सरकार ने बदले डिविडेंड, बोनस, शेयर बायबैक और स्टॉक स्प्लिट के नियम, शेयरधारकों को होगा ये फायदा
केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने सार्वजनिक कंपनियों के डिविडेंट, शेयर बायबैक और स्टॉक स्प्लिट संबंधी नियमों में बदलाव किए हैं. मंत्रालय ने सभी सरकारी कंपनियों को सलाह दी है कि वे अपने प्रॉफिट, खर्च और कैश फ्लो जैसे कारकों को ध्यान में रखकर ज्यादा डिविडेंट के भुगतान का प्रयास करें.
केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों (सीपीएसई) के लिए केंद्रीय वित्त मंत्रालय कैपिटल रीस्ट्रक्चरिंग के निर्देश जारी किए हैं. इनके तहत डिविडेंड, शेयर बायबैक, शेयर स्प्लिट और बोनस शेयर से संबंधित मानदंड में बदलाव किए गए हैं. नए निर्देशों के तहत यह तय किया गया है कि सरकारी कंपनियों को कितना मुनाफ होने पर कितना लाभांश देना होगा.
शेयरधारकों को मिलेगा फायदा
नए नियमों के तहत किसी भी सीपीएसई को अपनी PAT का न्यूनतम 30% या नेटवर्थ का 4 फीसदी का वार्षिक लाभांश देना होगा. एनबीएफसी जैसे वित्तीय क्षेत्र के सीपीएसई मौजूदा कानूनी प्रावधानों के तहत पीएटी का न्यूनतम 30 फीसदी वार्षिक लाभांश दे सकते हैं.
शेयर बायबैक के नियम
जिन कंपनियों के शेयर का बाजार मूल्य पिछले छह महीनों से लगातार बुक वैल्यू से कम है, और जिनकी नेटवर्थ कम से कम 3000 करोड़ रुपये है. ऐसी कंपनियां अपने शेयर के बायबैक पर विचार कर सकती हैं. इसके लिए यह भी ध्यान रखना होगा कि इन कंपनियों के पास 1500 करोड़ से अधिक नकदी और बैंक बैलेंस होना चाहिए.
बोनस शेयर में बदलाव
वे सभी सरकारी कंपनी बोनस शेयर जारी करने पर विचार कर सकती हैं, जिनका रिजर्व और कैपिटल सरप्लस पेड अप कैपिटल से 20 गुना ज्यादा हो.
स्टॉक स्प्लिट के नियम
सीपीएसई के बोर्ड को शेयर शेयर स्प्लिट करने पर चर्चा करनी होगी और जरूरत के मुताबिक फैसला लिया जा सकता है. इसके लिए पहले जारी किए गए सभी दिशा-निर्देशों को दरकिनार करते हुए शेयरों को विभाजित करने पर अलग-अलग मामले के आधार पर विचार किया जाएगा. हालांकि, अगर एक सूचीबद्ध सीपीएसई जहां बाजार मूल्य पिछले छह महीनों से लगातार अपने अंकित मूल्य से 150 गुना अधिक है, वह अपने शेयरों को विभाजित करने पर विचार कर सकता है. इसके अलावा, दो बार शेयर स्प्लिट के बीच तीन साल की कूलिंग ऑफ अवधि होनी चाहिए.