बाजार से जुड़े इन शब्दों का मतलब समझ लें नए निवेशक, जीत लेंगे मुनाफे की आधी जंग

आपने आईपीओ (IPO), एफपीओ (FPO) और ओएफएस (OFS) जैसे शब्‍द सुने होंगे. जानते हैं इनका मतलब क्या है और इनमें क्‍या फर्क है?

IPO, FPO, OFS क्या होता है? Image Credit: freepik

आपने वो किस्सा सुना होगा जब दो लकड़हारे पेड़ काटने जाते हैं, तो एक जाते ही पेड़ काटने में जुट जाता है, दूसरा पहले कुल्हाड़ी को धार देता है, पेड़ का मुआयना करता है और फिर पेड़ काटना शुरू करता है. आखिर में दूसरे वाला लकड़हारा पेड़ को जल्दी काट देता है. यह किस्सा बताता है कि किसी काम को करने जाएं, तो उसकी तैयारी और उसे समझना जरूरी है. अगर आप शेयर बाजार में निवेश करना चाहते हैं, तो इसके लिए तैयारी और बाजार की समझ जरूरी है. कुछ शब्द हैं, जिनके बारे में अगर निवेश करने से पहले ही समझ लिया जाए, तो मुनाफे के लिए बाजार में होने वाली आधी जंग जीती जा सकती है. आपने आईपीओ (IPO), एफपीओ (FPO) और ओएफएस (OFS) जैसे शब्‍द सुने होंगे. कंपनियां पैसे जुटाने के लिए ओएफएस, आईपीओ या एफपीओ लाती हैं. जानते हैं इनका मतलब क्या है और इनमें क्‍या फर्क है?


इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग (आईपीओ)


यह एक तरीका है, जिसके जरिये कंपनी खुद को शेयर बाजार में सूचीबद्ध करती है और पहली बार आम लोगों से पैसे जुटाती है. आईपीओ की पेशकश का प्राथमिक कारण बाजार से पूंजी जुटाना होता ह. इस रकम का इस्तेमाल कंपनी अपने कारोबार के विस्तार, नए उत्पादों के विकास, नए बाजार में प्रवेश करने या मौजूदा ऋण का भुगतान करने के लिए कर सकती है. आइए इसे उदाहरण से समझते हैं; मान लीजिए एक कंपनी “ABC लिमिटेड” अपने कारोबार का विस्तार करना चाहती है, लेकिन उसके पास पर्याप्त पूंजी नहीं है, साथ ही थोड़ा बहुत कर्ज है, जिसे चुकाना है. अगर कंपनी बाजार नियामक सेबी की तरफ से तय नियम और शर्तों को पूरा कर पाती है, तो बाजार से पैसा जुटाने और बाजार में सूचीबद्ध होने के लिए आईपीओ ला सकती है. इस तरह आम लोग भी शेयर खरीदकर कंपनी के हिस्सेदार बन सकते हैं.


ऑफर फॉर सेल (ओएफएस)


जब किसी सूचीबद्ध कंपनी का प्रमोटर अपने हिस्से के शेयर बेचना चाहता है, तो ऑफर फॉर सेल के जरिये शेयरों को बेच सकता है. इसके कई कारण हो सकते हैं. मसलन, मुनाफा वसूली, व्यक्तिगत जरूरतें या कोई भी और वजह जिसके चलते प्रमोटर कंपनी में हिस्सेदारी घटाना चाहे. मिसाल के तौर पर कंपनी ABC के प्रामोटर ए के पास 55 फीसदी हिस्सेदारी है. बाजार में सूचीबद्ध होने के बाद कंपनी के शेयर मूल्य लगातार बढ़ रहा है और प्रमोटर को नकदी की जरूरी है, तो वह अपने हिस्से के 4 फीसदी शेयर बेच देता है. इससे आम निवेशकों को शेयर मिल जाते हैं, वहीं प्रमोटर को नकदी मिल जाती है.


फॉलो-ऑन पब्लिक ऑफर (एफपीओ)


जब कोई कंपनी पहले से ही शेयर बाजार में सूचीबद्ध है और फिर से पूंजी जुटाना चाहती है, तो एफपीओ के जरिये बाजार में शेयर बेच सकती है. मिसाल के तौर पर “XYZ लिमिटेड” पहले से ही शेयर बाजार में लिस्टेड है और अब उसे एक नए प्रोजेक्ट के लिए पैसे चाहिए. तो, वे एफपीओ के जरिये नए निवेशकों से पैसे जुटा सकती है.