लागत… कर्ज और खर्च जैसे ब्रेकर्स की भरमार, ओला इलेक्ट्रिक कैसे तय करेगी मुनाफे का सफर?

Ola Electric Share: तमाम असफलताओं के बावजूद कंपनी का उत्साह बना हुआ है. इसने अपनी पहली ई-मोटरसाइकिल लॉन्च की है. ओला ईवी के सीईओ भाविश अग्रवाल ने हाल ही में बिक्री में गिरावट के लिए 'हाई कंपटीटिव इंटेसिटी' को जिम्मेदार ठहराया है.

ओला इलेक्ट्रिक के सामने क्या हैं चुनौतियां. Image Credit: Money9

Ola Electric Share: ओला इलेक्ट्रिक के वित्त वर्ष 2025 की तीसरी तिमाही के नतीजों ने चिंताजनक तस्वीर पेश की है. कंपनी ने 500 करोड़ रुपये का घाटा और सेल्स में 20 फीसदी की सालाना गिरावट दर्ज की है, जो भारत के सबसे आक्रामक इलेक्ट्रिक वाहन (EV) स्टार्टअप के भविष्य की योजनाओं की राह को कठिन बना सकता है. फिर भी इन असफलताओं के बावजूद कंपनी का उत्साह बना हुआ है. इसने अपनी पहली ई-मोटरसाइकिल लॉन्च की है और अपने डीलरशिप नेटवर्क का तेजी से विस्तार किया है. इसके अलावा कंपनी मार्जन और ऑपरेशनल एफिशिएंसी बढ़ाने के लिए अपने जेन3 प्लेटफॉर्म पर दांव लगा रही है.

मुनाफे के रास्ते में बाधाएं

कंपनी के मैनजमेंट का दावा है कि एक बार जब बिजनेस 50,000 की मंथली यूनिट तक पहुंच जाएगा (जनवरी 2025 के वॉल्यूम से डबल), तो EBITDA का लेवल ब्रेकईवन हो जाएगा. वैल्यू रिसर्च के अनुसार, यह मील का पत्थर उत्साहजनक लग सकता है, लेकिन आंकड़ों को देखें, तो गंभीर चिंताएं पैदा होती हैं. सतह के नीचे देखें, तो बढ़ती हुई फिक्स्ड कॉस्ट, कैपिटल इन-एफिशिएंसी और एक अस्पष्ट प्रतिस्पर्धी एडवांटेज, लगातार मुनाफे के रास्ते में बाधाएं खड़ी कर सकती है.

कंपनी के मुनाफे पर असर

वैल्यू रिसर्च के अनसार, वित्त वर्ष 2025 की पहली छमाही में कंपनी ने लीज के लिए 60 करोड़ रुपये खर्च किए, जो करीब 800 स्टोर के लिए सालाना 120 करोड़ रुपये बैठता है. अब 4,000 स्टोर के साथ यह आंकड़ा सालाना 450-500 करोड़ रुपये तक पहुंचने वाला है और यह सिर्फ एक लाइन आइटम है. मैन्युफैक्चरिंग ऐसेट्स पर डिप्रेसिएशन, उधार से ब्याज लागत, बैटरी प्रोडक्शन और रिसर्च एंड डेवलपमेंट में निरंतर निवेश से कंपनी के मुनाफे पर और असर पड़ सकता है.

इसे ऐसे समझें तो EBITDA ब्रेकईवन तक पहुंचने का मतलब यह नहीं है कि कंपनी आत्मनिर्भर है. अगर कैपिटल एक्सपेंडिचर और निश्चित लागत में वृद्धि जारी रहती है, तो कंपनी की नकदी की कमी बनी रहेगी, जिससे उसे अपने कारोबार को चलाने के लिए बाहरी फंडिंग पर निर्भर रहना पड़ेगा.

रिटर्न ऑन कैपिटल

कंपनी की आक्रामक विस्तार रणनीति के तहत मैन्युफैक्चरिंग फैसिलिटी, बैटरी प्रोडक्शन और तेजी से बढ़ते रिटेल नेटवर्क में निवेश सहित अहम कैपिटल एक्सपेंडिचर हुए हैं. हालांकि, इन पूंजी निवेशों की प्रभावशीलता अनिश्चित बनी हुई है. इसके अतिरिक्त, कंपनी के स्वामित्व वाले शोरूम, लीज प्रतिबद्धताओं और मैन्युफैक्चरिंग निवेशों से जेनरेट हाई फिक्स्ड कॉस्ट बेस, नेगेटिव ऑपरेटिंग लीवरेज रिस्क के संकेत देता है. अगर रेवेन्यू ग्रोथ इन लागतों के साथ तालमेल नहीं बैठा पाते है, तो कंपनी लगातार कैश बर्न के सायकिल में फंसी रह सकती है और इसके लिए बाहरी पूंजी की जरूरत होगी.

क्या बढ़ रही है ऑपरेशनल जटिलता?

निवेशकों के लिए जरूरी है कि वो सिर्फ EBITDA ब्रेकईवन हासिल करने पर फोकस नहीं करें बल्कि इस बात पर भी ध्यान देना चाहिए कि क्या ओला इलेक्ट्रिक के पूंजी निवेश से लॉन्ग टर्म में रिटर्न मिल सकता है. यह देखते हुए कि कंपनी ने अभी तक सकारात्मक ROCE प्रदर्शित नहीं किया है. इसकी विस्तार रणनीति इस बारे में चिंता पैदा करती है कि क्या यह शेयरहोल्डर के लिए वैल्यू बना रही है या प्रपोशनेट फाइनेंशयिल गेन के बिना सिर्फ ऑपरेशनल जटिलता बढ़ा रही है.

हाई कंपटीटिव इंटेसिटी

ओला ईवी के सीईओ भाविश अग्रवाल ने हाल ही में बिक्री में गिरावट के लिए ‘हाई कंपटीटिव इंटेसिटी’ को जिम्मेदार ठहराया है. फिर भी, यह ओला इलेक्ट्रिक ही थी जिसने इस प्राइस वॉर को भड़काया है. त्यौहारी सीजन के दौरान, इसने अपने S1 स्कूटर की कीमत घटाकर 50,000 रुपये कर दी, लेकिन सेल्स में ग्रोथ करने के बजाय तिमाही-दर-तिमाही (QoQ) और साल-दर-साल (YoY) आधार पर गिरावट आई. इस बीच भारत में सबसे महंगे इलेक्ट्रिक स्कूटर पेश करने वाली एथर एनर्जी ने सेल्स में लगभग 50 फीसदी की ग्रोथ दर्ज की.

कैश फ्लो और कर्ज

पेपर पर मुनाफा हमेशा बैंक में कैश में तब्दील नहीं होता है. ओला इलेक्ट्रिक को लीज, फैक्ट्री लागत और विस्तार रणनीति सभी के लिए पर्याप्त पूंजी की आवश्यकता होती है. फिर भी इसका कैश फ्लो पॉजिटिव बना हुआ है. कंपनी ने पहले ही लगभग 3,000 करोड़ रुपये उधार लिए हैं, जिस पर ब्याज लागत बढ़ने की उम्मीद है. अरग यह कैश बर्न जारी रखती है, तो इसे या तो अधिक कर्ज लेना होगा या अतिरिक्त इक्विटी जारी करनी होगी, जिससे शेयरधारक कम हो जाएंगे.

कमजोर फाइनेंशियल स्ट्रक्चर

इसमें कोई शक नहीं कि ओला ईवी भारत में ईवी अपनाने में तेजी लाने में सहायक रही है, लेकिन इसके वित्तीय ढांचे अभी भी कमजोर हैं. EBITDA ब्रेकईवन पर ध्यान केंद्रित करना गहरे मुद्दों से ध्यान भटकाने वाला है. बढ़ती हुई फिक्स्ड कॉस्ट, कैपिटल एक्सपेंडिचर भी सवालों के घेरे में है, अप्रमाणित डिमांड बेस और बढ़ती लिक्विडिटी संबंधी गहरी चिंताएं हैं.

फिलहाल, कंपनी ईवी की दुनिया में कम और कैपिटल को स्थायी प्रॉफिट में बदलने के लिए संघर्ष कर रही एक विस्ता की महत्वाकांक्षी कहानी की तरह दिखती है.

शेयरों में आ सकती है गिरावट?

लक्ष्मीश्री सिक्योरिटीज के HoR अंशुल जैन ने कहा कि ओला ईवी के शेयर में अभी और गिरावट आ सकती है. उन्होंने कहा कि स्टॉक 40 रुपये तक आ सकता है. उन्होंने कहा कि निवेशक 66 रुपये पर स्टॉपलॉस लगा सकते हैं.

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