घर की सफाई में मिले 37 साल पुराने RIL शेयर, 124 गुना बढ़ी कीमत लेकिन उत्तराधिकारी को मिला NIL, जानें क्यों
चंडीगढ़ के रत्न ढिल्लों को सफाई के दौरान 37 साल पुराने रिलायंस इंडस्ट्रीज के 12 लाख रुपये के शेयर मिले, लेकिन जटिल कागजी कार्रवाई के चलते उन्होंने इन्हें डिजिटाइज न करने का फैसला किया. सोशल मीडिया पर लोग उन्हें इस फैसले पर पुनर्विचार करने की सलाह दे रहे हैं.
चंडीगढ़ के एक निवासी रत्न ढिल्लों ने अपनी घर की सफाई के दौरान 37 साल पुराने रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (RIL) के शेयर सर्टिफिकेट खोज निकाले. कागज के मुताबिक निवेशक के पास 10 रुपये के 30 रिलायंस के शेयर हैं. इन शेयरों की मौजूदा कीमत अब 12 लाख रुपये से अधिक हो चुकी हैं. हालांकि शेयरों की असल कीमत इस आंकड़े से भी ज्यादा हो सकती है, क्योंकि इस अवधी के दौरान कंपनी ने कई बार बोनस शेयर इश्यू किए और दूसरे फैसले लिए जो शेयरों की संख्या प्रभावित करते हैं. शख्स के साथ, मसला ये है कि इतनी बड़ी रकम का मालिक होने के बावजूद वह उसका कोई फायदा नहीं उठा पा रहा है. दरअसल, इन कागजों के मिलते ही उसने इन्हें डिजिटाइज करने के लिए चक्कर काटने शुरू कर दिए ताकि पुराने खजाने का लुत्फ उठाया जा सके लेकिन उसके हाथ कुछ नहीं आया और आधे रास्ते पर ही निवेशक थम गया. शेयरों के डिजिटाइज प्रोसेस में न फंसने का दोष वह भारत की लंबी और जटिल कागजी प्रक्रिया को बता रहा है. हालांकि, सोशल मीडिया पर कई लोग उन्हें इस फैसले पर फिर से विचार करने की सलाह दे रहे हैं.
ढिल्लों को 1988 में खरीदे गए शेयरोंं के सर्टिफिकेट मिले, जिनकी मूल कीमत 10 रुपये प्रति शेयर थी. स्टॉक स्प्लिट और बोनस के चलते ये शेयर 960 शेयरों तक बढ़ चुके हैं. जब उन्होंने इन शेयरों को डिजिटल रूप में ट्रांसफर करने की प्रक्रिया के बारे में जानकारी ली, तो उन्हें पता चला कि यह प्रक्रिया काफी लंबी और जटिल है.
लंबी प्रक्रिया से परेशान होकर छोड़ा विचार
ढिल्लों ने सोशल मीडिया पर लिखा,
“धीरूभाई अंबानी के हस्ताक्षर अब किसी काम के नहीं क्योंकि मैंने शेयर डिजिटलाइज करने का विचार छोड़ दिया है. कागजी प्रक्रिया बहुत लंबी है, केवल लीगल हेयर (उत्तराधिकारी) सर्टिफिकेट लेने में 6-8 महीने लग सकते हैं और IEPFA से मंजूरी में 2-3 साल. इतने समय और मेहनत की कोई वैल्यू नहीं दिखती. भारत को अपनी पेपरवर्क प्रक्रिया को सरल बनाने की जरूरत है.”
उनके इस फैसले के बाद माइक्रोब्लॉगिंग साइट X (पहले ट्विटर) पर बहस छिड़ गई. कई यूजर्स ने उन्हें फिर से सोचने की सलाह दी और बताया कि IEPFA प्रक्रिया 2-3 साल नहीं, बल्कि कुछ महीनों में पूरी हो सकती है.
एक यूजर ने लिखा, “इतनी बड़ी रकम के लिए थोड़ा दौड़भाग करना तो बनता है. IEPFA प्रक्रिया कुछ महीनों में पूरी हो जाती है, न कि 2-3 साल में.” एक अन्य यूजर ने आउटसोर्सिंग का सुझाव देते हुए लिखा, “किसी को इस काम के लिए हायर कर दो और मुनाफा आधा-आधा बांट लो.” कुछ यूजर्स ने ढिल्लों को यह पता लगाने की सलाह दी कि उनके पास वास्तव में कितने शेयर हैं.
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एक कमेंट में लिखा गया, “लीगल हेयर सर्टिफिकेट एक हफ्ते में मिल जाता है और IEPFA प्रक्रिया 6 महीने में पूरी हो सकती है. हो सकता है आपके पास इससे भी ज्यादा शेयर हों, क्योंकि रिलायंस ने कई बार बोनस जारी किए हैं. KFintech से संपर्क करें और सही संख्या पता करें. इन शेयरों को यूं ही न जाने दें.”
हालांकि, कुछ लोगों ने ढिल्लों की झिझक को जायज बताया, एक व्यक्ति ने कहा, “मैंने खुद 200 फिजिकल शेयरों को डिजिटाइज करने में 6 महीने लगाए थे, इसलिए मैं समझ सकता हूं कि यह प्रक्रिया कितनी थकाने वाली हो सकती है.”