क्या 2025 में भी शेयर मार्केट क्रैश होगा? जानें- कौन से 5 फैक्टर तय कर सकते हैं बाजार की चाल
साल 2024 की पहली छमाही में उड़ान भरने वाला शेयर मार्केट, दूसरी छमाही में बुरी तरह से टूटा और लगातार गिरावट देखने को मिली. हालांकि, फिर भी मार्केट ने पॉजिटव रिटर्न के साथ साल को विदा किया. लेकिन निवशकों के मन में अब यह सवाल है कि क्या 2025 में भी स्टॉक मार्केट क्रैश होगा?
Share Market Outlook 2025: ऐतिहासिक 9 साल के पॉजिटिव रिटर्न के सिलसिले के बाद, निफ्टी बुल्स में उम्मीद की लहर दौड़ गई है. कई लोगों को 2025 में डबल डिजिट में मुनाफे की उम्मीद है. हालांकि, 2024 की दूसरी छमाही के नतीजे निवेशकों को याद रखने चाहिए, जिससे यह समझ में आता है कि शेयर बाजार में एक तरफा रैली के अनुमान को जोरदार झटका लग सकता है. इस साल यानी 2025 में रिस्क का अंडरकरंट मजबूत होते जा रहा है, क्योंकि निवेशकों को न केवल जियो-पॉलिटिकल तनाव से निपटना होगा, बल्कि ट्रेड फ्रिक्शन की ग्लोबल परिस्थितियों से निपटना होगा. इसके अलावा घेरेलू मोर्चे पर स्लो ग्रोथ, हाई वैल्यूएशन और आय की दबाव से भी निपटना होगा.
बुल मार्केट आम तौर पर अर्निंग ग्रोथ और मल्टीपल विस्तार के कॉम्बिनेशन से संचालित होते हैं. इसके अलावा सेंटीमेंट और लिक्विडिटी से भी यह प्रभावित होता है. हालांकि, 2024 में बाजार वास्तविक आय वृद्धि की तुलना में मल्टीपल विस्तार से अधिक ड्राइव हुआ. जैसा कि कहा जाता है कि एवरेज रिवर्सन मार्केट अटल नियम है और यह 2025 में भी नजर आ सकता है.
इनकम रिस्क
अगर शेयर की कीमतें इनकम के अधीन हैं, तो शॉर्ट टर्म में मार्कट की दिशा इस बात पर निर्भर करेगी कि पिछली दो तिमाहियों में कई डाउनग्रेड के बाद तीसरी तिमाही में सुधार देखने को मिलता है या नहीं. मार्केट ने पहले ही दूसरी तिमाही में इनकम की मंदी की संभावना को भांप लिया है और इसलिए नतीजे पॉजिटिव रूप से आश्चर्यचकित नहीं कर सकते हैं. दूसरी छमाही में कैपिटल एक्सपेंडिचर में बढ़ोतरी की उम्मीद है, लेकिन अभी तक संकेत मंदी जैसे ही नजर आ रहे हैं.
ट्रेड फ्रिक्शन
डोनाल्ड ट्रंप की ‘मेक अमेरिका ग्रेट अगेन’ की नीतियां 20 जनवरी को उनके पद ग्रहण करने के साथ, ग्लोबल ट्रेड पर गहरा प्रभाव असर डाल सकती हैं. इनमें नीतियों में टैरिफ लगाना, टैक्स में कटौती करना, इमिग्रेशन को प्रतिबंधित करना, तेल और गैस निष्कर्षण को बढ़ावा देना और पर्यावरण संबंधी नियमों को वापस लेना शामिल है. टैरिफ, रूस-यूक्रेन के बीच चल रहे विवाद, इजरायल और हमास के बीच बार-बार होने वाली झड़पें और मिडिल ईस्ट में इसकी भूमिका जैसे मुद्दों पर ट्रंप प्रशासन का नजरिया निर्णायक प्रभाव भी डाल सकता है. जियो-पॉलिटिकल तनाव कच्चे तेल की कीमतों को बढ़ा सकते हैं, जो भारत के लिए एक बड़ा झटका साबित हो सकता है.
ब्याज दर
2024 की पिछली 3 बैठकों में लगातार तीन बार ब्याज दरों में कटौती करने के बाद, अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने संकेत दिया है कि वह 2025 में धीमी गति से रेट की कटौती की तरफ बढ़ेगा. वॉल स्ट्रीट ट्रेडर्स इस साल केवल 25-50 बीपीएस की दर कटौती की उम्मीद कर रहे हैं और इससे अलग किसी भी तरह का अलग झुकाव बाजार पर दबाव डाल सकता है.
मिड कैप और स्मॉल कैप
अगर इनकम उम्मीद के मुताबिक नहीं रहती है या फिर सेंटीमेंट में बदलाव होता है, तो मार्केट के हाई वैल्यूशन में करेक्शन देखने को मिल सकता है. एक्सपर्ट मिडकैप और स्मॉल कैप सेक्टर को लेकर चिंता जता रहे हैं. पिछले 1-2 साल में ज्यादातर घरेलू इनफ्लो मिड-कैप और स्मॉल कैप में आया है. इस सेक्टर में किसी भी तरह का करेक्शन निवेशकों को निराश कर सकता है.
चीन की इकोनॉमी
चीन की अर्थव्यवस्था में संभावित सुधार से कमोडिटी और इनपुट की कीमतें बढ़ सकती हैं, जिससे भारत की इनकम ग्रोथ बाधित हो सकती है. विश्लेषकों का कहना है कि इससे अन्य उभरते बाजारों की तुलना में भारत का वैल्यूएशन प्रीमियम भी कम हो सकता है, जो वर्तमान में लगभग 70 फीसदी है.