंट की कटौती की, लेकिन आगे कम दरों की संभावना कम रहने का संकेत दिया, जिससे ग्लोबल मार्केट में बिकवाली शुरू हो गई और निवेशकों की धारणा प्रभावित हुई है.  

इसके अलावा, सितंबर तिमाही के कमजोर कॉर्पोरेट नतीजों, दिसंबर के लिए भी कमजोर प्रदर्शन की उम्मीद, बढ़ती महंगाई, धीमी जीडीपी ग्रोथ और रुपये के कमजोर होने जैसे कारकों ने भी एफपीआई की बिकवाली को बढ़ावा दिया है.  

डॉलर और बॉन्ड यील्ड का असर

जियोजीत फाइनेंशियल सर्विसेज के चीफ इन्वेस्टमेंट स्ट्रैटेजिस्ट वीके विजयकुमार ने कहा, “अमेरिकी डॉलर का मजबूती (डॉलर इंडेक्स 108 से ऊपर) और अमेरिका के 10-वर्षीय बॉन्ड यील्ड में 4.5 प्रतिशत की स्थिर बढ़ोतरी एफपीआई की बिकवाली के पीछे मुख्य कारण थे.”  
उन्होंने यह भी बताया कि भारत में धीमी विकास दर और फ्लैट कॉर्पोरेट रेवेन्यू ने भी निवेशकों के आत्मविश्वास को कम किया है.  

निवेश के अवसर  

एफपीआई की बिकवाली से बैंकिंग जैसे बड़े कैप सेगमेंट्स के मूल्य कम हुए हैं, जिससे निवेशकों के लिए ये सेगमेंट अधिक आकर्षक हो गए हैं. फार्मा, आईटी, और डिजिटल प्लेटफॉर्म कंपनियां इस मंदी में भी स्थिर रह सकती हैं.  

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पिछले महीनों का रुझान

नवंबर में एफपीआई ने 21,612 करोड़ रुपये की निकासी की थी, जबकि अक्टूबर में 94,017 करोड़ रुपये की रिकॉर्ड मासिक निकासी हुई थी. सितंबर ने नौ महीने का उच्च स्तर दर्ज किया था, जिसमें एफपीआई ने 57,724 करोड़ रुपये का नेट निवेश किया था.  

2024 में अब तक एफपीआई निवेश 6,770 करोड़ रुपये तक पहुंच चुका है.