स्मॉल कैप फंड में निवेश करने से पहले जान लें ये ट्रिक! आएंगे बहुत काम

वैल्यू रिसर्च के फाउंडर और सीइओ धीरेंद्र कुमार के अनुसार, स्मॉल कैप और मिड कैप में ग्रोथ की संभावना ज्यादा होती है, जबकि लार्ज कैप में सीमित बढ़त होती है. उन्होंने कहा कि 5000 करोड़ की कंपनी कुछ वर्षों में 5 गुना तक बढ़ सकती है, लेकिन निवेशकों को केवल नैरेटिव पर भरोसा करने के बजाय वास्तविक मूल्य को देखना चाहिए.

Small Cap Funds: स्मॉल कैप और मिड कैप में बहुत लोगों ने निवेश किया है. जबकि, कुछ लोग स्मॉल कैप में नेगेटिव पोर्टफोलियो पर बैठे हुए हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि निवेशक लॉश बुक कर लें या फिर बने रहें. तो आइए इन असमंजस की स्थिति को दूर करने के लिए आज हम वैल्यू रिसर्च के फाउंडर और सीइओ धीरेंद्र कुमार से जानते हैं कि वे स्मॉल कैप और मिड कैप का आप गोइंग फॉरवर्ड को किस तरह से देख रहे हैं.

धीरेंद्र कुमार के अनुसार, स्मॉल कैप और मिड कैप में ग्रोथ की संभावना ज्यादा होती है, जबकि लार्ज कैप में सीमित बढ़त होती है. धीरेंद्र कुमार का कहना है कि स्मॉल कैप और मिड कैप मार्केट का बहुत ही प्रॉमिसिंग सेगमेंट है. जब आप मल्टीकैप में निवेश करते हैं, तो उसमें 5 से 10 फीसदी तक स्मॉल कैप होता है. हालांकि, स्मॉल कैप महंगे और कई बार सस्ते भी हो सकते हैं. या फिर रीजनेबल प्राइस भी हो सकते हैं. पर मुझे लगता है कि भारतीय मार्केट में पैसा लगाने में जो सबसे बड़ा प्रॉमिस है वो लार्ज कैप में नहीं है. उन्होंने कहा कि रिलायंस इंडस्ट्री जितनी बड़ी कंपनी है वह पांच गुना बड़ी नहीं हो सकती है. लेकिन एक 5000 करोड़ रुपये की कंपनी 25000 करोड़ रुपये की हो सकती है.

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छोटी कंपनी हो सकती है बड़ी

धीरेंद्र कुमार ने कहा कि ऐसे आए दिन देखने को मिलता है कि दो से चार साल में 5000 करोड़ की कंपनी दो गुना, तीन गुना, चार गुना, पांच गुना बड़ी हो जाती है. लेकिन कुछ कंपनियां होती हैं, जिसमें केवल केवल नैरेटिव होता है, पर सब्सटेंस नहीं होता है. कई बार बहुत सारी कहानियां चल पड़ती हैं और यह बाजार कहानियों कहानीकारों से भरा हुआ है. मतलब फाइनेंशियल मार्केट्स में बहुत सारे लोग कहानी बनाते हैं और कहानी गड़ते हैं. लेकिन बहुत सारे लोग कारोबार मन लगा के चलाते हैं और मन लगा के कारोबार चलाना बहुत मुश्किल काम है.

एचडीएफसी कैसे बना क्रेडिबल लेंडर

उन्होंने कहा कि मुझे याद है 30 साल पहले जब एचडीएफसी बहुत छोटी कंपनी थी तो उसका दिल्ली में एक ब्रांच हुआ करता था. तब वो ग्राहकों से मिलने के लिए अपॉइंटमेंट देते थे. ग्राहकों से मिलकर वह बताते थे कि आपको लोन लेना चाहिए कि नहीं. और अगर लेना चाहिए तो कितना लेना चाहिए. उन्होंने कहा कि एसडीएफसी के शुरुआती दिनों का ये जो प्रोसेस था, वह आधार बना एचडीएफसी के एक क्रेडिबल लेंडर बनने का. धीरेंद्र कुमार का कहना है कि लार्ज कैप के मुकाबले स्मॉल कैप में ज्यादा रिटर्न है.

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