मार्केट की गिरावट से डर गए आप? इससे पहले 7 बार तबाही मचा चुका बाजार, जानें उबरने में लगे कितने साल?
Share Market: शेयर बाजार में जारी गिरावट पहली बार नहीं हो रही है. इससे पहले भी कई बार बाजार को मौजूदा समय की तुलना में अधिक झटका ही लगा था. फिर चाहे वो हर्षद मेहता स्कैम हो या 2008 की मंदी. हालांकि हर बड़ी से बड़ी गिरावट के बाद बाजार ने शानदार रिकवरी ही की है...
Share Market Dip History: शेयर बाजार दिनों बड़े-बड़े रिकॉर्ड बना रहा है लेकिन ये रिकॉर्ड गिरावट की ओर बन रहे हैं. सेंसेक्स और निफ्टी 50 ने करीब पांच महीनों में सबसे खराब दिन दर्ज किया है. हालांकि, ऐसा मंजर पहली बार नहीं है. पिछले 30 सालों में शेयर बाजार इससे भी बड़े झटकों का सामना कर चुका है. बड़े बैंकिंग घोटालों से लेकर वैश्विक आर्थिक मंदी तक, सेंसेक्स और निफ्टी 50 ने कई बार बड़ी गिरावटें झेली हैं, लेकिन हर बार घरेलू निवेशकों की मजबूती के चलते बाजार ने खुद को संभाला और नई ऊंचाइयों को छुआ है. चलिए शेयर बाजार के इतिहास में सात सबसे बड़ी गिरावटों पर नजर डालते हैं.
हर्षद मेहता घोटाला (1992)
स्कैम 1992 वेब सीरीज देखने वालों की इसकी कहानी बताने की जरूरत नहीं. इस गिरावट का कारण हर्षद मेहता द्वारा शेयर बाजार में की गई धोखाधड़ी थी, जिसमें उन्होंने अवैध तरीकों से शेयर की कीमतें बढ़ाई थीं. सेंसेक्स 4,467 अंकों से गिरकर अप्रैल 1993 तक 1,980 अंकों पर आ गया था, यानी 56% की गिरावट हुई थी. इस झटके से बाजार को उबरने में करीब दो साल लगे थे.
एशियन फाइनेंशियल क्राइसिस (1997)
यह संकट दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों की करेंसी में आई गिरावट के आया था. दिसंबर 1997 में सेंसेक्स 4,600 अंकों से 3,300 अंकों तक गिरा, यानी 28% की गिरावट. बाजार को रिकवर होने में एक साल लगा था.
डॉटकॉम बबल (2000)
साल 2000 में आईटी सेक्टर में ज्यादा निवेश और बाद में उसकी वैल्यू गिरने से बाजार ध्वस्त हो गया था. फरवरी 2000 में सेंसेक्स 5,937 अंकों पर था, जो अक्टूबर 2001 तक 3,404 अंकों पर आ गया, यानी 43% की गिरावट. इस गिरावट के बाद निवेशकों ने तकनीकी शेयरों से हटकर दूसरे सेक्टरों में निवेश करना शुरू किया था.
चुनावी झटका (2004)
17 मई 2004 को जब UPA सरकार सत्ता में आई थी तब निवेशकों में बैचेनी फैल गई थी. सेंसेक्स एक ही दिन में 15% गिरा, जिससे बाजार में ट्रेडिंग रोकनी पड़ी. हालांकि, बाजार 2-3 हफ्तों में ही इस गिरावट से उबर गया था.
वैश्विक आर्थिक संकट (2008)
2008 की मंदी, अमेरिका के Lehman Brothers के दिवालिया होने और सब-प्राइम मॉर्गेज क्राइसिस के चलते शेयर बाजार क्रैश हुआ था. जनवरी 2008 में सेंसेक्स 21,206 अंकों पर था, जो अक्टूबर 2008 में 8,160 अंकों तक गिर गया था, यानी 60% की गिरावट. इस संकट से उबरने के लिए सरकार ने राहत पैकेज और वैश्विक लिक्विडिटी सपोर्ट दिए, जिससे 2009 तक बाजार रिकवरी कर पाया था.
वैश्विक मंदी (2015-2016)
चीन के बाजार क्रैश, कमोडिटी की कीमतों में गिरावट और भारतीय बैंकों के बढ़ते NPA के कारण बाजार में मंदी आई थी. जनवरी 2015 में सेंसेक्स 30,000 अंकों पर था, जो फरवरी 2016 में 22,951 अंकों तक गिर गया, यानी 24% की गिरावट. बाजार को 12-14 महीनों में रिकवरी मिली थी.
कोविड-19 क्रैश (मार्च 2020)
कोरोना महामारी के कारण लगे लॉकडाउन और वैश्विक आर्थिक अनिश्चितता ने बाजार को तगड़ा झटका दिया था. जनवरी 2020 में सेंसेक्स 42,273 अंकों पर था, जो मार्च 2020 तक 25,638 अंकों तक गिर गया था, यानी 39% की गिरावट. हालांकि, 2020 के अंत तक ही बाजार ने V-शेप रिकवरी कर ली थी.
शेयर बाजार में उतार-चढ़ाव नया नहीं है. इतिहास बताता है कि हर बड़ी गिरावट के बाद बाजार ने न केवल रिकवरी की, बल्कि नई ऊंचाइयों को भी छुआ. मौजूदा गिरावट चाहे आपका पोर्टफोलियों बर्बाद कर रहा हो लेकिन लॉन्ग-टर्म निवेशकों के लिए यह एक अच्छा अवसर साबित हो सकता है.