शेयर मार्केट की वो 4 गिरावट, जिन्होंने मिडिल क्लास को कर दिया था बर्बाद
ये पहली बार नहीं है, जब भारतीय शेयर मार्केट में इस तरह की खलबली मची है. पहले भी कई बार भारतीय बाजार गोते लगा चुका है और फिर वहां से रिकवर भी हुआ है. साल 1947, यानी आजादी के बाद भारतीय शेयर बाजार कब-कब क्रैश हुआ है… आइए जान लेते हैं.
भारतीय शेयर मार्केट इस समय भारी दबाव से गुजर रहा है. सेंसेक्स और निफ्टी दोनों अपने रिकॉर्ड हाई लेवल से करीब 10 फीसदी तक टूट गए हैं. विदेशी निवेशकों की भारी बिकवाली ने दोनों ही इंडेक्स को झकझोर कर रख दिया है और गिरावट हर बीतते दिन के साथ बढ़ती जा रही है. शेयर मार्केट क्रैश को आमतौर पर डबल डिजिट में परिभाषित किया जाता है. इसलिए बाजार में आई गिरावट को क्रैश के रूप में देखा जा रहा है. लेकिन ये पहली बार नहीं है जब भारतीय शेयर मार्केट में इस तरह की खलबली मची है. पहले भी कई बार भारतीय बाजार गोते लगा चुका है और फिर वहां से रिकवर भी हुआ है. साल 1947, यानी आजादी के बाद भारतीय शेयर बाजार कब-कब क्रैश हुआ है… आइए जान लेते हैं.
हर्षद मेहता स्कैम ने डुबा दिया बाजार
देश में आर्थिक उदारीकरण के बाद शेयर बाजार ने भारी गिरावट का सामना किया था. 29 अप्रैल 1992 को सेंसेक्स ऐसा बिखरा की बाजार में हड़कंप मच गया. सेंसेक्स 570 अंक या 12.77 फीसदी टूटा और निवेशकों ने करीब 35 अरब रुपये से अधिक की निकासी कर ली. बाजार के क्रैश होने के पीछे हर्षद मेहता का स्कैम था. करीब 5000 करोड़ रुपये के घोटाले के सामने आने के बाद बाजार अर्श से फर्श पर आ गया.
हर्षद मेहता अपने समय के लोकप्रिय ब्रोकर थे और देश के जाने-माने लोग उनके क्लाइंट थे. इस सिक्योरिटीज स्कैम ने न केवल हर्षद मेहता क्लाइंट को कंगाल बना दिया, बल्कि शेयर बाजार में निवेश करने वाले लाखों निवेशकों ने अपनी जीवन भर की जमा-पूंजी गंवा दी. इस स्कैम के कुछ समय के भीतर ही बाजार का ज्वाइंट मार्केट कैप का लगभग 40 फीसदी बिखर गया. सेंसेक्स करीब 2,000 अंक गिरकर 2,500 के स्तर पर आ गया. इसकी वजह से मार्केट में मंदी आई जो करीब दो साल तक चली.
अमेरिकी मंदी ने मचाई तबाही
भारतीय मार्केट ने एक बार फिर साल 2008 में बड़ी गिरावट का सामना किया. 17 मार्च 2008 को भारतीय बाजार में तब की सबसे बड़ी गिरावट आई. सेंसेक्स 950 अंक (6 फीसदी) टूट गया, जिससे इंडेक्स 15,000 के आंकड़े से फिसल गया. इस गिरावट से ठीक पहले भी सेंसेक्स 900 अंक टूट चुका था. दूसरी बार आए झटके ने बाजार को और नीचे धकेल दिया.
इस गिरावट की वजह अमेरिका में आई आर्थिक मंदी थी, जिसे महामंदी भी कहा गया. वित्तीय संकट अमेरिका में हाउसिंग बबल का नतीजा था।. हालांकि, वित्तीय संकट की स्थिति अमेरिका में थी, लेकिन इसके प्रभाव से सभी ग्लोबल इंडेक्स ताश के पत्तों की तरह ढह गए. अमेरिकी वित्तीय संकट का प्रभाव इतना बुरा था कि 2008 और 2009 के बीच भारतीय बाजार अपने हाई लेवल वैल्यू का 50 फीसदी गंवा दिया.
चीन में मंदी की आशंका से बिखरा बाजार
साल 2008 में आई बड़ी गिरावट से बाजार अभी उबर ही रहा था साल 2015 में एक और जोरदार झटका लगा. जून 2015 से जून 2016 तक की अवधि को भारत और दुनिया के बाजार के लिए किसी बुरे सपने से कम नहीं था. साल भर की बिकवाली की शुरुआत चीन से आई नेगेटिव जीडीपी की खबर से हुई. फिर पेट्रोलियम की कीमतों में गिरावट और ग्रीक डेट डिफॉल्ट की खबर भी आ गई.
साल 2015 में शुरू यह दौर 2016 तक चला. 24 अगस्त 2015 को सेंसेक्स में 1624 अंकों की गिरावट आई. इसका कारण चीन की अर्थव्यवस्था में मंदी की आशंका थी. यह चीनी युआन के डीवैल्युएशन के कारण हुआ था. इसकी वजह से अन्य मुद्राओं की दरों में गिरावट आई और शेयर बाजार बुरी तरह टूट गए. इससे भारतीय बाजार में लगभग 7 लाख करोड़ रुपये डूब गए. अप्रैल 2015 से फरवरी 2016 के दौरान सेंसेक्स में 26 फीसदी से अधिक की गिरावट आई थी.
कोविड से क्रैश हुआ मार्केट
साल 2020 में आई गिरावट के बारे में तो लगभग सभी लोग जानते ही होंगे. कोविड की वजह से मार्केट में भारी गिरावट आई थी. 23 मार्च को सेंसेक्स 13 फीसदी या 3,935 अंक से अधिक गिर गया था और निफ्टी 13 फीसदी या 1,135 अंक टूट गया. मार्केट का सेंटीमेंट इतना खराब था कि BSE पर नियमित रूप से कारोबार करने वाले 2,401 शेयरों में से 2,036 शेयरों में गिरावट आई और सिर्फ 233 शेयरों में बढ़त दर्ज की गई.
23 मार्च को मार्केट में गिरावट इस वजह से आई, क्योंकि कोविड की वजह पूरे देश में लॉकडाउन की घोषणा की गई थी. अर्थव्यवस्था के ठप होने का डर बाजार को जकड़ रहा था. उस दिन लगभग सभी प्रमुख लार्ज-कैप शेयरों में 15 फीसदी से अधिक की गिरावट आई थी. गिरावट का यह सिलसिला कई दिनों तक जारी रहा. इस दौरान, सेंसेक्स एक सप्ताह में 42,273 के स्तर से गिरकर 28,288 पर आ गया.